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मुंबई हिंसा में हुई दो लोगों की मौत के गुनाहगार आप तो नहीं?

BeyondHeadlines News Desk

म्यामांर में रोहंगिया मुसलमानों पर ज्यादती का दौर जारी है. इंटरनेट पर प्रसारित अलग-अलग रिपोर्टों के मुताबिक तानाशाही सैन्य शासन के नेतृत्व में चल रहे दमन में अब तक लाखों लोगों की मौत हो चुकी है. हालांकि सच्चाई इससे अलग भी हो सकती है.

गुरुवार को कराची में एक प्रेस कांफ्रेंस रोहिंगया सोलिडेरिटी एसोसिएशन ऑफ म्यांमार के केंद्रीय नेता मुहम्मद इमरान सईद ने बताया कि देश में सेना के इशारे पर रोहिंगिया अल्पसंख्यकों का कत्लेआम जारी है.

सईद ने कहा, ‘सबसे दुख की बात यह है कि बांग्लादेश भी रोहिंगिया मुसलमानों की मदद नहीं कर रहा है. बांग्लादेश ने भी अपनी सीमा में घुस रहे रोहिंगिया लोगों को देखते ही गोली मारने का आदेश दे दिया है.’ सईद ने बताया कि म्यांमार में 125 से अधिक मस्जिदों का अस्तित्व मिटा दिया गया है. म्यांमार के अधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक बुद्धों और रोहिंगया लोगों के बीच हुए दंगों में जून से अब तक 80 लोग मारे गए हैं. वास्तविक आंकड़ों में यह संख्या और भी अधिक हो सकती है.

वहीं इसी बीच म्यांमार सरकार ने एक प्रभावशाली इस्लामी संगठन से म्यांमार आकर हालात का जायजा लेने का आग्रह किया है. म्यांमार के राष्ट्रपति थीन सीन ने कहा कि वो सऊदी अरब की ओर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोर्पोरेशन को म्यांमार यात्रा के लिए आमंत्रित किया. राष्ट्रपति ने अपने बयान में कहा, ‘हम चाहते हैं कि ओआईसी के सचिव खुद आकर रखिने प्रांत की सच्चाई को जानें.’ राष्ट्रपति ने अपने बयान में यह भी कहा कि दोनों पक्षों के विस्थापित हुए हजारों लोगों को खाना और रहने के लिए जगह दी जा रही है.

इसी बीच तुर्की के विदेश मंत्री ने दंगा प्रभावित राज्य में मदद सामग्री वितरित की. राष्ट्रपति ने तुर्की के विदेश मंत्री से भी सच्चाई को दुनिया के सामने रखने का आग्रह किया.

यह अधिकारिक बयान म्यांमार की हकीकत की एक झलक हो सकते हैं. लेकिन इनसे यह ज़रूर साफ है कि म्यांमार में हालात खराब हैं लेकिन उतने नहीं जितने की फेसबुक और अन्य सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों पर साझा की जा रही तस्वीरें बता रही हैं.

म्यांमार और असम में हुए दंगों को लेकर शनिवार को मुंबई के आजाद मैदान में अल्पसंख्यक संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया. इस विरोध प्रदर्शन के दौरान भड़की हिंसा में चार समाचार चैनलों की ओबी वैन जला दी गईं, आठ बसें और तीन पुलिस गाड़ियां फूंक दी गईं और करीब 20 पुलिसकर्मी घायल हुए। यही नहीं करीब 36 प्रदर्शनकारी गंभीर रूप से घायल हुए हैं और दो की पुलिस फायरिंग में मौत हुई है.

अब सबसे बड़ा सवाल उठता है कि मुंबई में हालात इतने खराब कैसे हो गए? मौके से रिपोर्ट कर रहे एक प्रमुख चैनल के संवाददात ने बताया कि आजाद मैदान में सबकुछ सामान्य चल रहा था. वक्ता मंच पर आ रहे थे और ठीक से अपनी बात रख रहे थे लेकिन इसी दौरान एक वक्ता ने बेहद कड़े शब्दों में मीडिया की निंदा की. मंच पर ही इस वक्ता को शांत भी कर दिया गया लेकिन इस दौरान उसके भाषण के बाद कुछ उन्मादी युवा भड़क गए. इस संवाददाता के मुताबिक भीड़ में करीब 25 हजार लोग शामिल होंगे, लेकिन बाहर आकर मीडिया पर हमला करने वालों की संख्या 100 से भी कम थी. यही नहीं उन्होंने यह भी बताया कि यही लोग अन्य लोगों को मीडिया पर हमला करने के लिए उकसा भी रहे थे.

म्यांमार और असम में हो रही ज्यादती के विरोध में मुंबई में हुए दंगों में दो लोगों ने जान गंवा दी और कई अन्य बुरी तरह घायल हैं. यही नहीं, कई करोड़ की सार्वजनिक और निजी संपत्ति का भी नुकसान हुआ है. यहा सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि इस सब के लिए जिम्मेदार कौन है?

हो सकता है कि माहौल खराब करने के पीछे कुछ शातिर लोगों के निजी स्वार्थ भी हों लेकिन यदि मोटे तौर पर देखा जाए तो यह घटना सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों के गलत इस्तेमाल का भी नतीजा है. पिछले एक साल से इंटरनेट धार्मिक कट्टरपंथ को बढ़ावा देने का साधन बन गया है. कुछ राजनेताओं ने तो अपनी स्पेशल टास्क फोर्स तक इंटरनेट पर बिठा रखी है. हालात यह हो गए हैं कि बिना किसी ठोस सबूत के जानकारियां साझा की जाती हैं. दंगों जैसे संवेदनशील मामलों में फोटोशॉप से एडिट की गई तस्वीरें साझा करके लोगों का गुस्सा भड़काया जाता है. अल्लाह या भगवान के नाम पर फोटो शेयर करने के लिए उत्साहित किया जा रहा है. ऐसा लग रहा है सोशल नेटवर्किंग अब लोगों से जुड़ने के लिए नहीं बल्कि प्रोपागेंडा फैलाने भर के लिए रह गई है. रोजाना सैंकड़ों ऐसे फोटो शेयर किए जाते हैं जो सच्चाई के बहुत करीब नहीं होते. म्यांमार के बारे में शेयर किए जा रहे फोटो में का जा रहा है कि म्यांमार में लाखों लोगों का कत्लेआम हो रहा है और एक पूरी कौम को मिटाया जा रहा है. तस्वीरों में कुछ सच्चाई जरूर है. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि म्यांमार में हालात सही नहीं है लेकिन जिस तरह से उन्हें सोशल नेटवर्किंग वेबसाटों पर शेयर करके लोगों का गुस्सा भड़काया जा रहा है, उसके पीछे इंसाफ के लिए जंग कम साजिश ज्यादा नज़र आती है.

यदि आपने भी पिछले कुछ दिनों में ऐसी ही तस्वीरों को लाइक किया है या शेयर और अपने फ्रैंड्स को उनमें टैग किया हो तो समझ लीजिए मुंबई में मारे गए दो बेगुनाहों की मौत के आप भी जिम्मेदार हैं, क्योंकि समाजवादी पार्टी के नेता अबु आसिम आज़मी ने स्पष्ट कहा है कि लोगों में म्यांमार और असम की घटनाओं को मीडिया द्वारा कवर न किए जाने के कारण से गुस्सा था. जो हुआ वो इसी गुस्से का नतीजा है.

मीडिया द्वारा म्यांमार के हालात पर न लिखे जाने या आसाम के सच को उजागर न करने को जायज नहीं ठहराया जा सकता. यदि लोगों को लगता है तो इसका विरोध भी होना चाहिए लेकिन विरोध का जो तरीका आज अख्तियार किया गया वो बर्बादी की ओर ले जाना वाला ही था.

ज़रा सोचिए! लोग हिंसा के खिलाफ़ प्रदर्शन में हिंसा कर रहे हैं, जो सामने आ रहा है उस पर हमला कर रहे हैं और सरकारी और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं. ऐसा करके वो पीड़ितों के लिए न्याय की मांग को मज़बूत नहीं कर रहे हैं बल्कि हालात को और मुश्किल बना रहे हैं. यदि शांतिपूर्वक तरीके से विरोध किया गया होता तो शायद असर कुछ और होता… अब तो पूरी घटना दो बेगुनाह लोगों की मौत तक सिमट कर रह गई है. और अगर आप भी बिना सच जाने फेसबुक पर उत्तेजक पोस्ट शेयर करते हैं तो इन दो लोगों की मौत पर आंसू बहाइये… क्योंकि इनकी मौत के असली जिम्मेदार आप ही हैं.

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