Shibli Arsalan Zaki for BeyondHeadlines
पर्व, त्योहार और सेलिब्रेशन की अवधारणा हर धार्मिक-सांस्कृतिक ग्रुप मे पायी जाती है. इस्लाम मे भी ईदुल-फित्र और ईदुल अज़्हा (ईद और बक़रईद) दो पर्व हैं. ईद दुनिया के सारे सेलिब्रेशन और पर्व में बिल्कुल अनूठा है. पूरे तीस दिन के अनुशासनपूर्ण दिनचर्या के बाद, ईद की प्रसन्नता का अनुभव वही कर सकता है, जो इस दिनचर्या से गुज़रा हो. अतः रमज़ान की ईबादत, त्याग और मशक़्क़तों का अवार्ड है- ईदुल्फ़ित्र… इसलिए ईद को “यौमूल जायेज़ा” अर्थात इनाम का दिन भी कहा जाता है. ईश्वर के लिए पूरे तीस दिन का रोज़ा रूपी त्याग तथा इस्लाम द्वारा व्यापक मानवहित मे प्रतिबंधित कार्यों से रुके रहने का प्रशिक्षण, एक विचित्र, पावन और सुखद आध्यात्मिक एहसास कराता है.
ईद अंतरावलोकन दिवस (introspection day) भी है. अंतरावलोकन इस बात का कि रोज़ों का उद्देश्य कितना पूरा हुआ, व्यक्तिगत स्तर पर भी और सामाजिक स्तर पर भी? (क्योंकि रोज़ों मे एक सामाजिक सरोकार का पहलू भी है.) क्या कमियाँ रहीं…? आदि-अनादि… कमियों की क्षतिपूर्ति का एक तरीका ये बताया गया है कि ईद के दिन कमज़ोरों-दुखियों की मदद की जाए, ईद की नमाज़ से पहले-पहले (ताकि उनकी ‘ईद ‘ भी हो जाए) ‘फ़ितरा’ के रूप मे प्रति व्यक्ति एक निश्चित राशि अमीरों द्वारा “सामूहिक -संगठित रूप मे” अदा करना लाज़मी है. इस प्रकार ईद ‘सहानुभूति और गमख़्वारी’ का त्योहार भी बन जाता है.
ईद रमज़ान कि तरह वैश्विक इस्लामी भाई-चारे और एकता का प्रतीक भी है. परंतु इस वैज्ञानिक दौर में, जबकि इंसान ‘सितारों पर कमन्दे’ डाल रहा है, सूरज-चाँद तथा सम्पूर्ण सौर्य-परिवार के बारे विस्तृत ज्ञान रखता है, “चाँद देखने” की शर्त पर हँगामा खड़ा करना अपना उपहास भी उड़ाना है और वैश्विक इस्लामी एकता की अवधारणा को धूमिल भी करना है… इस संबंध मे हिन्द-पाक के उलेमा का अड़ियल रुख विचारणीय है…
