हमारा मकसद हालात में एक पॉजिटिव बदलाव लाना है…

Beyond Headlines
3 Min Read

सीमा जावेद

आपका ध्‍यान आज से दो साल पहले दिल्‍ली में हुए उस हादसे की ओर आर्कषित करना चाहती हूं जिसके परिणामस्‍वरूप एक व्‍यक्ति की मृत्‍यु हो गई थी और 6 लोग गंभीर रूप अस्‍वस्थ्य हुए थे. मैं जिस हादसे की बात कर रही हूं, वह अप्रैल 2010 में दिल्ली के मायापुरी की कबाड़ मंडी में रेडियोधर्मी कोबाल्ट-60 धातु से हुआ रेडियो विकरण का एक दुष्‍प्रभाव था.

जब यह हादसा हुआ था, उस समय एटॉमिक रेगुलेटरी ऑथोरिटी बोर्ड (एईआरबी) की एक टीम मौके पर इस हादसे की जांच करने और रेडियो विकरण से प्रभावित क्षेत्र को रेडियेशन-मुक्‍त करने पहुंची थी. कुछ दिनों बाद एईआरबी ने मायापुरी को पूरी तरह सुरक्षित घोषित कर दिया.

हालांकि इसके बाद जब ग्रीनपीस की रेडियेशन सुरक्षा विशेषज्ञों की एक टीम ने इस क्षेत्र की जांच की, तो उन्‍हें वहां आस-पास 6 बिन्‍दुओं (हाट-स्‍पॉट) में विकरण का स्‍तर सुरक्षा की सीमा से बहुत उपर पाया. एक स्‍पॉट पर तो रेडियों विकिरण का स्‍तर सुरक्षा सीमा से 5000  गुना अधिक था. इस जांच ने एईआरबी  की अक्षमता को साफ तौर से उजागर कर दिया. इस हादसे को दो साल बीत चुके हैं और दिल्‍ली-वासी, सरकार एवं स्‍वयं एईआरबी इस हादसे को भूल चुका है.

हाल ही में संसद के मानसून-सत्र के दौर पेश सीएजी (कैग) रिपोर्ट ने इस हादसे को एक बार फिर प्रकाश में ला दिया है. मैं ऐसा इसलिए लिख रही हूं क्‍योंकि मेरे पास 2010 का ग्रीनपीस का वह विडियो फुटेज है, जिसमें ग्रीनपीस की विशेषज्ञों की टीम ने मायपुरी की सुरक्षा जांच की और साथ एईआरबी टीम की जांच का भी विडियों फुटेज है. इस विडियो में ग्रीनपीस के विशेषज्ञों एवं एईआरबी दल के सदस्‍यों ने जो कुछ उस समय पर बयान दिये उनकी साउंड बाइट मौजूद हैं.

देश की मीडिया को इस सामग्री का यथोचित प्रयोग करते हुए इसका प्रसार करना चाहिए, ताकि इस समय सरकार को निर्णायसक कार्रवाई करके एईआरबी की अक्षमता के बारे में कोई ठोस कदम उठाने के लिए प्रेरित कर सकें. हमारा मकसद हालात में एक पॉजिटिव बदलाव लाना है. और वैसे भी लोकतंत्र के मंदिर, संसद में किसी भी नागरिक की मौत को राजनीति और अफसरशाही के चलते नजरअंदाज नहीं होने देना चाहिए.

Share This Article