अख़बारों की आज़ादी

Beyond Headlines
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Mahtama Gandhi

“भाषण-स्वातंत्र्य, सभा-सम्मेलन की स्वतंत्रता और मुद्रण-स्वातंत्र्य इन तीनों अधिकारों की पुनः स्थापना लगभग पूर्ण स्वराज्य के समान है.”

भाषण-स्वातंत्र्य का मतलब तो यही है कि हमारे वचन कितने कठोर और चोट पहुंचाने वाले क्यों न हो, फिर भी उस स्वतंत्रता पर आक्रमण न किया जाए. और अख़बारों की स्वतंत्रता का सच्चा सम्मान तभी है जब वे कड़ी से कड़ी टिका-टिप्पणी कर सकें तथा सच्चाई को तोड़-मरोड़ कर गलत ढंग से भी पेश कर सकें. इन बातों की तो रक्षा अवश्य होनी चाहिए, किंतु वह इस तरह कि ऐसे लेखों का छापना क़ानून द्वारा बन्द कर दिया जाए या छापेखाने पर ही हमला करके उसे बंद कर दिया जाए. यह काम तो अख़बारों को स्वतंत्रत रखते हुए सच्चे अपराधी को सज़ा देकर ही होना चाहिए. इसी प्रकार सभा-सम्मेलन की स्वतंत्रता का सच्चा सम्मान तो उसी को कहा जा सकता है, जब लोग आमतौर पर सम्मिलित होकर बड़ी-बड़ी क्रांतिकारी योजनाओं पर भी विचार कर सकें और यदि वास्तव में कोई ऐसी क्रांति हो जाए जिसका उद्देश्य जनमत को और जनमत का प्रतिनिधित्व करने वाली सरकार को भ्रमित करके अव्यवस्था फैलाना हो तो उस क्रांति को कुचलने के लिए सरकार सेना का बर्बर शक्ति का प्रयोग न करे, बल्कि जनमत और नागरिक पुलिस का ही सहारा ले.

भारत सरकार अब लोकमतों को जाग्रत करने वाले और व्यक्त करने वाले इन तीन शक्तिशाली और महत्व के साधनों को नष्ट करने का प्रयत्न कर रही है. मेरा अनुमान है कि यदि जनता कोई कोई आन्दोलन उठाकर इस रोग के कीटाणुओं को बढ़ने से न रोकेगी तो जो संयुक्तप्रांत और पंजाब मे हो रहा है, वह धीरे-धीरे और जगह भी होगा.

मुझे विश्वास है कि जिस संपादक के पास कुछ बातें कहने लायक हैं तथा जिसके लेखों को लोग चाव से पढ़ते हों, वह जब तक जेल-खाने के बाहर हैं तब तक उसका मुंह आसानी से बंद नहीं रखा जा सकता. और जहां वह जेल में गया कि मानो उसने अपना पूरा संदेश दे दिया.

पत्रकारों से मेरा कहना है कि सरकारी जंजीरों से मुक्त हो जाओ, आज़ादी के लिए मर-मिटने का सबसे पहला हक़ पत्रकारों का है. आपके पास क़लम है, उसे सरकार दबा नहीं पाए.

(सम्पूर्ण गांधी बागमय, खंड-22, पृष्ठ-190, यंग इंडिया: 12 जनवरी 1922)

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