राजीव यादव
उत्तर प्रदेश में आतंकवाद के नाम पर बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को छोड़ने के बाबत शासन-प्रशासन से एक तरफ़ बयान आ रहा है तो वहीं दूसरी तरफ जेलों में उत्पीड़न के मामले भी सामने आ रहे हैं. बात प्रदेश की राजधानी लखनऊ जेल की है. वरिष्ठ मानवाधिकार नेता और अधिवक्ता मुहम्मद शुएब और रणधीर सिंह सुमन ने बताया कि उनके मुवक्लि तारिक़ कासमी ने उन्हें बताया कि जेल में सख्ती के नाम पर तलाशी ली जा रही है और इस तलाशी के दौरान उनके बैग को जेलर ने फाड़ डाला और सांप्रदायिक आधार पर गालियां दी.
लखनऊ जेल में आंतकवाद के आरोप में बंद कैदियों की संख्या तकरीबन 32 है. सुरक्षा के नाम पर पूरी गर्मी भर उन्हें 23-23 घंटे जेलों में बंद रखा गया और जो थोड़ा वक्त दिया जाता है, वो बैरक के सामने वाले जालीदार बरामदे में घूमने का…
खैर, इस दौरान पूरी तलाशी और यातना का जो दौर चल रहा है उसके पीछे साम्प्रदायिक जेहनियत भी है. क्योंकि रमजान के महीने में मुस्लिम युवक कुरआन और दीनी तौर-तरीकों से ज्यादा ही रहने लगते हैं. तारिक़ ने बताया कि जेल में इस दौरान उन्हें खाना भी पशुओं के चारे जैसा फेंका जा रहा है.
तारिक़ कासमी वही शख्स हैं जिनकी गिरफ्तारी के बाद उत्तर प्रदेश में आतंकवाद के नाम पर बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को छोड़ने के आंदोलन ने जोर पकड़ा. तारिक़ को 12 दिसंबर 2007 को आज़मगढ़़ से उठाने के बाद यूपी एसटीएफ ने 23 दिसंबर को पहले से उठाए यानी 16 दिसंबर को मडि़याहूं, जौनपुर से उठाए खालिद के साथ बाराबंकी से गिरफ्तार करने का दावा किया. यूपी एसटीएफ की इस फर्जी गिरफ्तारी पर पिछली मायावती सरकार ने जन आन्दोलनों के दबाव में आरडी निमेष जांच आयोग का गठन किया. सपा सरकार के सत्ता में आने के बाद इन दोनों युवकों को छोड़ने की प्रक्रिया चल रही है, के बयान लगातार आ रहे हैं.
आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों के रिहाई मंच द्वारा यह मांग की गई है कि प्रदेश सरकार चुनावों के दौरान बेगुनाहों को छोड़ने के अपने वादे पर अमल करते हुए स्वतंत्रता दिवस तक उन्हें रिहा करे. जिससे झूठे मुक़दमों में फंसाए गए बेगुनाह सालों बाद अपने परिवारों के साथ इस ईद में रहे, जहां उनके अपने उनका बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.
पिछले दिनों एडीजी (कानून व्यवस्था) जगमोहन यादव ने भी अपने एक बयान में कहा हैं कि एटीएस और जिलों के कप्तानों से ऐसे मामलों को चिन्हित करने को कहा गया है जिनमें फर्जी धरपकड़ की शिकायत है.
ऐसे दौर में जब पिछले दिनों पुणे की यर्वदा जेल में कतील सिद्दीकी की जांच एजेंसियों द्वारा हत्या कर दी गई हो तो ऐसे में यूपी की लखनऊ जेल के जेलर की यह बौखलाहट ख़तरे का अंदेशा दे रही है. जबकि पिछले दिनों सपा के कद्दावर नेता अबू आसिम आज़मी ने तारिक सहित लखनऊ की जेल में आतंकवाद के नाम पर बंद कई कैदियों से मुलाकात की और उन्हें रिहाई का आश्वासन दिया था.
ऐसे में जब यह कैदी छूटने की प्रक्रिया में हैं तो इनकी सुरक्षा की गारंटी प्रदेश सरकार करे. क्योंकि जांच एजेंसियां अपने झूठ को छिपाने और अपने ऊपर उठ रहे सवालों को दबाने के लिए हत्या तक कर सकती हैं. जिसे हमने पिछले दिनों गांधीवादी मूल्यों वाली पुणे की यर्वदा जेल में कतील की हत्या के रुप में देखा है.
