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बाल पंचायतः बड़ों की ज़िम्मेदारियाँ निभाते बच्चे

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

बनारस जंक्शन से महज़ 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बघवानाला बस्ती की खास पहचान हैं यहां के समझदार बच्चे. ये बच्चे पूरे बनारस में जागरूकता का एक नया अलख जगा रहे हैं.  उत्तर प्रदेश की पहली बाल पंचायत भी यहीं क़ायम हुई है.

मुंशी प्रेमचन्द्र के नाम पर गठित यह बाल पंचायत हर महीने की 15 तारीख को राजा सुहैल देव जनमित्र शिक्षण केन्द्र में आयोजित होती है. यह बाल पंचायत फरमान जारी करती है जिन्हें इलाक़े के लोग मानते भी हैं.

इस बाल पंयायत की शुरूआत 2002 में हुई थी. अब इससे क़रीब 65 बच्चे जुड़े हैं. बीए सेकंड इयर की छात्रा 19 वर्षीय पुजा कुमारी इस बाल पंचायत की अध्यक्षा हैं. पूजा शुरुआत से ही इस बाल पंचायत से जुड़ी हुई हैं.

पूजा बताती है कि जो बातें या समस्याएं हम घर पर किसी से नहीं कह पाते, वो बातें हम इस पंचायत में एक दूसरे से बांटते हैं. वो बताती है कि इस पंचायत में सिर्फ अपनी समस्या ही नहीं, बल्कि सामाजिक समस्याओं का भी हल निकालने की कोशिशें की जाती हैं. बाल पंचायत का एक प्रमुख कार्य यह भी देखना है कि इलाके का कौन बच्चा स्कूल जा रहा है और कौन नहीं?

जब समस्या का हल बाल पंचायत की हद से बाहर होता है तो बच्चे अपने शिक्षकों से मदद लेते हैं या फिर संस्था के लोगों की मदद ली जाती है.

बाल पंचायत की उपलब्धियां

पंचायत की 17 वर्षीय उपाध्यक्षा ज्योति बताती हैं कि हमारे इस इलाके में 3 किलोमीटर के अंदर में कोई स्कूल नहीं है. इस स्कूल की मांग को लेकर बाल पंचायत के बच्चों ने बारिश में भींगते हुए धरना भी दिया. इस संबंध में ज़िलाधिकारी को ज्ञापन भी सौंप चुके हैं. और साथ में धमकी भी देकर आएं हैं कि अगर जल्द ही स्कूल नहीं खुला तो हम बच्चे आपके दफ्तर के बाहर ही आकर पढ़ेंगे.

बताते-बताते ज्योति के उत्साह पर थोड़ी सी मायूस हावी हो जाती है. वो बताती है कि बेसिक शिक्षा अधिकारी ज़मीन का बहाना बना रहे हैं. पर बच्चे भी स्कूल न खुलने तक अपनी माँग पर अड़े रहेंगे. इस सिलसिले में इस बाल पंचायत ने देश के राष्ट्रपति, पूर्व प्रधानमंत्री, यूपी के मुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री आदि को पत्र भी लिखा है.

इस बस्ती में आने के लिए एक भी पक्की सड़क नहीं थी. बाल पंचायत ने इसका भी विरोध किया. इसके लिए धरना दिया. दीवार लेखन किया. और नारा दिया –रोड नहीं तो वोट नहीं… शायद इनके विरोध का असर था कि चुनाव से पहले इस इलाके का मुख्य मार्ग बन गया.

बाल पंचायत की एक 13 वर्षीय सदस्य बेबी की बहन 5 सितम्बर, 2012 को कहीं खो गई. तो इन बच्चों ने ही पुलिस को बुलाया. चाइल्ड लाइन में फोन किया. पुलिस पहले एफआईआर दर्ज नहीं कर रही थी,  लेकिन बच्चों के दबाव में एफआईआर दर्ज हुआ.

इस बाल पंचायत ने इस इलाक़े में होने वाले बाल-विवाह को अब हमेशा के लिए रोक दिया है. दरअसल, इनके इलाके में एक बाल विवाह हुआ, जिसकी सूचना इस पंचायत को मिल गई. तुरंत आनन-फानन में पंचायत बुलाई गई. पंचायत की एक टीम लड़के के घर भी गई और विरोध किया. सारे नियम-कानून और लड़की पर पड़ने वाले प्रभाव को बताया. और साथ में धमकाया भी.

फिर अपने इलाके के चौरा माता मंदिर पर एक पंचायत में लड़की के पिता को बुलाकर तमाम बातों को रखा. लड़की के बाप से शपथ दिलाई कि लड़की को तभी विदा करेंगे जब उसकी उम्र 18 साल हो जाएगी. और आखिरकार ऐसा ही हुआ. एक सदस्य काफी गर्व से बताता है कि अब हमारे इलाके में किसी बाल विवाह कराने की हिम्मत नहीं होगी.

16 साल के मनीष जैसे ही अपना नाम मनीष कुमार यादव बताते हैं तो सारे बच्चे उसका विरोध करते हैं. उनका कहना था कि सिर्फ मनीष कुमार ही काफी है. यादव कहने की कोई ज़रूरत नहीं है. फिर बच्चों ने बताया कि हम जातिवाद के खिलाफ हैं. इसलिए हम ऐसा ही करते हैं.

मनीष हंसते-हंसते कहते हैं कि इस बार सदस्यों ने तय किया तो मैं अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ूंगा और अध्यक्ष बनुंगा. मनीष बताता है कि हम हर साल व दिपावली में पटाखे का विरोध करते हैं. हम लोगों ने पहले खुद ही शपथ लिया हुआ है कि हम पटाखे नहीं चलाएंगे. वो आगे बताता है कि अब धीरे-धीरे इलाके के बच्चों पर असर हो रहा है.

बस्ती वाले खुश हो गए

9वीं में पढ़ने वाला राहुल बताता है कि हमारे बस्ती में पहले सरकारी बिजली थी, लेकिन अब प्राइवेट बिजली लग गई है, जो पहले से महंगी है. अब बस्ती वाले क्या करें? हमलोग मिलकर सभासद के पास गए. सभासद ने अपने हाथ खड़े कर लिए. तब हमने बच्चों को जमा किया और कचहरी पर धरना दिया. अगले दिन यह खबर मीडिया में छपी तो ज़िलाधिकारी ने बिजली का बिल कम कर दिया. अब बस्ती में कम कीमत पर बिजली आ गई, जिससे बस्ती वाले खुश हो गए.

मैगज़ीन व नाटक के ज़रिए समाज में जागरूकता

यह बाल पंचायत ‘बच्चों की दुनिया’ नामक अपना वार्षिक मैग्ज़ीन भी निकालती है. जिसमें बच्चों के पेटिंग, कार्टून, कहानियां व उनकी अपनी समस्याएं होती हैं. इसके साथ ही समाज में जागरूकता लाने के लिए यह पंचायत बाल विवाह, बाल मजदूरी, यौन हिंसा, साम्प्रदायिका आदि के खिलाफ नुक्कड़ नाटक भी करता है. अब तक 7 नाटक यह बच्चे तैयार कर चुके हैं. और उसे अलग-अलग जगहों पर पेश भी किया है.

 ©BeyondHeadlines

बच्चों की पढ़ाई में मदद

16 साल की गुंजा कुमारी बताती है कि उन्हें पढ़ने में थोड़ी दिक्कत होती थी, पर अब नहीं. क्योंकि जो समझ में नहीं आता है, उसे बाल पंचायत अध्यक्ष से पूछ लेती हूं. दीदी मुझे हमेशा पढ़ाई में मदद करती हैं.

बदलने लगे हैं हालात

राजा सुहैल देव जनमित्र शिक्षण केन्द्र की शिक्षिका हेमलता बताती हैं कि 2010 तक इस इलाके में कोई पढ़ा-लिखा नहीं था. पर अब चार लड़कियां ग्रेजुएशन कर रही हैं. और सब बाल पंचायत से जुड़ी हुई रही हैं.

वो बताती हैं कि इस पंचायत में दो को छोड़कर सभी की उम्र 10 साल से लेकर 16 साल के बीच में है. वो यह भी बताती है कि इस बाल पंचायत से जुड़ी चार बच्चियों की शादी हो चुकी है. बाल पंचायत के सदस्य आपस में चंदा करके शादी में गिफ्ट भी दिया था.

आगे हेमलता बताती हैं कि हर शनिवार को बाल सभा होती है, जिसमें बच्चे आपस में चुनाव करके बाल सभा का अध्यक्ष चुनते हैं. और फिर उसकी अध्यक्षता में बच्चे अपने-अपने कार्यक्रम पेश करते हैं.

बच्चे लिख रहे हैं नई इबारत

आज बघवानाला के इस बाल पंचायत ने आस-पास के इलाकों में एक नई इबारत लिखनी शुरू कर दी है. आस-पास के इलाकों में भी बच्चे प्रभावित होकर अपने यहां ऐसी ही बाल पंचायत स्थापित करने की मांग को लेकर वो लगातार बाल पंचायत के सदस्यों से मिल रहे हैं. बगल में इलाकों में भी बाल पंचायत की स्थापना अभी हाल के दिनों में हुई है. आज बच्चों की यह पंचायत अब पूरे देश के लिए एक मिसाल है.

बच्चों के इस बाल पंचायत को आरंभ कराने का सारा श्रेय जाता है पीपुल्स विजिलेन्स कमिटी ऑन ह्यूमन राईट्स (PVCHR) को… इसी संस्था ने सबसे पहले उत्तर प्रदेश के बनारस शहर के बघवानाला इलाके में इस पंचायत की शुरूआत की. अब इस संस्था ने उत्तर प्रदेश के 8 मदरसों में इस बाल पंचायत को आरंभ किया है.

बाल पंचायतों के नाम

अलग-अलग जगहों की बाल पंचायतों के अलग-अलग नाम हैं. जैसे सन्त कबीर बाल पंचायत, डॉ. भीमराव अम्बेडकर बाल पंचायत, लाल बहादुर शास्त्री बाल पंचायत, अब्राहम लिंकन बाल पंचायत, अबुल कलाम आजाद बाल पंचायत, सर सैय्यद अहमद खां बाल पंचायत, मदर टरेसा बाल पंचायत, हज़रत अहमद रज़ा बाल पंचायत, शेरशाह सूरी बाल पंचायत, अख्तर रजा बाल पंचायत…

उम्मीद हैं कि इन बाल पंचायतों के प्रयास बड़ों को भी अपनी ज़िम्मेदारी समझने के लिए प्रेरित करेंगे और एक सार्थक-शिक्षित और खुशहाल समाज का निर्माण हो सकेगा.

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