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सरकार के दिल में चोर है…

Isha Fatima for BeyondHeadlines

19 सितंबर, 2012… आज बटला हाउस ‘इन्काउंटर’ को हुए चार वर्ष पूरे हो चुके हैं. पुलिस की जवान पूरे बटला हाउस व आस-पास के इलाक़ों में अलग-अलग टुकड़ों में तैनात हैं. मुसलमानों में आज भी गुस्सा उबल रहा है.  धरना-प्रदर्शन, जूलूसें निकाल कर पुरानी यादों व ज़ख्मों को फिर से ताज़ा कर दिया गया है. (हालांकि बटला हाउस के मुसलमानों को तो यह दिन पूरी जिन्दगी याद रहेगी.) खैर, इस फर्जी इन्काउंटर में हमने न सिर्फ दो मासूम बेगुनाहों को खोया है, बल्कि साथ-साथ देश का एक जांबाज़ सिपाही एमसी शर्मा को भी खोया है. और उससे ज़्यादा तकलीफ की बात यह है कि आज भी इस मामले के बाद देश के अलग-अलग जेलों में मुसलमान नौजवान अपने माथे पर आतंकवाद का ठप्पा लगाए जेलों में बंद हैं.

जामिया के लाइब्रेरी में काम करने वाले अली मुहम्मद (बदला हुआ नाम) बताते हैं कि इस पूरे मामले में पुलिस व सरकार की भूमिका संदेह के दायरे है. क़ानून हर पल दम तोड़ता नज़र आता है. आखिर इस इन्काउंटर की जांच से सरकार को इन्कार क्यों है. मुसलमानों के लिए यह बात समझ से परे है. आगे वो बताते हैं कि देश की शांति, तरक़्क़ी और विकास के लिए इंसाफ और समानता की आवश्यकता है. इस तरह की घटनाएं देश में अराजकता और अविश्वास का वातावरण पैदा करती हैं, जो कि देश की संप्रभुता और अखण्डता के लिए हानिकारक है.

एक मीडिया संस्थान से जुड़े अशफाक़ आहमद बताते हैं कि 19 सितम्बर, 2008 दरअसल हिन्दुस्तान के इतिहास का वो काला दिन है जिसे याद कर आज भी हमारा दिल कांप उठता है. आज चार सालों के बाद भी मुसलमानों को इंसाफ का इंतज़ार है, लेकिन हुकूमत इसके इंसाफ देने के मूड में शायद नहीं है. वो इस मामले को सिर्फ सियासत के लिए ही इस्तेमाल करना चाहती है. लोगों से अपने ‘हाकिम’ की घड़ियाली आंसू का जिक्र कर मुसलमानों का वोट पाना चाहती है.

सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले एक टीचर मो. अकबर के अनुसार भी यह इन्काउंटर सरासर फर्जी है. और सरकार के दिल में चोर है, इसलिए वो इसकी जांच से लगातार इन्कार कर रही है. क्योंकि अगर जांच हो जाती है तो सरकार की इज़्ज़त पर कालिख पूत जाएगी. अफसोस हमारी सरकार व देश के रहनुमा जो भारत को एक विकसित राष्ट्र के तौर पर देखना चाहते हैं, वो यह नहीं सोचते है कि अगर ऐसा ही डर व खौफ का माहौल मुस्लिम युवाओं के दिलों में बना रहा तो उनका व देश का उज्जवल भविष्य अंधकार में पड़ जाएगा. क्योंकि जब इंसान अपने खून को ज़मीन पर देखता है तो कुछ भी कर गुज़रने की स्थिति में पहुंच जाता है और फिर सरकार, न्यायपालिका और प्रशासन सिर्फ नाम भर के रह जाते हैं… सरकार को इस दिशा में अब सोचना ही होगा…

सिर्फ जामिया नगर ही नहीं, बल्कि पूरे देश के मुसलमानों के दिलों में बटला हाउस ‘इन्काउंटर’ का ज़ख्म ताज़ा है जो शायद ज्यूडिशियल जांच के बाद ही भरे. और सबसे बड़ी बात यह है कि लोगों का दिल यह सोच कर रोता है कि आज भी बेगुनाहों के जिन्दगियों के साथ खेला जा रहा है और अफसोस हमारी न्यायपालिका व सरकार पर कोई असर नहीं पड़ता. मीडिया भी हमें हमेशा नाउम्मीद करने का ही काम करती है. उनके लिए तो यह चार दिन की न्यूज़ हेडलाईन होती हैं, मगर रह जाते हैं सिर्फ वो लोग जिनके आंखों का पानी सूख जाता है अपने औलादों की रिहाई का इंतज़ार करते-करते…

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