श्यामाकांत झा
अधिक पीछे नहीं, सुशासन सरकार के बीते सिर्फ तीन माह पूर्व की आपराधिक घटनाओं और व्यवस्थागत नाकामियों पर ग़ौर करें तो आप दृढ़तापूर्वक कह सकते हैं कि सुशासन इन दिनों सांसत में है. आख़िर हो क्या रहा है?
हर दिन दर्जनों हत्याएं, बलात्कार, अपहरण, लूट और ठगी के समाचार पढ़ने, सुनने और देखने को मिल रहे हैं. अधिकांश सरकारी योजनाएं अफसरशाही, प्रशासनिक अकर्मण्यता और जड़ता की भेंट चढ़ रही है. सेवा यात्रा के दौरान स्वयं नीतिश भी अस हक़ीक़त से रू-ब-रू हुए कि मध्याह्न भोजन योजना, साईकिल और पोषक योजनाएं भी बच्चों और बच्चियों को सरकारी सरकारी स्कूलों में पढ़ने आने के लिए आकर्षित नहीं कर पा रही हैं. विभिन्न मौक़ों पर गठित जांच आयोग समय बीत जाने के बाद भी अपनी रिपोर्ट पूरी तरह नहीं सौंप सकी है. शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, भूमि-सुधार, सिंचाई, बाढ़-नियंत्रण, औद्योगिक विकास, विद्युत अत्पादन तथा ग्रामीण सड़क निर्माण में से प्रत्येक क्षेत्र में योजनाओं के क्रियान्वयन की रफ्तार संतोषप्रद नहीं है. सबसे बुरी स्थिति क़ानून-व्यवस्था की है. लगता है कि सूबा फिर पीछे की ओर चलना शुरू कर दिया है. अपराधी बेलगाम हैं. असमाजिक तत्वों एवं अपराधियों में क़ानून का ख़ौफ़ समाप्त होता जा रहा है. लालू-राबड़ी के तथाकथित जंगलराज में भी तो यही सब होता था.
हैरत की बात है कि स्पीडी ट्रायल के इनोवेटिव आइडिया से सुशासन-1 में छाए रहने वाले वर्तमान डीजीपी अभयानंद भी अब अपराधी तत्वों पर लगाम लगाने में नाकामयाब साबित हो रहे हैं. शराब व्यवसायियों के बीच आपसी वर्चस्व की लड़ाईयों में लगातार लाशें गिर रही हैं. उधर रण्वीर सेना सुप्रीमो बरमेश्वर मुखिया की हत्या ने भी सरकार को हिलाकर रख दिया.
यक़ीनन नीतिश की अब तक की सफलता और लोकप्रियता का मूल आधार क़ानून व्यवस्था में सुधार था जिस पर संकट आ खड़ा हुआ है. बिगड़ी क़ानून व्यवस्था के मद्देनज़र अगले चरण की (भोजपूर) सेवा यात्रा को नीतिश कुमार ने स्थगित कर दिया है. जो भी हो अब तो सुशासन बाबू को लगातार बद से बदतर होती जा रही विधी व्यवस्था को, अन्य सभी समस्याओं के मुक़ाबले प्राथमिकता देकर पटरी पर लाने की क़वायद तेज़ करनी ही होगी, अन्यथा लालू-राबड़ी के तथाकथित जंगलराज को क़ानून के राज में तब्दील करने की उनकी अब तक की उपलब्धियों पर बेवजह पानी फिर जाएगा…
(लेखक मासिक ‘लोक-प्रसंग’ के संपादक हैं.)