ओवैसी को बिहार चुनाव में जमाअत-ए-इस्लामी का समर्थन!

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By Afroz Alam Sahil

बिहार चुनाव में पहली बार उतरी ओवैसी की पार्टी ‘ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन’ (मजलिस) के लिए हौसला बढ़ाने वाली ख़बर है. ‘जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द’ ने सीमांचल के सीटों पर खुलकर असदुद्दीन ओवैसी को समर्थन देने का ऐलान किया है. वैसे तो पूरे बिहार में ‘जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द’ महागठबंधन के साथ है, लेकिन जहां बात महागठबंधन और मजलिस को चुनने की हो, वहां उनकी मुहर कुछ सीटों पर ओवैसी के साथ है.

अररिया में ‘जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द’ के अमीर-ए-मुक़ामी यानी स्थानीय अध्यक्ष मो. मोहसिन स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि –‘इस बार बिहार चुनाव में पब्लिक भी महागठबंधन के साथ है और जमाअत भी… ऐसे में इस बार मुसलमानों का वोट बंटेगा नहीं’ साथ ही वो यह भी कहते हैं कि –‘हैदराबाद की मजलिस भी पहली बिहार चुनाव में कुदी है, हमें उसे जीताना चाहिए. मजलिस का जहां अच्छा प्रत्याशी है, जमाअत वहां मजलिस का समर्थन करेगी.’

वहीं अररिया की स्थानीय संस्था ‘माईनॉरिटी डेवलपमेंट फोरम’ के मो. जुबैर आलम, जो ‘जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द’ के सदस्य (रूक्न) भी हैं, का कहना है कि –‘माहौल भी महागठबंधन के साथ है और हम लोग भी. कोचाधामन में हमलोग मजलिस को सपोर्ट करेंगे.’ हालांकि जुबैर आलम यह भी मानते हैं कि मजलिस ने जल्दबाज़ी की है, उसे बिहार चुनाव में नहीं आना चाहिए, इससे मुसलमानों का नुक़सान भी हो सकता है.

लेकिन कोचाधामन में ही मजलिस से जुड़े एक सदस्य का नाम न प्रकाशित करने के शर्त पर कहना है कि –‘जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द के साथ रहने या न रहने से यहां कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला. मुश्किल में यहां उनके एक या दो सदस्य होंगे और उन सदस्यों पर उपरी अधिकारियों की बातों का कितना असर होता है, इस सच से जमाअत खुद भी वाक़िफ़ है.’

‘जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द’ के बिहार के अमीर-ए-हल्क़ा यानी पूरे बिहार के अध्यक्ष अल्हाज नय्यरूज़्ज़मा का कहना है कि –‘जो भी उम्मीदवार चाहे वो किसी भी पार्टी का हो, क्रिमिनल न हो, जम्हूरी इक़दार को फ़रोग़ देने वाला हो, सेक्यूलर हो और जो शिद्दत पसंद पार्टी बीजेपी को हराने की क्षमता रखता हो, जमाअत उसको हर चुनाव में सपोर्ट करती है.’

यह पूछने पर क्या यह मान लिया जाए कि जमाअत महागठबंधन के साथ है, तो उनका कहना था –‘नहीं… कुछ जगहों पर हम उनके साथ नहीं हैं. लेकिन ज़्यादातर जगहों पर जमाअत महागठबंधन का समर्थन कर रही है.’ किन सीटों पर आप महागठबंधन के ख़िलाफ़ जा सकते हैं? इस पर उन्होंने कटिहार के बारसोई-बलरामपुर विधानसभा सीट का उदाहरण दिया. उन्होंने यह बताया कि यहां जमाअत सीपीआईएम के उम्मीदवार का समर्थन कर सकती है. लेकिन जब हमने उन्हें यह बताया है कि उनके द्वारा भरा गया हलफ़नामा बताता है कि वो क्रिमिनल बैकग्रांउड के हैं तो उन्होंने बताया कि –‘यहां हम मजलिस के उम्मीदवार आदिल हसन आज़ाद के समर्थन कर सकते हैं. क्योंकि हम यहां जदयू उम्मीदवार को साम्प्रदायिक उम्मीदवार मानते हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी राजनीतिक करियर की शुरूआत ही बाबरी मस्जिद के तोड़े गए पत्थर को दिखाकर की थी…’

वहीं किशनगंज में रहने वाले रिसर्च स्कॉलर नज़मुल होदा सानी का कहना है कि –‘‘बेगानी शादी में अब्दुल्लाह दीवाना’ शायद ये कहावत कुछ ज़्यादा हो जाएगी, लेकिन जमाअत की हक़ीक़त इसके क़रीब ज़रूर है. हक़ीक़त की बात करें तो पूरे हिन्दुस्तान में जमाअत के सिर्फ 5 से 6 हज़ार के बीच सदस्य (रूक्न) हैं और यदि उनके विचारों से सहमति रखने वालों को भी मिला लें तो हिन्दुस्तान की आबादी के मुक़ाबले में यह आंटे में एक चुटकी नमक के बराबर होगा.’

नज़मुल होदा आगे बताते हैं कि –‘जमाअत की हक़ीक़त तो यह है कि उनका दीनी पैग़ाम ही मुसलमानों का बहुत बड़ा तबका कभी अच्छी नज़र से नहीं देखता. ऐसे में आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उनका किसी के साथ राजनीतिक समर्थन करने का क्या असर होगा?’

खैर, बिहार की राजनीत में ओवैसी का क्या असर होगा? ये तो 8 नवम्बर को आने वाले चुनाव के नतीजे ही बताएंगे, मगर जिस तरह से ओवैसी को मिल्ली को मुसलमानों के मिल्ली तंज़ीमों की सरबराही हासिल हो रही है, उससे इतना तो ज़रूर कहा जा सकता है कि मुसलमानों के एक तबक़े में अपना खुद का विकल्प तलाशने की बेचैनी बढ़ती जा रही है. (Courtesy: TwoCircles.net)

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