इस धरती पर जन्म लेने का भी अधिकार नहीं है?

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Fehmina Hussain for BeyondHeadlines

जब पूरा देश अन्तर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस को सेलिब्रेट करने में व्यस्त था. जब मानव के अधिकार पर पूरे देश में लम्बी-लम्बी तक़रीरें की जा रही थी. ठीक उसी समय हरियाणा के भिवानी शहर में चार छात्राओं पर कॉलेज में जींस और टीशर्ट पहनने पर सौ-सौ रुपये का कथित रूप से जुर्माना लगा दिया गया.

इसके पीछे भिवानी आदर्श महिला महाविद्यालय की प्रिंसिपल अल्का शर्मा का तर्क था कि इससे छेड़छाड़ जैसी घटनाओं को रोकने और कालेज में शालीनता बनाये रखने में मदद मिलेगी. प्रिंसिपल अल्का शर्मा का यह भी तर्क है कि जींस और टीशर्ट पूरी तरह से पश्चिमी पहनावा है. ये छोटी ड्रेस छात्राओं के शरीर को पूरी तरह से ढक नहीं पाती है और यही कारण है कि उन्हें छेड़छाड़ का सामना करना पड़ता है जिसकी वजह से माता पिता और कालेज प्रशासन को समस्या का सामना करना पड़ता है.

वहीं उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यक्रम के दौरान लड़कियों के काले कपड़े पहनने की इजाजत नहीं मिली. बिजनौर जिला प्रशासन का आदेश था कि कोई भी लड़की इस कार्यक्रम में काला कपड़ा नहीं पहनेगी.

मुझे समझ नहीं आता कि हमारे देश में यह हो क्या रहा है? आखिर हमारी पुरूषवादी मानसिकता कब बदलेगी? क्या महिलाओं के मानव अधिकार नहीं होते? क्या उन्हें अपनी मर्जी से जीने का अधिकार नहीं हैं? क्या वो अपने मर्जी से अब कपड़े भी नहीं पहन सकती? आखिर यह कैसा तर्क है कि जींस टॉप पर रोक भर लगा देने से छेड़छाड़ जैसी घटनाओं को रोकने और शालीनता बनाये रखने में मदद मिलेगी? आखिर किसी को काले कपड़े पहनने से रोका कैसे जा सकता है? बुरके का रंग भी काला होता है, तो फिर किसी बुरका पहनने से कैसे रोका जा सकता है? क्या यह महिलाओं के मानव अधिकारों का हनन नहीं है?

मानव अधिकार तो सबका जन्म सिद्ध अधिकार है. यह वह अधिकार है जो इंसान को किसी देश का नागरिक होने के लिए नहीं, बल्कि एक इंसान होने के नाते मिलते हैं.  हम सभी जानते हैं कि प्रत्येक मानव आज़ाद पैदा होता है. इसकी इच्छा होती है कि वह आज़ादी के साथ अपना जीवन व्यतीत करे. वह उस माहौल में जीए, जहां किसी भी प्रकार के डर व भय का स्थान न रहे. किसी के साथ बदसलूकी न हो. कोई भी ज़ुल्मों-सितम का शिकार न बने. किसी के अधिकारों का हनन न हो. किसी का शोषण न हो. सदियों पुरानी ये मानवीय इच्छाएं, आज तक इच्छा ही बनी हुई है. अफसोस तो यह है कि  “मानव अधिकार दिवस” सहित साल के 365 दिन दुनिया भर में मानव अधिकारों का हनन होता रहता है. कभी खाप अपना फरमाम जारी करती है तो कभी मुल्ला-मौलवी अपना फतवा सुना देते हैं.

आखिर यह कैसी विडंबना है कि पहले बेटों की चाह में बेटियों को जन्म के पश्चात मौत के घाट उतार दिया जाता रहा पर अब आधुनिकीकरण के युग ने बच्चियों से जन्म लेने का अधिकार भी छीना जा रहा है. ऐसे में तमाम मानव अधिकारों की बातें तो भूल जाइए. कोई बस इतना बता दे कि क्या लड़कियों को अब इस धरती पर जन्म लेने का भी अधिकार नहीं है? ऐसे में यह अन्तर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस हमारे लिए एक ढ़ोंग से बढ़कर कुछ भी नहीं है.

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