बथानी टोला बिहार का पहला जनसंहार था आख़िरी नहीं

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तलहा आबिद 

नई दिल्ली. बथानी टोला जनसंहार की वार्षिकी करीब आते ही इसके पीड़ितों के इंसाफ के लिए पूरे देश में आवाज़े उठनी फिर से शुरू हो गई हैं. आज दिल्ली के वूमेन प्रेस कॉर्प में भी एक प्रेस कांफ्रेस का आयोजन ‘सिटीजन्स फॉर जस्टिस फॉर बथानी टोला’ की ओर से किया गया.

इस प्रेस कांफ्रेस को संबोधित करते हुए सत्या सिवरामन ने कहा कि एक तरफ नीतिश कुमार कहते हैं कि उनका गठबंधन भाजपा से है, आरएसएस से नहीं, वहीं दुसरी तरफ रण्वीर सेना जो आरएसएस के रास्ते पर चल रही है, उसे संरक्षण दे रहे हैं, सच पूछे तो नीतिश  और नरेन्द्र मोदी में कोई फर्क नहीं है. बथानी टोला बिहार का पहला जनसंहार था आख़िरी नहीं. जब तक साम्प्रदायिक लोगों को नीतिश का संरक्षण मिलता रहेगा तो ऐसा होता रहेगा. सत्या सिवरामन ने बिहार के मौजूदा हालात पर चिंता जताई और नीतिश कुमार को कटघरे में खड़ा किया.

वहीं कविता कृष्णन ने बताया कि बात सिर्फ बथानी टोला की नहीं है, पूरे बिहार की यही हालत है. बिहार में इस समय महादलितों, दलितों और मुसलमानों की हालत काफी चिंतनीय है. उन्होंने नीतिश कुमार पर हंसते हुए कहा कि नीतिश कुमार ‘सेक्यूलरिज़्म’ की बात कर रहे हैं, अगर यह ‘सेक्यूलरिज़्म’ है तो हमें ‘सेक्यूलरिज़्म’ की परिभाषा पर फिर से विचार करने की ज़रूरत है. इस तरह से दूसरे वक्ताओं ने भी बथानी टोला में हुए नाइंसाफी से लोगों को रू-ब-रू कराया और नीतिश कुमार के ‘सेक्यूलरिज़्म’ के सच को सामने रखा.

स्पष्ट रहे कि 11 जुलाई 1996 को बिहार के बथानी टोला में रण्वीर सेना द्वारा 21 भूमिहीन ग्रामीण गरीबों को एक जनसंहार में मार दिया गया था. मरने वालों में ज़्यादातर दलित महिलाएं और बच्चे थे, जो महादलित, अति पिछड़े और पसमान्दा मुस्लिम समाज के थे. इस जनसंहार के ज़िम्मेदार सभी 23 अभियुक्तों को बिहार बिहार उच्च न्यायालय ने अप्रैल 2012 में बाइज़्ज़त बरी कर दिया, जिन्हें सेशन्स कोर्ट ने सज़ा सुनाई थी.

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