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पहले लुटी ज़मीन, बहु-बेटियां फिर नंगे बदन से खाल भी गई

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published July 10, 2012
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7 Min Read
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Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

बीते रविवार को आमिर खान ने ‘सत्यमेव जयते’ में दलितों से भेदभाव और छुआछूत का मुद्दा उठाया तो हमारी भावनाएं उमड़ आईं. गांधीवाद को आदर्शवाद कहते हुए हमने ट्विटर और फेसबुक पर दलित प्रेम और सामाजिक सदभावना का इनता प्रदर्शन किया कि बस ट्रेंडिंग टॉपिक्स में यही नजर आने लगे. और अभी हाल ही में, एनसीईआरटी की किताब में कई सालों से प्रकाशित एक कार्टून पर जब संसद में दलित नेताओं ने आपत्ति जताई तो हमारी पूरी संसद ने एकसुर में इसका पूरजोर विरोध किया.

माननीय मंत्री कपिल सिब्बल जी ने इस कार्टून को देश का दुर्भाग्य क़रार दिया. संसद में हमारे सांसदों ने ऐसा दलित प्रेम दिखाया कि लगने लगा अब हमारे देश में सब बराबर हैं. संविधान ने जो सबको बराबरी का हक दिया है वो कागजी पन्नों से निकलकर वास्तव में भी दिखने लगा है. सच में हमने प्रगति कर ली है. कितना अच्छा है ना यह सब.

अगर आप आमिर खान द्वारा टीवी और नेताओं द्वारा संसद में दलित प्रेम की बात सुनकर खुश हैं तो ज़रा खुशफहमी से बाहर आईये. हकीकत को देखने की कोशिश कीजिये. क्योंकि जिस वक्त संसद में दलित प्रेम का प्रदर्शन हो रहा था और सत्यमेव जयते में दलितों पर अत्याचार को सबसे बड़ी बुराई बताया जा रहा था उसी वक्त हरयाणा के हिसार जिले के एक गांव के दलित अपने दलित होने की कीमत चुका रहे थे.

हिसार जिले के भगाना गांव के दलितों का हुक्का-पानी बंद कर दिया गया है. उनके न सिर्फ बिजली और पानी के कनेक्शन काट दिये गये हैं बल्कि गांव के खेतों में जाने पर भी पाबंदी लगा रखी है. न सिर्फ दलितों का डंके की चोट पर सामाजिक बहिष्कार हुआ है बल्कि उनकी बहु-बेटियों की इज्ज़त से खिलवाड़ भी किया जा रहा है.

अब सवाल यह उठता है कि जब हमारा कानून दलितों का जातिसूचक शब्द तक कहने पर जेल भेजने की बात कहता है तो फिर खुलेआम ऐसा घोर अत्याचार कैसे हो रहा है? हिसार के भगाना गांव की कुल आबादी करीब पांच हजार है. यहां 3800 वोट हैं जिनमें करीब दो हजार वोट एक ही गौत्र के जाटों के हैं. बाकी क़रीब 1800 वोटों में दलितों, पिछड़ों और पंडितों की कई जातियां आती हैं. वोट ज्यादा होने के कारण गांव में प्रधान भी जाट सुमदाय का ही बनता है. और प्रधान जाट समुदाय का तो गांव की सारी योजनाएं और सारी सरकारी ज़मीन को भी जाट अपना मान बैठे हैं.

भगाना के दलितों के मुताबिक पिछले साल मई में गांव की दबंग जातियों के लोगों ने गांव की करीब 280 एकड़ सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया है. इस सरकारी ज़मीन पर दलितों का भी हक है. यही नहीं दलितों के घरों के सामने बने 300 गज़ के चबुतरे पर भी अपने लठैत बिठा दिये. दलितों ने जब इसकी शिकायत जिलाधिकारी से की तो फिर बदले की भावना से उनके खिलाफ कार्रवाई की गई.

खाप पंचायत बिठा कर न सिर्फ उनका सामाजिक बहिष्कार किया गया बल्कि जो दलित बड़ी बिरादरियों के खेत बोते थे उनसे खेत भी वापस ले लिये. नतीजा यह हुआ कि दलितों के सामने पेट भरने का संकट खड़ा हो गया.

इस घटना के बाद से ही भगाना के ग्रामीण अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए आंदोलन कर रहे हैं. 21 मई 2011 से वो हिसार जिलाधिकारी के दफ्तर के बाहर धरना दे रहे हैं. बच्चे और औरतें भी धरने में बैठी हैं. एक महीने के अनशन के बाद भी जब हरयाणा सरकार का ध्यान दलितों की पीड़ा पर नहीं गया तो गांव के करीब 40 दलितों ने दिल्ली कूच किया.

27 जून 2012 को भगाना गांव के दलित सिर मुंढा कर और कपड़ों का त्याग कर नंगे बदन दिल्ली की ओर चल पड़े. 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर के तापमान में बदन झुलस गया. तन से खाल तक उतर गई. यहां अभी वो जंतर-मंतर पर धरने पर बैठे अपने हक की मांग कर रहे हैं. हरयाणा कांग्रेस प्रभारी बी.के. हरिप्रसाद से मिलकर गुहार लगा चुके हैं. मानवाधिकार आयोग से मुलाकात कर वहां भी चिट्ठी दे दी है. अनुसूचित जाति और जनजाति कल्याण आयोग के अध्यक्ष भी हालचाल पूछ गये हैं. और सबसे बड़ी बात, देश में दलितों के नये मसीहा राहुल गांधी के दरबार में दस्तक देकर भी अपनी आपबीति सुना दी है. लेकिन अभी भी कहीं कुछ होता हुआ नज़र नहीं आ रहा है.

180 किलोमीटर नंगे बदन पैदल चलकर राहुल गांधी से मिलने ये लोग सिर्फ इसलिये आए हैं कि इन्हें संविधान में बताये गये इनके अधिकार मिल सकें, गांव में इज्ज़त से रहने का हक मिल सके और अपने हिस्से की सरकारी ज़मीन मिल सके. और इस सबसे ऊपर समाज की बहु-बेटियां बेखौफ घर से बाहर निकल सकें.

लेकिन सवाल यह है कि दलितों पर हो रहे इस घोर अत्याचार और हरियाणा सरकार की खामोशी का कारण क्या है? जवाब जंतर-मंतर पर सिर मुंढा कर नंगे बदन बैठे एक भगाना गांव के दिलत ने ही दिया. अपनी पीड़ा सुनाते हुए भगाना के सतीश काजला ने कहा, ‘हमारी गलती सिर्फ यह है कि हम दलित होकर पढ़ने और सरकारी नौकरियां हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं, गांव की दबंग जातियां नहीं चाहती कि हम आगे बढ़े, इसलिए हमारे हक छीनकर हम पर अत्याचार किया जा रहा है.’

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