Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
प्रकाश झा की फिक्शनल ‘राजनीति’ भले ही सफल हो गई हो, लेकिन वो शायद ही ‘रियल’ राजनीति में सफल हो पाएं. प्रकाश झा के ‘चक्रव्यूह’ में फंसे लोगों में इतना आक्रोश है कि वो अगर उसे अभिवयक्त कर दें तो प्रकाश झा का अंजाम गंगाजल के साधू यादव जैसा हो.
दरअसल, प्रकाश झा जब चुनाव लड़ रहे थे तो उन्होंने चम्पारण में चीनी मिल खोलने का न सिर्फ वादा किया बल्कि सरकार से चीनी मिल के नाम पर ज़मीन भी ले ली थी. लेकिन शिलान्यास और ज़मीन की चारदीवारी के बाद काम बंद हो गया और चीनी मिल कागजों में ही सिमटकर रह गई. यही नहीं, चीनी मिल के नाम पर झा ने लोगों की काफी ज़मीन ऑने-पौने दामों में गुरुवलिया गांव के फायदे और तरक्की की झूठी तस्वीर दिखाकर खरीद ली. झा ने ज़मीन देने वालों को नौकरी देने का वादा भी किया था जिसे वो आज तक पूरा नहीं कर सके हैं.
स्थानीय लोग प्रकाश झा के झांसों में आ गये और अपनी ज़मीन खुशी-खुशी ऑने-पौने दामों में बेच दी. पर तकरीबन 6-7 सालों के बाद भी जब चीनी मिल नहीं खुल सका तो लोग अब अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं और प्रकाश झा को धोखेबाज कह रहे हैं.
यह कहानी सिर्फ गुरूवलिया गांव की ही नहीं है. बल्कि बेतिया के मंशा टोला का भी यही हाल है. प्रकाश झा ने यहां भी चीनी मिल का ख्वाब लोगों को दिखाकर औने-पौने दाम पर ज़मीने ली, लेकिन बाद में यहां शॉपिंग कॉम्पलेक्स का बोर्ड लगा दिया. हालांकि एक हकीकत यह भी है कि शॉपिंग कॉम्पलेक्स के खुलने को लेकर स्थानीय लोगों में काफी उत्साह भी था.
प्रकाश झा ने शॉपिंग कॉम्पलेक्स का बोर्ड लगाने के कुछ ही दिन बाद से कॉम्पलेक्स के पीछे की ज़मीने रेसिडेंसियल एरिया बताकर बेच दी. प्रकाश के इस क़दम को लोगों ने व्यापार की नई उम्मीद के रूप में देखा और शॉपिंग कॉम्पलेक्स में नौकरी मिलने की लालच भी लोगों के मन में आ गया. बस फिर क्या था ज़मीन की कीमत आसमान पर पहुंच गई. लोगों ने भारी कीमत चुकाकर ज़मीन खरीदी, लेकिन खरीदने के बाद पता चला कि शॉपिंग कॉम्पलेक्स की भी ज़मीन बेची जा चुकी हैं. यानी शॉपिंग कॉम्पलेक्स भी एक धोखा ही निकला. शॉपिंग कॉम्पलेक्स के सामने रहने वाले एजाज मुखिया के बेटे आज़ाद अपना गुस्सा जाहिर करते हुए कहते हैं—’झूठ का अब हो गया है पर्दाफाश… घोर अंधेरा का किसने नाम रख दिया प्रकाश’
प्रकाश झा के भाई प्रभात झा से जब इस बारे में सवाल किये गए तो उन्होंने कहा कि ये काफी गंभीर मामला है और इसकी लंबी दास्तान है. लेकिन यह तय है कि हम बेतिया में कोई मॉल नहीं खोल रहे हैं. और जहां तक चीनी मिल का सवाल है तो ये काफी पेचीदा मामला है. इसके विलंब के लिए सरकार और यहां की पब्लिक ज़िम्मेदार है.
प्रकाश झा के धोखे की दो कहानियां सुनने के बाद जब हम उनके गांव ‘बड़हरवा’ पहुंचे तो वहां भी घोर अंधेरा ही मिला. “प्रकाश के गांव में अंधेरा” जी! प्रकाश झा के गांव के लोगों ने आज तक बिजली नहीं देखी है.
भले ही प्रकाश झा की फिल्म भारत में खूब देखी जाती हों लेकिन बिजली न आने की वजह से उनका गांव ही उनकी फिल्में नहीं देख पाता. हम प्रकाश झा के बड़े से घर के अहाते में अंदर घुसे तो एक छोटा सा बच्चा बाहर निकलता दिखाई दिया, जो हमें देखकर थोड़ा डर गया. बगैर कुछ पुछे ही वह बोला कि वह बगल के गांव में रहता है और यहां अपना मोबाईल जार्च करने आया है, क्योंकि उसके गांव में बिजली नहीं है. डरने का कारण पूछने पर वह बोला कि मुझे लगा कि मालिक आ गए हैं.
गांव के लोगों ने भले ही बिजली न देखी हो, लेकिन प्रकाश झा के घर में बिजली के खंभे व तार लटक रहे हैं. वहां मौजूद झा जी के लोगों ने बताया कि ये बिजली बाहर से आती है. और आजकल तो पिछले 7-8 दिनों से आई भी नहीं है. बाकी काम तो जनरेटर चला कर ही होता है. (बिहार में खासकर चम्पारण में तो यही कहानी है, लोग बिजली का इंतज़ार हफ्तों करते हैं. और नीतिश जी की मीडिया विकास-विकास चिल्ला रही है.)
प्रकाश झा के गांव की हालत ऐसी है कि जो धूल प्रकाश झा ने राजनीति फिल्म में रमना के मैदान में हैलीकॉप्टर से उड़ाते हैं, वो धूल हम अपनी बाईक से ही उड़ा कर चले आएं. ऐसे में अगर प्रकाश झा 2014 में फिर से चुनाव लड़ने का मूड बना रहे हो तो ज़रा सोच-विचार कर लें, क्योंकि जब खुद उनके गांव का यह हाल है और यहां के लोग ही उनसे खफा हैं तो बाकियों का अंदाज़ा आप खुद ही लगा सकते हैं. चलते-चलते आपको यह भी बता देते हैं कि नेपाल के उपराष्ट्रपति परमानन्द झा इसी बड़हरवा गांव के दामाद हैं.