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Reading: नजीब जंग से क्या ‘जंग’ जीत पाएगा हमीद…?
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नजीब जंग से क्या ‘जंग’ जीत पाएगा हमीद…?

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published August 8, 2012 1 View
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8 Min Read
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अफ़रोज़ आलम साहिल

अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल लंबे समय तक लोकपाल के लिए आंदोलन करते रहे. तमाम तरह के मंचों से उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधा, प्रधानमंत्री से लेकर मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी तक को भ्रष्ट कहा. यही नहीं, आंदोलन के दौरान कई मौके पर उन्होंने केंद्र सरकार को तानाशाह क़रार दिया. सरकार के कई मंत्रियों ने उन पर देश का माहौल बिगाड़ने का आरोप लगाया, लेकिन सरकार ने न ही उन्हें भारत से बाहर निकलने के लिए कहा और न ही उनकी भारत की नागरिकता समाप्त की. लेकिन यदि अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र होते और यहां के भ्रष्टाचार के खिलाफ़ आवाज़ बुलंद कर रहे होते तो यूनिवर्सिटी अब तक उन्हें बाहर का रास्ता दिखा चुकी होती और वो न्याय पाने के लिए कोर्ट के चक्कर लगा रहे होते.

जामिया  एक छात्र यहां के वाइस चांसलर नजीब जंग को ‘तानाशाह’ कहने के कारण कोर्ट के चक्कर लगा रहा है. 22 वर्षीय हमीदुर्रहमान ने साल 2012 में ही जामिया से पॉलिटिकल साइंस ऑनर्स की परीक्षा पास की है. हमीदुर्रहमान ने अपने कोर्स में तीनों साल सर्वाधिक अंक प्राप्त किए. इस साल उन्होंने जामिया के सात कोर्सेज के लिए फार्म भरा. हमीदुर्रहमान ने सभी सातों कोर्सेज की लिखित परीक्षा पास की और उन्हें कोर्स संचालित करने वाले सभी सेंटर्स की ओर से इंटरव्यू के लिए बुलाया गया.

उनके इंटरव्यू पर एक इंटरव्यू पैनल ने तो यह तक टिप्पणी की कि छात्र में ज़बरदस्त पोटेंशियल है और वो बहुत कुछ कर सकता है, लेकिन इसके बावजूद भी सातों इंट्रेंस एग्जाम पास करने वाले हमीदुर्रहमान को जामिया के एक भी सेंटर ने एडमीशन नहीं दिया. फिलहाल जामिया में एडमीशन पाने के लिए हमीदुर्रहमान ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

यही नहीं, हमीदुर्रहमान ने आरटीआई दाखिल कर सभी कोर्सों में एडमिशन पाने वाले छात्रों की सूची और उन्हें लिखित और मौखिक परीक्षा में मिले अंकों की सूची भी मांगी है. दिल्ली हाई कोर्ट में पेश अपने हलफ़नामें में जामिया ने कहा है कि छात्र का दाखिला यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर नजीब जंग ने रोका है.

जामिया मिल्लिया इस्लामिया पार्लियामेंट के एक्ट के तहत बनी यूनिवर्सिटी है. हलफ़नामे में कहा गया है कि वीसी नजीब जंग ने जामिया एक्ट के आर्टिकल 31 के तहत मिली अपनी प्रशासनिक शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए हमीदुर्रहमान का दाखिला रोका है. हाई कोर्ट में पेश हलफनामे में यूनीवर्सिटी के वीसी नजीब जंग ने कहा है, ‘केंद्रीय विश्वविद्यालों में दाखिला पाने के लिए ज़बरदस्त प्रतिस्पर्धा है और पढ़ाई के प्रति गंभीर छात्रों को सीटों की कमी के कारण दाखिला नहीं मिल पाता है, पूरे मामले पर गंभीरता से सोचने के बाद मैं यह निर्देश देने के लिए विवश हूं कि निवारक उपायों के तहत हमीदुर्रहमान को जामिया में किसी भी कोर्स में दाखिला नहीं दिया जाएगा.’

जामिया के रजिस्ट्रार एस.एम. साजिद ने हमीदुर्रहमान के मामले में इंटरव्यू लेने वाले सभी सेंटरों से रिपोर्टें भी मांगी, जिन्हें हलफ़नामे के साथ हाई कोर्ट में पेश किया गया है. ‘के.आर. नारायणन दलित एंड माईनरिटीज़ स्ट्डीज सेंटर’ की निदेशक अजरा रज्जाक ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जब हमीदुर्रहमान से पूछा गया कि वो दाखिला क्यों लेना चाहता है तो उसने कहा, ‘मैं नजीब जंग के खिलाफ़ जंग लड़ना चाहता हूं, क्योंकि उन्होंने यूनिवर्सिटी में छात्र-संघ चुनाव नहीं होने दिए. मैं जमिया का छात्र रहते हुए ही यहां छात्र-संघ चुनावों के लिए केस लड़ सकता हूं, अगर मुझे दाखिला नहीं मिला तो मैं केस हार जाउंगा.’

जामिया के ‘सेंटर फॉर स्टडी ऑफ कंपेरिटिव रिलिजंस एंड सिविलाइजेशन’ और ‘नेलसन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कंफ्लिक्ट रिजोल्यूशन’ ने भी अपनी रिपोर्टों में इंटरव्यू के दौरान हमीदुर्रहमान के रवैये को हिंसक क़रार दिया और कहा कि वो दाखिला सिर्फ छात्र-संघ चुनाव लड़ने के लिए लेना चाहता है. नेल्सन मंडेला सेंटर के निदेशक प्रोफेसर तस्नीम मीनाई और ‘सेंटर फॉर स्टडी ऑफ कंपेरिटिव रिलिजंस एंड सिविलाइजेशन’ के निदेशक प्रोफेसर अमिया पी. सेन ने भी अपनी रिपोर्ट में वहीं बातें कहीं, जो प्रोफेसर अजरा रज्जाक ने अपनी रिपोर्ट में कही हैं.

हमीदुर्रहमान की क्षमताओं पर रोशनी डालते हुए प्रोफेसर अमिया सेन ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘मैं बड़ी मुश्किल से हमीदुर्रहमान से विषय से संबंधित सवाल पूछ पाया, मैं स्वीकार करता हूं कि उम्मीदवार काफी इंटेलिजेंट और स्पष्ट साबित हुआ. वो उन सवालों के जवाब भी आंशिक तौर पर दे पाया, जिनके जवाब एक औसत उम्मीदवार देने में नाकाम रहता है.’

हाई कोर्ट में पेश हलफ़नामे में जामिया ने कहा है कि हमीदुर्रहमान का जामिया में दाखिला लेने का मक़सद वाइस चांसलर नजीब जंग के खिलाफ़ लड़ना है और वो पढ़ाई के प्रति गंभीर नहीं है. हलफ़नामे के मुताबिक इंटरव्यू के दौरान हमीदुर्रहमान ने यह भी कहा कि वो जामिया में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जंग लड़ना चाहता है और यहां बैठे भ्रष्ट अधिकारियों को बेनकाब करना चाहता है, इसलिए दाखिला ले रहा है. जामिया ने हाई कोर्ट के समक्ष यह तर्क दिया है कि छात्र का उद्देश्य जामिया में पढ़ाई करने के बजाए यहां का माहौल ख़राब करना है, इसलिए उन्हें दाखिला नहीं दिया जा सकता.

हालांकि सच्चाई जामिया के तर्कों से अलग है. हमीदुर्रहमान ने इसी यूनिवर्सिटी से पॉलिटकल साइंस में बीए ऑनर्स किया है और हर वर्ष सर्वाधिक अंक प्राप्त किए हैं. यही नहीं, वो यहां की डीबेट सोसाइटी में शामिल है और राष्ट्रीय स्तर पर कई बार जामिया मिल्लिया का प्रतिनिधित्व कर चुका है.

अब सवाल यह है कि एक टॉपर छात्र यूनिवर्सिटी प्रशासन की नज़र में अनुशासन के लिए ख़तरा कैसे बन गया है? क्यों सभी इंट्रेंस एग्जाम की लिखित परीक्षा पास करने के बाद भी उसे दाखिला नहीं दिया जा रहा है?

इसका जवाब यह है कि हमीदुर्रहमान जामिया में छात्र-संघ की बहाली के लिए भी आवाज़ बुलंद कर रहा है. उसने दिल्ली हाईकोर्ट में जामिया में छात्र-संघ बहाली के लिए रिट पेटिशन फाइल कर रखी है.

यूनिवर्सिटी के वीसी नजीब जंग का तर्क है कि छात्र-संघ से यहां का माहौल ख़राब होगा और छात्र पढ़ाई के बजाए चुनावों में मशगूल रहेंगे. वहीं हमीदुर्रहमान का तर्क यह है कि यूनिवर्सिटी प्रशासन पूरी तरह भ्रष्टाचार में डूबा है, मनमाने तरीक़े से फीस बढ़ाई जा रही है. छात्रों को उनका हक़ नहीं दिया जा रहा है और छात्रों को हितों की लड़ाई के लिए छात्र-संघ जरूरी है.

पूरे मामले का सबसे हास्यस्पद पहलू यह है कि एक छात्र को सिर्फ इसलिए दाखिला नहीं दिया जा रहा है क्योंकि वो यूनिवर्सिटी के वीसी के ‘तानाशाही रवैये’ के आगे झुकने के लिए तैयार नहीं है.

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