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BeyondHeadlines > India > आपबीतीः मध्यवर्गीय दंपती, शराबी युवक और दिल्ली पुलिस
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आपबीतीः मध्यवर्गीय दंपती, शराबी युवक और दिल्ली पुलिस

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published February 12, 2013 1 View
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8 Min Read
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Dilnawaz Pasha for BeyondHeadlines

आज शाम, करीब 6 बजे… मैं निर्माण विहार स्थित वी3एस मॉल से निकल रहा था. देखा तो एक युवक को चार युवक पीट रहे थे. एक दो बचाने की कोशिश भी कर रहे थे. लाइव मारपीट होती देख मैं भी वीडियो बनाने लगा. मुझे लगा कि ऐसे ही युवक आपस में लड़ रहे होंगे. तभी वहां खड़ी एक युवती ने बताया, बेचारा अपनी पत्नी और बच्चों के साथ है. यह सुनते है मैं उसे बचाने के लिए दौड़ा.

चारों युवक नशे में धुत्त थे… मेरे साथ भी बदसलूकी की… धक्का दिया… लेकिन पूरे घटनाक्रम का सबसे शर्मनाक पहलू यह था कि एक महिला जो अपनी चार महीने की बच्ची को गोद में लिए और चार साल की बेटी का हाथ पकड़े खड़ी थी, उसके सामने ही उसके पति को पीटा जा रहा था… और सैंकड़ों की तादाद में युवक-युवतियां तमाशबीन बने खड़े थे.

मैं पहुंचा, एक-दो युवक और बीच में आए तो नशे में धुत्त रईसजादों के तेवर थोड़े ढीले पड़े. लेकिन गालियां और पैसे के रौब का प्रदर्शन जारी रहा. मैंने पुलिस बुलाने की बात कही तो एक बोला- बुलाकर देख लो दिल्ली पुलिस को, उनके सामने ही हड्डिया तोड़ देंगे. इसी बीच हमले का शिकार हुए युवक ने पुलिस को कॉल कर घटना की जानकारी दी. मैंने भी 100 नंबर पर कॉल कर दिया. हम दोनों उन चारों को नहीं रोक सके. वह अपनी गाड़ी लेकर फ़रार हो गए. जाते-जाते उन्होंने उस व्यक्ति के बैग, जिसमें दुधमुही बच्ची का दूध और अन्य सामान था, पर गाड़ी चढ़ा दी.

पीसीआर कॉल के करीब 25 मिनट बाद मौके पर पहुंची. पीसीआर के आने तक मैं उस दंपति के डर और बैचेनी को महसूस करता रहा. युवक ने बताया- आज हमारी शादी की सालगिराह है, बड़ी हिम्मत करके पत्नी और बच्चों को बाहर लाया था, और यह सब हो गया. हम जैसे लोग तो घर से बाहर भी नहीं निकल सकते. सड़क पर चलना ही जना को आफत देना है. उसके पिता की हाल ही में मौत हुई है, मां डरी-डरी रहती है. वह सबकुछ भूलकर चले जाना चाहता था. लेकिन पत्नी की आंखों में दिखे खौफ ने उसे रोक दिया. बोला- मेरी पत्नी डरी हुई है, अगर मैं चला गया, और शिकायत नहीं की तो ऐसे ही आवारा लड़के किसी के भी साथ बेखौफ होकर यह हरकत कर सकते हैं. और शायद वह सारी उम्र डरती ही रहे.

 four drunk boys were assaulting a couple

पुलिस के आने में देर हो रही थी, उसकी बैचेनी और डर बढ़ता जा रहा था. इन 25 मिनटों के दौरान कई बार उसके मन में ख्याल आया कि मॉल के अंदर जाए, पत्नी के साथ एंजॉय करे और सबकुछ भूलकर घर चला जाए. डर उसके चेहरे पर झलक रहा था. वही डर, जो आमतौर पर हर मध्यमवर्गीय परिवार के व्यक्ति के चेहरे पर होता है, खासकर ऐसी स्थिति में. पुलिस का न पहुंचना उसके डर को बढ़ा रहा था. उसकी पत्नी बोली, ‘अब तक टीवी में सुनते थे, गुंडागर्दी-बदमाशी और लाचार दिल्ली पुलिस लेकिन आज अपने साथ यह हुआ तो इसका अहसास भी हो गया.’

खैर, इसी बीच पीसीआर मौके पर पहुंच गई. सिपाही ने अच्छे से बात सुनी, अपने दफ्तर फोन किया. लेकिन 5 मिनट तक वह यही सोचता रहा कि क्या करे क्या न करे. कुछ होता न देख मैंने दैनिक भास्कर का अपना विजिटिंग कार्ड सिपाही को पकड़ा दिया. अचानक उसके काम में तेजी आ गई. इसी बीच मैंने पूर्वी दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को फोन कर दिया, जिन्होंने तुरंत एसएचओ को फोन किया. और अगले पांच मिनट में जांच अधिकारी आनंद कुमार मौके पर पहुंच गए.

उन्होंने पूरी बात सुनी, मौके पर ही शिकायत लिखवाई, हमें ज़रूरत होने पर अस्पताल ले चलने की बात कही. पानी या जूस पीने का आग्रह किया (जिसे हमने ठुकरा दिया) यानि वह एक आदर्श पुलिस अधिकारी की तरह पेश आए. न शिकायत के लिए थाने चलने की बात कही और न ही मामले को रफा-दफा करने का कोई दबाव बनाया. दंपति की शादी की साल गिराह के बारे में पता चलने पर उन्हें शुभकामना दी और जांच करने का वादा करके वहां से चले गए. इस बीच उन्होंने पीड़ित युवक द्वारा दिए गाड़ी के नंबर का डाटा भी निकलवा लिया.

मैं भी दंपती को शुभकामनाएं और सहयोग का भरोसा देकर अपने मित्र के लक्ष्मी नगर स्थित घर आ गया. इस बीच मेरा फोन बंद हो गया. कुछ देर बाद फोन ऑन किया तो पता चला जांच के लिए प्रीत विहार के एसएचओ मनोज स्वयं मौके पर आए थे. उन्होंने एफआईआर दर्ज कर ली.

मुझे यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि एफआईआर की प्राथमिकताएं पूरी करने के लिए उन्होंने पीड़ित या मुझे थाने बुलाने के बजाए स्वयं जांच अधिकारी को घर पर भेजा. मौजूदा माहौल में पुलिस का इस तरह सहयोग करना मेरे लिए नया और अपनी तरह का पहला अनुभव था. रात करीब 11 बजे पीड़ित युवक ने मुझे फोन किया और दिल्ली पुलिस की तारीफ की. चार घंटे पहले जो युवक डरा हुआ था वह अब शांत और सहज लग रहा था. लेकिन फोन रखने से पहले उसने जो बात कही उसने मुझे बेचैन कर दिया. उसने कहा, ‘भाईसाब यह बताइये, अगर आप नहीं होते, आपने कमिश्नर साहब को फोन नहीं किया होता तो क्या दिल्ली पुलिस इतना अच्छा रेस्पांस देती.’ बस मैंने जबाव में इतना ही कहा, ‘भरोसा रखो, वह दिन भी आएगा जब एक आदमी भी अपने अधिकारों के बारे में पत्रकारों जितना जागृत हो जाएगा. तब उसे एफआईआर दर्ज करवाने के लिए पत्रकार या नेता होने की ज़रूरत नहीं होगा.’

इस बीच मेरे पास एसएचओ श्री मनोज का फोन आया. उन्होंने आरोपियों को गिरफ्तार करने का भरोसा दिया. मुझे भी यकीन हुआ कि वह ज़रूर अपनी जिम्मेदारी पूरी करेंगे. लेकिन एक सवाल मेरे मन में अभी भी है कि उस युवक को उन चार युवकों से भिड़ता हुआ देखकर लोग तमाशबीन क्यों बने रहे? क्यों युवा भीड़ बन गए? क्यों उन्होंने उन युवकों को रोकने की कोशिश नहीं की? आपके पास इन सवालों को कोई जबाव हो तो बताइये… क्योंकि मेरे लिए वह भीड़ आप ही हैं…

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