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  • ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के पीछे की कहानी…

    ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के पीछे की कहानी…

    Irshad Ali for BeyondHeadlines

    हाल ही में मीडिया में ख़बरें आई कि जून 1984 में अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में चलाए गये ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के लिए इंदिरा गांधी ने तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री मारग्रेट थ्रैचर से सैन्य सहायता मांगी थी, और थ्रैचर द्वारा सैन्य मदद उपलब्ध करायी गयी थी. ब्रिटेन में सार्वजनिक हुए दस्तावेज के अनुसार स्वर्ण मंदिर में ब्रिटेन की स्पेशल एयर सर्विस (SAS) ने मदद की थी.

    सिक्ख समुदाय को भावनात्मक चोट पहुंचाने वाले ऑपरेशन के संबंध में सवाल है कि क्या यह ऑपरेशन ब्रिटेन की मदद से हुआ था? ब्रिटेन में तीस साल पुराने दस्तावेजों का खुलासा गोपनीयता कानून की मियाद ख़त्म होने के बाद हुआ है. इन दस्तावेजों की जांच के आदेश ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने दे दिये हैं. मामले की सच्चाई का पता जांच के बाद ही चलेगा, लेकिन ऑपरेशन के सैन्य कमांडर रहे पूर्व लेंफ्टिनेंट जनरल के.एस. बरार ने ऐसी किसी मदद से इंकार किया है.

    ब्रिटेन दस्तावेजों की जांच करा रहा है. लेकिन यह भी जानने का विषय है कि आखिर ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ की आवश्यकता क्यों पड़ी?

    इस ऑपरेशन की पृष्ठभूमि जानने के लिए इतिहास में जाने की ज़ररुत है. 1920 में सिक्खों की राजनीतिक शाखा के रुप में अकाली दल स्थापित हुआ. इसने ‘पंजाबी भाषी सूबे’ के गठन के लिए आंदोलन चलाया.

    1950 के दशक में देश में कई राज्य भाषाई आधार पर गठित हो चुके थे. 1966 में पंजाब का भी गठन हो गया, लेकिन 1967 और 1977 में अकाली दल आया मगर गठबंधन के साथ. जिससे अकालियों को स्पष्ट हो गया कि पुनः गठन के बाद भी उनकी राजनीतिक स्थिति अच्छी नहीं है. 1970 के दशक में इन परिस्थितियों के मद्देनज़र अकाली दल के एक वर्ग ने पंजाब स्वयत्तता की मांग उठायी. 1973 में आनंद साहिब सम्मेलन में स्वयत्तता की मांग उठाते हुए केंद्र-राज्य संबंधों को पुनर्भाषित करने की मांग की गई. इसमें एक प्रस्ताव के माध्यम से केंद्र के पास विदेश संबंध, रक्षा व बजट जैसे विषय रखने और बाकी क्षेत्राधिकार राज्यों को देने की मांग शामिल थी. जिससे यह सम्मेलन ही विवादित हो गया.

    बाद में कुछ चरमपंथी वर्गों ने भारत से अलग पंजाब को सिक्ख राज्य के रुप में ‘खालिस्तान’ निर्मित करने की मांग उठायी. परिणामस्वरुप स्वायत्त सिक्ख अस्तित्व को लेकर चला आंदोलन हिंसात्मक और काफी उग्र हो चुका था. उग्रवादियों ने अमृतसर स्थित अमृतसर मंदिर को अपना मुख्यालय बना लिया. जिससे स्वर्ण मंदिर एक हथियार बंद अड्डे के रुप में प्रयोग होने लगा.

    ‘खालिस्तान’ के लिए हुए इस विद्रोह से पवित्र स्वर्ण मंदिर का तो अपमान हुआ ही, साथ में भारतीय संविधान के अनुच्छेद (1) को भी चुनौती दी गई. क्योंकि अनुच्छेद (1) कहता है कि ‘India shall be a union of states’ अर्थात भारत राज्यों का एक संघ होगा.

    किसी भी राज्य को संघ से अलग होने का अधिकार नहीं है. जिस तरह की व्यवस्था अमेरिका में है, वैसी ही भारत ने अपनाई है. मतलब साफ है कि खालिस्तान रुपी स्वतंत्र राज्य की मांग नाज़ायज थी.

    देश के कानून में भी स्पष्ट है कि देश की सेना या कोई भी अधिकारी धार्मिक स्थलों में हथियारों के साथ प्रवेश नहीं करेगा और न ही कोई सैन्य कार्रवाई. लेकिन 1984 में जब स्वर्ण मंदिर को ही उग्रवादियों ने अपना अड्डा बना लिया और किसी भी प्रकार वहां से निकलने को तैयार नहीं हुए तो इंदिरा सरकार द्वारा जून 1984 में ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ शुरु किया गया.

    इस ऑपरेशन का उद्देश्य उग्रवादियों को बाहर निकालना था. ऑपरेशन के अंजाम के दिन के संबंध में तब प्रकाशित नई दुनिया अख़बार की रिपोर्टस के अनुसार ‘सेना ने एक साथ पंजाब के स्वर्ण मंदिर सहित 38 गुरुद्वारों, पांच मंदिरों और 1 मस्जिद में प्रवेश किया’. इस प्रकार स्वर्ण मंदिर को खाली करा लिया लेकिन उग्रविदयों और सेना के बीच हुई गोलीबारी में 56 सैनिक और 269 उग्रवादी मारे गये और स्वर्ण मंदिर को भी काफी नुक़सान पहुंचा.

    भारतीय सिक्खों और प्रवासी सिक्खों ने इस सैन्य अभियान को अपनी आस्था पर आक्रमण के रुप में देखा. इसलिए सिक्खों में बदले की भावना जोर पकड़ गई और 31 अक्टूबर 1984 के दिन इंदिरा गांधी की उन्हीं के अंगरक्षकों द्वारा हत्या कर दी गई. यह सत्य है कि ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ से सिक्ख समुदाय को व्यापक भावनात्मक हानि पहुंची. मगर उससे कहीं ज्यादा भयावह स्थिति तब पैदा हुई जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिक्ख समुदाय के खिलाफ हिंसा भड़की. हिंसा में दिल्ली, कानपुर, बोकारों आदि शहरों में हजारों की संख्या में सिक्खों को मार डाला गया.

    मगर सवाल यह है कि क्या धार्मिक स्थलों की आड़ में उग्रवाद जैसी गतिविथियों को सहन किया जा सकता है? निश्चित रुप से नहीं, क्योंकि अगर ऐसा किया गया तो धार्मिक स्थल उग्रवादियों के गढ़ बन जाएंगे और देश भर में अराजकता व अशांति का माहौल पैदा हो जाएगा.

    ज़रुरत इस बात की है कि धार्मिक स्थलों की कड़ी से कड़ी सुरक्षा की जाए ताकि कोई उग्रवादी उनमें प्रवेश कर उनकी पवित्रता का हनन न कर पाए.

    ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ दुर्भाग्यपूर्ण था. शायद उस समय इसके बिना उग्रवादियों को निकाल पाना मुश्किल था. अब चुनावी वर्ष में आया यह मुद्दा ब्रिटेन में जांचाधीन है. इस सैन्य कार्रवाई में शामिल रहे कमांडरों ने उस समय ब्रिटिश सरकार से किसी भी प्रकार की सहायता लेने से इंकार किया है.

    लेकिन यदि जांच में यह तथ्य सामने आते हैं कि भारत सरकार ने  ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के लिए लंदन से मदद ली थी तो इससे भारतीय सिक्खों और प्रवासी सिक्खों में भारत और ब्रिटिश के प्रति नाराज़गी बढ़ेगी. साथ ही, भारत सरकार पर घरेलू मामलों में किसी अन्य देश को पार्टी बनाने के संबंध में भी सवाल उठेंगे. ख़ैर अभी जांच की रिपोर्ट का इंतजार करने की ज़रुरत है.

  • ऑपरेशन ब्लू स्टार : क्या यह गलत योजना का नमूना था?

    ऑपरेशन ब्लू स्टार : क्या यह गलत योजना का नमूना था?

    Anurag Bakshi for BeyondHeadlines

    ऑपरेशन ब्लू स्टार भारतीय सेना द्वारा 3 से 6 जून 1984 को सिख धर्म के सबसे पावन धार्मिक स्थल अमृतसर स्थित हरिमंदिर साहिब परिसर पर की गयी कार्रवाई का नाम है.

    29 वर्ष पहले 5 जून 1984 की उस रात की टीस अब भी यहां महसूस की जा सकती है. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर में छिपे चरमपंथियों के खिलाफ सैनिक कार्रवाई का आदेश दे दिया जो ऑपरेशन ब्लू स्टार के नाम से चर्चित हुआ.

    5 जून को सेना ने टैंकों की आड़ में स्वर्ण मंदिर पर धावा बोल दिया. देश में पहली बार आस्था के सबसे बड़े मंदिर को आतंकवादियों के चंगुल से छुड़ाने के लिए हथियारबंद होकर पहुंची सेना ने मंदिर को आतंकियों से आजाद कराने में सफलता तो हासिल कर लिया, लेकिन साथ ही गहरे जख्म भी दे गया. इस कार्रवाई में लगभग 800 चरमपंथी और 200 जवान मारे गए. बाद में इंदिरा गांधी को इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी.

    Photo Courtesy: newshopper.sulekha.com

    5 जून 1984 को समय शाम 7 बजे ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू हो चुका था. सेना का मिशन अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों के चंगुल से छुड़ाना था. सिख चरमपंथी नेता संत जरनैल सिंह भिंडरावाले ने स्वर्ण मंदिर में ही शरण ली थी. बातचीत से बात न बनी तो सेना ने मार्च में ही स्वर्ण मंदिर को चारों ओर से घेर लिया.

    मंदिर परिसर के बाहर दोनों ओर से रुक-रुक कर गोलियां चल रही थीं. सेना को जानकारी थी कि स्वर्ण मंदिर के पास की 17 बिल्डिंगों में आतंकवादियों का कब्जा है. इसलिए सबसे पहले सेना ने स्वर्ण मंदिर के पास होटल टैंपल व्यूह और ब्रह्म बूटा अखाड़ा में धावा बोला जहां छिपे आतंकवादियों ने बिना ज्यादा विरोध किए समर्पण कर दिया.

    रात साढ़े दस बजे के करीब शुरुआती सफलता के बाद सेना ऑपरेशन ब्लू स्टार के अंतिम चरण के लिए तैयार थी. कमांडिंग ऑफिसर मेजर जनरल केएस बरार ने अपने कमांडों को उत्तरी दिशा से मंदिर के भीतर घुसने के आदेश दिए. लेकिन यहां जो कुछ हुआ उसका अंदाजा बरार को नहीं था. चारों तरफ से कमांडों पर फायरिंग शुरू हो गई. मिनटों में 20 से ज्यादा जवान शहीद हो गए.

    जवानों पर अत्याधुनिक हथियारों और हैंड ग्रेनेड से हमला किया जा रहा था. अब तक साफ हो चुका था कि बरार को मिली इंटेलिजेंस सूचना गलत थी. सेना की मुश्किलें बढ़ती जा रही थीं. हरमिंदर साहिब की दूसरी ओर से भी गोलियों की बारिश हो रही थी. लेकिन बरार को साफ निर्देश थे कि हरमिंदर साहिब की तरफ गोली नहीं चलानी है. नतीजा ये हुआ कि सेना की मंदिर के भीतर घुसने की तमाम कोशिशें बेकार गईं और घायलों व मृतकों की संख्या बढने लगीं.

    आधी रात तक सेना मंदिर के अंदर ग्राउंड फ्लोर भी साफ नहीं कर पाई थी. बरार ने अपने दो कमांडिंग अफसरों को आदेश दिया कि वो किसी भी तरह पहली मंजिल पर पहुंचने की कोशिश करें. सेना की कोशिश थी किसी भी सूरत में अकाल तख्त पर कब्जा जमाने की. जो हरमिंदर साहिब के ठीक सामने है. यही भिंडरावाले का ठिकाना था, लेकिन सेना की एक टुकड़ी को छोड़ कर कोई भी मंदिर के भीतर घुसने में कामयाब नहीं हो पाया था.

    अकाल तख्त पर कब्जा जमाने की कोशिश में सेना को एक बार फिर कई जवानों की जान से हाथ धोना पड़ा. सेना की रणनीति बिखरने लगी थी. तमाम कोशिशों के बाद अब साफ होने लगा था कि आतंकवादियों की तैयारी ज़बरदस्त है और वो किसी भी हालत में आत्मसमर्पण नहीं करेंगे. सेना अपने कई जवान खो चुकी थी. इस बीच मेजर जनरल के एस बरार के एक कमांडिंग अफसर ने बरार से टैंक की मांग की.

    बरार ये समझ चुके थे कि इसके बिना कोई चारा भी नहीं है. सुबह होने से पहले ऑपरेशन खत्म करना था. बरार को सरकार से टैंक इस्तेमाल करने की इजाजत मिली. लेकिन टैंक इस्तेमाल करने का मतलब था मंदिर की सीढि़यां तोडना. सिक्खों के सबसे पवित्र मंदिर की कई इमारतों को नुक़सान पहुंचाना. सुबह करीब 5 बजकर 21 मिनट पर सेना ने टैंक से पहला वार किया.

    आतंकवादियों ने अंदर से एंटी टैंक मोर्टार दागे. अब सेना ने कवर फायरिंग के साथ टैंकों से हमला शुरू किया. चारों तरफ लाशें बिछ गईं. सूरज की रोशनी ने उजाला फैला दिया था. अब तक अकाल तख्त सेना के कब्जे से दूर था और सेना को जानमाल का नुकसान बढ़ता जा रहा था. इसी बीच अकाल तख्त में जोरदार धमाका हुआ. सेना को लगा कि ये धमाका जानबूझकर किया गया है ताकि धुएं में छिपकर भिंडरावाले और उसका मिलिट्री मास्टरमाइंड शाहबेग सिंह भाग सकें. सिक्खों की आस्था का केंद्र अकाल तख्त को जबरदस्त नुक़सान हुआ.

    अचानक बड़ी संख्या में आतंकवादी अकाल तख्त से बाहर निकले और गेट की तरफ भागने लगे, लेकिन सेना ने उन्हें मार गिराया. उसी वक्त करीब 200 लोगों ने सेना के सामने आत्मसमर्पण किया. लेकिन अब तक भिंडरावाले और उसके मुख्य सहयोगी शाहबेग सिंह के बारे में कुछ पता नहीं लग पा रहा था. भिंडरावाले के कुछ समर्थक सेना को अकाल तख्त के भीतर ले गए जहां 40 समर्थकों की लाश के बीच भिंडरावाले, उसके मुख्य सहयोगी मेजर जनरल शाहबेग सिंह और अमरीक सिंह की लाश पड़ी थी.

    अमरीक भिंडरावाले का करीबी और उसके गुरु का बेटा था. 06 तारीख की शाम तक स्वर्ण मंदिर के भीतर छिपे आतंकवादियों को मार गिराया गया था लेकिन इसके लिए सेना को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. सिक्खों की आस्था का केन्द्र अकाल तख्त नेस्तनाबूद हो चुका था.

    इस वक्त तक किसी को अंदाजा नहीं था कि ये घटना पंजाब के इतिहास को हमेशा के लिए बदलने वाली है. स्वर्ण मंदिर के बाद मंदिर परिसर के बाहर की बिल्डिंगें खाली करवाने में सेना को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी. हालांकि पूर्व सेना अधिकारियों ने ऑपरेशन ब्लू स्टार की जमकर आलोचना की. उनके मुताबिक ये ऑपरेशन गलत योजना का नमूना था.