क्या प्लास्टिक नोट रोक पाएंगे करेंसी में सेंधमारी?

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रहीसुद्दीन रिहान

देश की जनता के लिए यह खुशी की बात है कि अब उसे बाजार में शापिंग करते समय नोट के खस्ता हाल को लेकर चिक-चिक नहीं करनी पड़ेगी. मज़दूर को भी दिनभर की मेहनत-मज़दूरी के बाद मिले पैसे से अपने भूखे बच्चे का पेट भरने के लिए आटा खरीदते समय दुकानदार कोई झिक-झिक नहीं करेगा. ना ही दुकानदार फटे नोट की दुहाई देकर आटे की थैली उसके हाथ से छिनेगा. रिजर्व बैंक द्वारा प्लास्टिक के नोट जारी करने के इन फायदों के बारे में सोचा जा सकता है.

बाजार में प्लास्टिक नोट जारी करने के पक्ष में तर्क देते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा है कि लोगों को कटे-फटे नोटों से निजात मिलेगी और नोट के गंदे हो जाने पर उसे फिर से साफ़ किया जा सकेगा. साथ ही नकली नोटों पर भी आसानी से अंकुष लग सकेगा.

भारत के इतिहास में रूपये के रूप में कागज के नोटों का चलन सबसे पहले ‘बैंक ऑफ हिन्दुस्तान’ ने 1770 में शुरु किया. बैंक ऑफ हिंदुस्तान के नोट 1832 तक चले. 1773 से लेकर 1715 तक ‘द जनरल बैंक ऑफ बंगाल एंड बिहार’ और 1784 से 1791 तक ‘द बंगाल बैंक’ के नोट भी बाजार में चले. नोटों के चलन के शुरूआती दौर में बैंक ऑफ बंगाल ने जो नोट छापे थे वह सिर्फ एक तरफ ही छपे थे. इनमें सोने की एक मोहर बनी थी. बाद के नोटों में महिला आकृति जैसा एक बेलबूटा बना जो व्यापार का मानवीकरण दर्शाता था. इन नोटों को दोनों ओर से उर्दू,बंगाली और देवनागरी में छापा जाता था.

इससे पहले सिर्फ सिक्कों के रूप में मुद्रा का चलन था. कलकत्ता में केंद्रीय कार्यालय के साथ 1935 में भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना हुई. रिजर्व बैंक ने सबसे पहले 1938 में 5 रूपये का नोट छापा जिस पर जार्ज पोर्टरेट का चित्र था. इसके बाद 10 रूपये का और इसके बाद 100 रूपये का नोट चलन में आया. रिजर्व बैंक के पहले संस्करण के नोटों पर दूसरे गवर्नर सर जेम्स टेलर के हस्ताक्षर थे. महात्मा गांधी की तस्वीर वाली श्रंखला के नोट 1966 में शुरु हुए. बाद में लोगों की सुविधाओं को ध्यान में रखकर नोटों में वॉटरमार्क, विंडोड सुरक्षा धागा और विकलांगों के लिए मोटे कागज आदि का प्रयोग किया गया.

बाजार में प्लास्टिक नोट के आने के बाद कटे-फटे नोटों को चलाने को लेकर होने वाली परेशानी से देश की जनता को राहत मिलेगी, इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन एक सवाल तब भी रहेगा कि बाजार में नकली नोट नहीं आएंगे इसकी क्या गारंटी है. नकली नोटों पर रोक लगाने के लिए इससे पहले भी सुरक्षा कारणों को ध्यान में रखकर सुधार किये गए है. लेकिन तमाम सावधानियों के बावजूद भी भारतीय अर्थव्यवस्था में नकली नोटों की सेंधमारी नहीं रुकी है. अभी तक तो नकली नोटों के सौदागरों के सामने सरकार के तमाम इंतेजाम नाकाफी साबित हुए हैं.

जाली नोटों के चलन पर रोक लगाने पर प्लास्टिक नोट व रिजर्व बैंक कितने खरे उतरते है, यह तो वक्त आने पर ही पता चलेगा. लेकिन इतना ज़रूर है कि प्लास्टिक के नोट आने से जहां एक तरफ देश की आम जनता को रोजाना होने वाली परेशानियों का सामना कम करना पड़ेगा वहीं दूसरी ओर कई दशकों से नेताओं और जमाखोरों के यहां काले घुप अंधरे में बंद कागज के टुकड़ों को आजादी मिलेंगी और प्लास्टिक के नोटों को उनकी जगह कैद किया जाएगा. एक रोचक सवाल मेरे मन में आ रहा है कि क्या प्लास्टिक के नोट भी ब्लैक मनी में तब्दील हो सकेंगे?

(यह लेखक के अपने विचार हैं. BeyondHeadlines आपके विचार भी आमंत्रित करती है. अगर आप भी किसी विषय पर लिखना चाहते हैं तो हमें beyondheadlinesnews@gmail.comपर ईमेल कर सकते हैं.)

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