BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Reading: मुसलमानों की दशा एवं दिशा: कहना बहुत मुश्किल है…
Share
Font ResizerAa
BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
Font ResizerAa
  • Home
  • India
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Search
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Follow US
BeyondHeadlines > Latest News > मुसलमानों की दशा एवं दिशा: कहना बहुत मुश्किल है…
Latest NewsLeadबियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी

मुसलमानों की दशा एवं दिशा: कहना बहुत मुश्किल है…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published June 25, 2012
Share
9 Min Read
SHARE

अब्दुल वाहिद आज़ाद

भारत का दूसरा सबसे बड़ा बहुसंख्यक ‘मुसलमान’ अपने देशवासियों की तुलना में राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक क्षेत्रों में पिछड़ा हुआ हैं. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट ने भी कहा कि मुसलमान देश के ‘नए दलित’ हैं और सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्तर पर इनकी हालत दैनीय है.

मुसलमानों के इस पिछड़ेपन के कई कारण बताए जाते हैं. मुस्लिम समाज का एक बहुत बड़ा समूह इस पिछड़ेपन के लिए सरकार को दोषी ठहराता है. जबकि एक तबक़ा इसके परे अपने पिछड़ेपन के लिए खुद को ही ज़िम्मेदार मानता है.

सच यह है कि मुसलमानों के पिछड़ेपन के कई पहलू हैं और इसके लिए सिर्फ मुसलमान और सरकार ही ज़िम्मेदार नहीं है, बल्कि इनके पिछड़ेपन के अनेकों कारण हैं.

मुसलमानों के पिछड़ेपन के कारणों की तलाश से पहले इस सच्चाई से रू-ब-रू होना अतिआवश्यक है कि भारतीय मुसलमान न सिर्फ पिछड़ेपन की बोझ तले दबा हुआ है बल्कि 1947 में ब्रिटेन से सत्ता के हस्तांतरण और देश के बंटवारे ने मुसलमानों को अपने ही देश में मुजरिम बना दिया, क्योंकि बंटवारे की पूरी ज़िम्मेदारी मुसलमानों की सर पर बांधी गई. इसके साथ ही बंटवारे ने पुराने ज़ख्मों को उधेड़ा है और इसके फलस्वरूप मुसलमानों को बंटवारे के गुनाह की सज़ा के साथ-साथ आठवीं सदी में सिंध पर हमला करने वाले मुहम्मद क़ासिम और इनके साथ अफग़ान, तुर्क, मुग़ल एवं दूसरे मुसलमान बादशाहों ने अपनी हिन्दू जनता के साथ जो अत्याचार किए थे उसकी भी क़ीमत चुकानी पड़ी और असका पटार्पण हिन्दू-मुस्लिम दंगों के समय साफ़ झलकता है.

बहरहाल, मुसलमानों के पिछड़ेपन पर मुसलमानों के बीच ही विभिन्न मत हैं. मुस्लिम समाज में इस मत पर आम सहमती है कि मुसलमानों का बेड़ा ग़रक करने में सरकार की नीतियां, खुद मुसलमानों का रवैया और संघी हिन्दुओं के पूर्वाग्रह ने बहुत बड़ा रोल अदा किया है. लेकिन किस को कितना श्रेय दिया जाए, इस पर मतभेद है.

मुसलमानों के बुद्धिजीवी तबक़ा का कहना है कि मुसलमानों ने शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया, जिसकी वजह से मुसलमानों के भीतर ‘कट्टरपंथ’ का खात्म नहीं किया जा सका और मुसलमानों ने पहचान और भावनात्मक मुद्दों पर आवश्यकता से अधिक ज़ोर दिया, जबकि समाज के भीतर आर्थिक प्रगति के लिए कोई क़दम नहीं उठाए गए. बुद्धिजीवी तबक़ा का यह भी मानना है कि सरकार की ओर से मुसलमानों के विकास के लिए पर्याप्त उपाय नहीं किए गए, विशेष रूप से शिक्षा के साथ राजनीतिक प्रतिनिधित्व को पूरी तरह से नकार दिया गया. आर्थिक उन्नति के लिए सरकार ने नाम मात्र काम किया क्योंकि जो प्रोग्राम भी बनाए गए, उसे भी सही ढंग से क्रियान्वित नहीं किया गया.

जब बुद्धिजीवी तबक़ा मुसलमानों के पिछड़ेपन के लिए सरकार को ज़िम्मेदार ठहराता है तो मुसलमानों के भीतर मौजूद उग्र विचारधारा के प्रवर्तकों को बल मिलता है और वह अपने को दोषी मानने के बजाए कट्टरपंथी हिन्दुओं पर इस पिछड़ेपन का सारा दोष मढ़ देते हैं. उनका तर्क है कि राष्ट्रवादी हिन्दुओं ने मुसलमानों के सामने ऐसी-ऐसी समस्याएं खड़ी कीं कि मुसलमान इससे छुटकारा पाने में ही लगे रह गए और रचनात्मक कार्य के लिए समय ही नहीं निकाल पाए.

इनकी दलील है कि एक से ज़्यादा शादी करना, ज़्यादा बच्चे पैदा करना, पाकिस्तान का समर्थन करने वाला, हिंसात्मक प्रवृति वाला होना, मूर्ति भंजक, दूसरे धर्मों का अनादर करने वाला, धर्म परिवर्तन कराने वाला, हिन्दुओं को काफिर कहने वाला, जैसे दोष समय-समय पर मुसलमानों के माथे पर मढ़ते रहे हैं जबकि इनमें सच्चाई नहीं है. उनका कहना है कि जब देश में एक हज़ार पुरूष पर केवल 933 महिलाएं हैं तो मुसलमान बहुविवाह करके ज़्यादा बच्चे कैसे पैदा कर सकता है? और इसके विपरित सच्चाई यह है कि बहुविवाह की प्रथा हिन्दुओं में अधिक है.

उसी तरह काफ़िर जैसे शब्दों के सही अर्थ को हमारे हिन्दू भाई आत्मसात नहीं करते और हंगामा करते हैं और अपने द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले शब्द ‘म्लेक्षा’ की बात बिल्कुल भूल जाते हैं. इस सोच के प्रवर्तक मुसलमानों का कहना है कि मुसलमानों पर लगाए गए इन दोषों के बढ़ावा के लिए तथाकथित देश का सेक्यूलर मीडिया भी ज़िम्मेदार है जिसका ऐसे विषयों पर रोल पूर्वाग्रह से ग्रसित और हिन्दुओं की तरफदारी करने वाला होता है.

उग्र विचारधारा वाले मुसलमानों के उपर्युक्त तर्क को मुस्लिम बुद्धिजीवी  कुतर्क की संज्ञा देता है और कहता है कि शाहबानों मामले के बाद हिन्दू संगठन मुसलमानों के खिलाफ लामबद्ध हुए हैं. जबकि 1984 में गोपाल सिंह की रिपोर्ट भी मुसलमानों को बदहाल माना था और बुद्धीजीवी तबक़ा उल्टे उग्र विचारधारा वाले मुसलमानों पर इल्ज़ाम लगाते हैं कि शाहबानों के मामले को तूल देकर उन्होंने खुद हिन्दू संगठन को ऑक्सीजन दे दिया,वरना 1986 से पहले उन्हें पूछने वाला ही कोई नहीं था.

बुद्धिजीवी तबक़ा इस बात को स्वीकार नहीं करता कि हिन्दुओं के द्वारा खड़े किए गए समस्याओं के कारण मुसलमान विकास का काम नहीं कर सके बल्कि वो उल्टे उन्हीं मुसलमानों को ज़िम्मेदार ठहराते हुए तर्क देते हैं कि उग्रवादी विचारधारा वाले मुसलमान और मुल्ला कंपनी का रोल हमेशा ही नकारात्मक रहा है और इसी कारण मुसलमान यथार्थवाद के उल्टे भावनात्मक रहा है.

शिक्षा और आर्थिक उन्नति के लिए काम करने के उलट दूसरी अनावश्यक चीज़ों पर ज़्यादा ज़ोर दिया. दाढ़ी की लंबाई कितनी होगी? सह-शिक्षा पद्धति होनी चाहिए या नहीं? अंग्रेज़ी शिक्षा होनी चाहिए या नहीं? टेलीवीज़न का देखना धार्मिक दृष्टिकोण से सही है या नहीं? बैंक से लेन-देन जायज़ है या नहीं? जैसे प्रश्नों से उलझता रहा है. साथ ही जब वैज्ञानिक चांद पर जाने की तैयारी कर रहे थे तो ये मुल्ला, मौलवी और इमाम हज़रात उन वैज्ञानिकों का मज़ाक उड़ा रहे थे. इसी तरह जब वैक्सीन आया तो यही मुल्लाओं ने कहा कि बीमारी से पहले इलाज नहीं और इसका विरोध किया और कभी लाउडस्पीकर और यहां तक कि बिजली के प्रयोग तक को इस्लाम विरोधी माना.

बहरहाल, समय बदला और संभावनाएं भी आईं. सरकार अपने 15 करोड़ जनता को पीछे छोड़कर देश की प्रगति की बात नहीं कर सकती है और मुसलमान भी अपने समाज को विकास की पटरी पर दौड़ाना चाहता है, लेकिन फिर सवाल घूम कर वहीं आ जाता है कि ऐसा क्या किया जाए जिससे मुस्लिम समाज के अंधकारमय वर्तमान में रोशनी की लौ फूट सके.

यह एक परम सत्य है कि विकास की पटरी दौड़ाने के लिए सरकार की भागीदारी प्रत्येक क्षेत्र में अति आवश्यक है. इसका यह कदापि अर्थ नहीं है कि मुसलमान अपने विकास के लिए खुद कोई क़दम न उठाए.

अब मामला विकास की पटरी दौड़ाने का है. विश्लेषकों की राय है कि सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक केन्द्रों में आरक्षण एक अहम कड़ी साबित हो सकती है. साथ ही यह भी कहा जाता रहा है कि आरक्षण के बजाए आर्थिक और जातिगत आधार पर सरकार मुसलमानों के लिए सकारात्मक कार्य के अंतर्गत कोई ठोस पहल करे तो ज़्यादा अच्छा होगा. जैसे वैंकों से क़र्ज़ आसानी से मिले, सरकारी कल्याण के स्कीमों में मुसलमानों की भी भागीदारी हो. मुस्लिम इलाक़ों में स्कूल, अस्पताल और कॉलेज खुले तो बेहतर होगा. लेकिन सवाल यह है कि मस्जिदों से अमेरिकी विरोधी तक़रीरें तो हो सकती हैं, लेकिन शिक्षा की अहमियत पर बात नहीं करने वाले साथ-साथ तसलीमा नसरीन के पीछे पड़ने वाला मुसलमान अपनी आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक विकास के लिए कब समय निकाल पाएगा, कहना बहुत मुश्किल है.


TAGGED:मुसलमानों की दशा
Share This Article
Facebook Copy Link Print
What do you think?
Love0
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0
Waqf Under Siege: “Our Leaders Failed Us—Now It’s Time for the Youth to Rise”
Lead Waqf Facts
The Earth Shook in Istanbul — But What If It Had Been Delhi?
I Witness World Young Indian
30 Muslim Candidates Selected in UPSC, List is here…
Education India Young Indian
World Heritage Day Spotlight: Waqf Relics in Delhi Caught in Crossfire
Waqf Facts Young Indian

You Might Also Like

Latest News

Urdu newspapers led Bihar’s separation campaign, while Hindi newspapers opposed it

May 9, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

OLX Seller Makes Communal Remarks on Buyer’s Religion, Shows Hatred Towards Muslims; Police Complaint Filed

March 8, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

Shiv Bhakts Make Mahashivratri Night of Horror for Muslims Across India!

March 4, 2025
Edit/Op-EdHistoryIndiaLeadYoung Indian

Maha Kumbh: From Nehru and Kripalani’s Views to Modi’s Ritual

February 7, 2025
Copyright © 2025
  • Campaign
  • Entertainment
  • Events
  • Literature
  • Mango Man
  • Privacy Policy
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?