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Reading: अकबराबादी मस्जिद के नाम पर घिनौना खेल, तैर रही हैं साज़िश की अफ़वाहें…
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BeyondHeadlines > Latest News > अकबराबादी मस्जिद के नाम पर घिनौना खेल, तैर रही हैं साज़िश की अफ़वाहें…
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अकबराबादी मस्जिद के नाम पर घिनौना खेल, तैर रही हैं साज़िश की अफ़वाहें…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published July 30, 2012 4 Views
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8 Min Read
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दिलनवाज़ पाशा

मंदिर-मस्जिद का झगड़ा भारत की सरकार तय कर चुका है और अब यही झगड़ा यह तय करेगा कि सबसे महान भारतीय कौन है. हिंदुस्तान में बहुत कुछ धर्म से तय होता आया है. लेकिन धर्म जिस पैमाने पर अब सामाजिक मूल्यों, राजनीतिक और आर्थिक निर्णयों एव शासन-प्रशासन के काम को प्रभावित कर रहा है वैसा कभी नहीं था.

अभी हाल ही में एक मस्जिद विवाद और अफ़वाहों का कारण बन गई है. पुरानी दिल्ली में मेट्रो की खुदाई के दौरान शाहजहां के ज़माने की अकबराबादी मस्जिद मिली है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक 1650 में बनी इस मस्जिद को 1857 की क्रांति के वक्त अंग्रेजों ने ज़मीन में दफ़न कर दिया था. अब जब दिल्ली नई रफ्तार से दौड़ने की तैयारी कर रही थी तब यह मस्जिद अचानक बाहर आ गई. और इस मस्जिद के बाहर आने से देश में अफवाहें फैलाने वालों को एक और मौका मिल गया. तरह-तरह की अफ़वाहें दिल्ली से निकलकर देशभर में पहुंच रही हैं.

पिछले पखवाड़े से फेसबुक वाल से लेकर एसएमएस इनबॉक्स तक अकबराबादी मस्जिद से जुड़ी रिपोर्टों से भरे पड़े हैं. कभी कोई मुसलमान भाई मस्जिद को बचाने के लिए पोस्ट करता है तो कभी किसी हिंदू भाई के नाम से मस्जिद को मिटाने की पोस्ट होती है. कुछ पोस्ट की भाषा तो इंसानी लगती ही नहीं, ऐसा लगता है किसी शैतान ने लिखी है. और शैतान शैतान होते हैं चाहे हिंदू हों या मुसलमान…

खैर, यहां मूल बात यह है कि अपने देश में एक बार मंदिर-मस्जिद के झगड़े ने यह तय किया था कि केंद्र में सरकार कौन बनाएगा और अब यही झगड़ा यह तय करता दिख रहा है कि सबसे महान भारतीय होने का ताज कौन पहनेगा?

दरअसल अफ़वाहों की एक मुहिम सी चल रही है. फेसबुक वाल पर कई संदेश पढ़ चुका हूं जिनमें मोबाइल नंबर 08082891016 पर मिस कॉल करके मस्जिद के लिए वोट करने की अपील होती है. कई बार मैंने यह संदेश नज़र अंदाज किए. मोबाइल में भी एक दो बार इसी नंबर से जुड़ा मैसेज आया तो इग्नोर कर दिया. लेकिन आज जो मैसेज आया उसकी भाषा ने इस नंबर पर मिस कॉल करने के लिए मजबूर कर दिया.

मैसेज था, ‘दिल्ली में जो मस्जिद निकली है उसके लिए मुसलमानों और हिंदुओं में वोटिंग हो रही है. अगर मुस्लिम वोट ज्यादा तो मस्जिद और हिंदुओं के ज्यादा तो मंदिर बनेगा. 08082891016 इस नंबर पर कॉल करो और मस्जिद के लिए वोट करो… ये टोल फ्री नंबर है और बेल बजने के बाद फोन कट जाएगा और एक मैसेज आएगा. हर मुस्लिम को ये बताना आपका फर्ज है, प्लीज इस मैसेज को इतना फैला दो कि वहां सिर्फ मस्जिद बने. जिसके नाम से आपके सिम की आईडी होगी उसके नाम से वोट पड़ जाएगा.’

मिस कॉल किया तो जवाबी मैसेज आया, ‘Thank You, Your Vote Has been registered for A.P.J Abdul Kalam. Stay Tuned to History TV18 and CNN IBN to Know Who will be Choosen as The Greatest Indian.’ यानि, ‘वोट देने के लिए शुक्रिया. आपका वोट एपीजे अब्दुल कलाम के नाम रजिस्टर्ड हो गया है. सबसे महान भारतीय के चुनाव से जुड़ी जानकारी से अपडेट रहने के लिए हिस्ट्री टीवी 18 चैनल और सीएनएन आईबीएन देखते रहिए.’

यह मैसेज पढ़कर मुझे खुद के भारतीय होने पर शर्म आई. 21वीं सदी में भी मैं ऐसे देश में रहता हूं जिसमें इंटरनेट और मोबाइल इस्तेमाल करने वाले लोग भी इस बात में यकीन करते हैं कि मोबाइल से मिस कॉल करके वो अपनी पंसद से मंदिर या मस्जिद बनवा सकते हैं. कोर्ट से ज्यादा उनका यकीन भावनात्मक मैसेज में होता है जो उनके हिंदू या मुसलमान होने की दुहाई देकर नफरत फैलाते हैं. फेसबुक पर ऐसे सैंकड़ों पेज हैं जो आपके हिंदू या मुसलमान होने का फायदा उठाते हैं. कोई अल्लाह की क़सम देकर पेज़ को लाइक करवाता है तो कोई भगवान की सौगंध खिलाकर कमेंट करवाता है. धर्म और धर्म सी जुड़ी भावनाओं के नाम पर शुरु होने वाले इन मैजेस का काम बाद में या तो विज्ञापन से पैसा कमाना रह जाता है या फिर राजनीतिक फायदे के लिए नफ़रत फैलाना. लेकिन यह शर्मनाक है कि देश का एक बड़ा तबका इस तरह के संदेशों में न सिर्फ यकीन करता है बल्कि इन्हें फॉरवर्ड भी करता है. यदि आपको इस बात से इत्तेफाक नहीं है तो अपना मोबाइल इनबॉक्स या फेसबुक वॉल चैक कर लीजिए. यही या ऐसा ही कोई मैसेज वहां भी होगा. खैर ये बात तो हमारी धार्मिक भावनाओं की थी. धर्म हमें प्रभावित करता है इसमें कोई शक नहीं है. लेकिन इस बात को समझने वाले इस हद तक गिर गए हैं कि वो अब देश के सबसे महान नागरिक का चुनाव भी हिंदू या मुसलमान होने के पैमाने पर कर रहे हैं यह शर्मनाक है.

दिसंबर के महीने में जब खून बदन में जम रहा होता है तब 6 तारीख की नज़दीकी माहौल में आग लगा देती है. हर साल कई जगह अघोषित कर्फ्यू लगता है, कुछ सहमे लोग घर से बाहर नहीं निकलते तो हजारों बच्चे स्कूल नहीं पहुंच पाते. अख़बार की सुर्खिया नई पीढ़ी को भी 20 साल पहले लगी आग की तपिश महसूस करा देती हैं. जिन बच्चों को अपने नाम के मायने भी पता नहीं होते उन्हें भी अपने हिंदू या मुसलमान होने का अहसास हो जाता है. इसी गर्मी पर राजनीतिक रोटियां सेंक कर भारतीय जनता पार्टी केंद्र की सत्ता पा चुकी है. ये अलग बात है कि न ही बाबरी मस्जिद के स्थान पर बनने वाले राम मंदिर के लिए इकट्ठा हुए हजारों करोड़ रुपए का कोई हिसाब है और न ही इस झगड़े में बहे खून का. ये तो बाबरी मस्जिद की बात थी. मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि अकबराबादी मस्जिद के नाम पर कौन रोटियां सेंक रहा है. सबसे महान भारतीय का खिताब देने वाले, दूसरों के जलतों घरों पर तापने वाले या फिर बिना बात के अफवाहों को जन्म देने वाले…

अगर आप इन शब्दों को पढ़ रहे हैं तो आपको तय करना है कि आप मस्जिद के नाम पर एसएमएस भेजकर एपीजे अब्दुल कलाम को सबसे महान भारतीय बनवाएंगे या फिर इस पोस्ट को शेयर करके अफवाहों पर लगाम लगाएंगे…?

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