BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Reading: सर सैय्यद अहमद खां तो पैदा ही मरने के बाद हुए!
Share
Font ResizerAa
BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
Font ResizerAa
  • Home
  • India
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Search
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Follow US
BeyondHeadlines > Latest News > सर सैय्यद अहमद खां तो पैदा ही मरने के बाद हुए!
Latest NewsLeadबियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी

सर सैय्यद अहमद खां तो पैदा ही मरने के बाद हुए!

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published October 17, 2012 5 Views
Share
11 Min Read
SHARE

Abdul Hafiz Gandhi for BeyondHeadlines

यह दुनिया का दस्तूर है कि मरने के बाद ही उस आदमी की कीमत का लोगों को पता चलता है. सर सैय्यद के साथ भी ऐसा ही हुआ. दरअसल, सर सैय्यद पैदा ही मरने के बाद हुए. जीवित रहते हुए तो सर सैय्यद को काफ़िर और पता नहीं और किन-किन विरोध भरे शब्दों को सुनने को मिला. सर सैय्यद को तो पहचाना तब गया जब वह इस दुनिया से विदा हो चुके थे. पर सैय्यद जैसे लोग मरते नहीं हैं, वह तो अपने कारनामों और सोच के रूप में हमेशा जीवित रहेंगे.

किसी ने कितना सच कहा है कि आदमी मर सकता है, देश बन और बिगड़ सकते हैं लेकिन सोच हमेशा जीवित रहती है (A man may die, nations may rise and fall, but the idea lives on).

सर सैय्यद आधुनिक विज्ञान की सोच को लेकर बहुत गंभीर थे और इसलिए वह 1869 में लंदन गए और वहां के ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज जैसे शिक्षा संस्थानों का निरीक्षण किया. वह हिंदुस्तान में कैम्ब्रिज जैसी संस्था बनाना चाहते थे जहां आधुनिक विज्ञान और अंग्रेजी की पढ़ाई हो. सर सैय्यद प्रगतिशील सोच रखते थे और इसलिए उन्हें यह एहसास हो गया था कि पश्चिमी विज्ञान और यूरोपीय सोच के बिना मुसलमानों का भविष्य सुरक्षित नहीं है.

इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए उन्होंने साइंटिफ़िक सोसाइटी ऑफ अलीगढ़ बनाई जिसका काम विज्ञान और अन्य अध्ययन से संबंधित नोट्स उर्दू और अंग्रेज़ी में अनुवाद करना था. सर सैय्यद अंग्रेजी शिक्षा के समर्थक थे. जब उन्होंने 1875 में मुस्लिम एंग्लो ओरियन्टल कॉलेज (MAO College) की स्थापना की और उन्होंने अपनी सोच के अनुसार कॉलेज को आगे बढ़ाने का जिम्मेदारी थीयोडोर बेक को दी. थीयोडोर बेक ने कॉलेज के प्रिंसिपल के रूप में काम किया.

सर सैय्यद का सपना था कि वह इस संस्थान को आधुनिक विज्ञान और धार्मिक शिक्षा के संगम के रूप में पेश. उनकी नज़र में यह संस्थान नए और पुराने पश्चिम और पूर्वी अध्ययन के बीच पुल का काम करने वाला होगा.

सर सैयद को सही मानों में अगर हम श्रद्धांजलि देना चाहते हैं तो उनकी सोच को आगे बढ़ाने का काम करना होगा. उनकी सोच इस देश के मुसलमानों को ज़लालत और पिछड़ेपन से निकालना था.

1857 के युद्ध के बाद उन्हें यह पूरी तरह विश्वास हो गया था कि मुसलमानों के पिछड़ेपन की सबसे बड़ी वजह उनका ज्ञान से दूर होना है. उन्होंने इसका समाधान केवल ज्ञान को लोगों तक मुहैया कराने में किया. लेकिन आज बड़े दुख के साथ कहना पड़ता है कि सिर सैय्यद की मृत्यु के बाद कोई सर सैय्यद तो छोड़िए उनके आसपास स्थान रखने वाला व्यक्ति भी हमने पैदा नहीं किया.

हाँ, छोटी बड़ी कोशिशें ज्ञान के क्षेत्र में ज़रूर हुई है, पर जिस उद्देश्य को लेकर सर सैय्यद चले थे उस उद्देश्य से आज सर सैय्यद के विचार और प्रयासों से फैज़याब लोग बहुत दूर हैं. हम सर सैय्यद के बनाए संस्थान से फ़ैज़याब हुए लेकिन सर सैय्यद के विचारों को भूल बैठे.

ऐसा नहीं कहूंगा कि लोगों ने कोशिश नहीं की. हकीम अब्दुल हमीद ने जामिया हमदर्द की स्थापना की और आज वह deemed university है. इसी तरह कुछ लोगों के प्रयासों का नतीजा है कि लखनऊ में Integral University स्थापित हुआ. अभी हाल ही में आज़म खान के प्रयासों से उत्तर प्रदेश के रामपुर में मौलाना मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय खुली. लेकिन अधिकांश शिक्षण संस्थानों में आम मुसलमान इसलिए शिक्षा नहीं पा सकता क्योंकि यहां self-finance कोर्सेस अधिक हैं, जहां प्रवेश शुल्क दे पाना एक आम मुसलमान के बस की बात नहीं है.

सर सैय्यद का सपना तो हर मुसलमान को सस्ती, अच्छी और आधुनिक विज्ञान मुहैया कराना था, जो ये शिक्षण संस्थान पूरा नहीं करते.

क्या बात है कि सर सैय्यद की मृत्यु के इतने दिनों बाद भी मुसलमानों के पास सस्ती और क्वालिटी शिक्षा देने वाले स्कूल नहीं के बराबर हैं? अधिकांश मुस्लिम क्षेत्रों में ऐसे स्कूलों की बेहद कमी है जिनमें अंग्रेजी, आधुनिक विज्ञान और क्वालिटी एजूकेशन दी जा सके.

मेरी नज़र में हमने सर सैय्यद के सपनों को सच करने के लिए सच्चे दिल से प्रयास नहीं किए. जो संस्था सर सैय्यद हमें दे गए उसी को हम काफी मान कर घर बैठे रहे. क्या कारण है कि मुस्लिम बच्चे आज देश की कोई भी प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी या कॉलेज में देखने को नहीं मिलते?

सच्चर समिति ने ये सारे आंकड़े पेश किए हैं कि किस तरह आईआईटी, आईआईएम और विभिन्न प्रोफेसनल शिक्षण संस्थानों में मुस्लिम छात्र न के बराबर हैं. सच्चर रिपोर्ट इस के कारण पर भी प्रकाश डालती है. रिपोर्ट के अनुसार मुस्लिम क्षेत्रों में स्कूलों की बेहद कमी है, यहां पर प्राथमिक, अपर प्राथमिक और सेकेंडरी स्कूल बहुत कम संख्या में हैं. अक्सर बच्चे सेकेंडरी तक आते-आते ड्रॉप आउट कर जाते हैं जिससे उनकी ऐसी कॉलेज और विभिन्न शिक्षण संस्थानों कम होती जा रही है.

मुझे नहीं लगता कि कोई सर सैय्यद हमें समझाने आएगा कि अपने समाज को बेहतर बनाना चाहते हैं तो आधुनिक और अंग्रेजी शिक्षा का दामन थाम लो. ऐसे में हम सब को ही मिलकर ऐसी कोशिशें करनी चाहिए कि सर सैय्यद के सपनों की ताबीर हो सके.

मौजूदा हालात को देखते हुए मुस्लिम समाज के पढ़े-लिखे लोगों को आगे आना होगा. उन्हें अपनी जिम्मेदारी अपने-अपने क्षेत्रों में संभालनी होगी. उन्हें सोचना होगा कि हम तो शिक्षित हो गए अब उनकी यह ज़िम्मेदारी बनती कि अपने समाज को ज़लालत के अंधेरे से बाहर निकालें.

आजकल देखने को मिलता है कि लोग खुद पढ़-लिखने के बाद अपने जीवन और घर को संवारने में जुट जाते हैं. उन्हें अपने समुदाय में क्या हो रहा है इसकी कम ही चिंता रहती है. ऐसे समय में मुझे बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर की एक बात याद आती है. दलित समाज के लोगों को संबोधित करते हुए बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर ने 18 मार्च, 1956 को आगरा में कहा था कि मुझे मेरे समाज के पढ़े-लिखे लोगों ने धोखा दिया क्योंकि वे पढ़ लिख जाने के बाद अपनी ज़िंदगी में लग गए.

बाबा साहब ने कहा कि हमने अपने समाज में पढ़ाई से बहुत छोटे और बड़े क्लर्क पैदा कर लिए. यह लोग अपने और अपने परिवार के पोषण में लग गए और भूल गए कि समाज के लिए भी उनकी जिम्मेदारी बनती है. यही कम और अधिक मुस्लिम समाज में हुआ, जो पढ़ गए उन्होंने समाज की ओर मुड़ कर नहीं देखा, हालांकि हर व्यक्ति की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह बदले में समाज को कुछ दे ताकि समाज और देश का भला हो सके.

सर सैय्यद ने अपने भाषण में कहा था कि हिंदू और मुसलमान भारतीय रूपी दुल्हन की दो सुंदर आँखें हैं और इनमें से अगर एक आँख भी ख़राब हो जाए तो दुल्हन बदसूरत दिखेगी. 2012 तक पहुंचते-पहुंचते यही हुआ. मुस्लिम समाज के लोग सरकारी नौकरियों और सरकारी शिक्षण संस्थानों से नदारद होते चले गए. आज भारतीय रूपी दुल्हन की एक आंख ख़राब होती जा रही है. जब तक आंख नहीं बेहतर बनाया जाएगा भारतीय रूपी दुल्हन की सुंदरता बनाए रखना संभव नहीं पाएगा.

यह सभी के अधिकार में है कि मुस्लिम समाज के सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति को देखते हुए उनके लिए कुछ पुख्ता प्रबंध किए जाए. मैं समझता हूं कि यह जिम्मेदारी सरकार और मुस्लिम समाज के पढ़े-लिखे और पैसे से मज़बूत लोगों की बनती है कि हर मुस्लिम क्षेत्र में अंग्रेजी मीडियम स्कूल खोलें ताकि कम्पेटेटिव वर्ल्ड में मुस्लिम बच्चों को क्षमता से लबरेज़ किया जा सके. यह क्षमता से लबरेज़ मुस्लिम बच्चे अपना भविष्य खुद सर्च करेंगे.

आज आवश्यकता अंग्रेजी और आधुनिक शिक्षा और इसके लिए हजारों ऐसी उत्कृष्ट, सस्ते और क्वालिटी स्कूल खोलने होंगे. अगर मुस्लिम समाज के लोग सर सैय्यद को सही मायनों में श्रद्धांजलि देना चाहते हैं तो इन स्कूलों को स्थापित करना होगा.

सर सय्यद डे पर भाषण देकर, मुआशरों का आनंद लेकर और डिनर खा हाथ पोछने से कुछ नहीं होगा. मैं तो कहता हूँ कि मुस्लिम समाज के 10-15 जिम्मेदार लोगों जैसे सेवानिवृत्त न्यायाधीश, पूर्व कुलपति, सेवानिवृत्त आईएएस, आईपीएस, प्रोफेसर और बिज़नेसमैन आदि की कमिटी बनाकर एक फंड बनाया जाए ताकि मुस्लिम क्षेत्रों में अंग्रेजी मीडियम स्कूल खोले जाएं. यह कमिटी देश में और विदेशों में मनाए जाने वाले सर सैय्यद दिवस समिति के अधिकारियों से अपील करे कि सब लोग डिनर और मुशायरें न करा कर इस फंड में पैसा दें जिस पैसे का इस्तेमाल स्कूल खोलने में हो और मुस्लिम क्षेत्रों में शिक्षा पहुंचे.

इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए कुछ लोगों को आगे आना होगा. समाज का काम करने के लिए गालियां भी पड़ती है, इसलिए इन लोगों को इसके लिए तैयार होना होगा. यह काम बहुत अच्छा और बड़ा है, इसलिए जो लोग यह काम करने के लिए आगे आएं उन्हें आपने आपको समझाना होगा कि इस काम में अच्छी और बुरी दोनों बातें सुनने को मिलेगी. क्योंकि कुछ लोगों का स्वभाव ही सही लोगों और सही काम की बुराई करना है. इस कमिटी के लोगों को गाली-प्रूफ़ होना पड़ेगा, तब जा कर यह काम हो सकता है अन्यथा नहीं. अगर इस स्कूल निर्माण होने लगे तो मेरी नज़र में इससे अच्छा सर सैय्यद को कोई श्रद्धांजलि नहीं हो सकती.

TAGGED:sir syedsir syed ahmad khan
Share This Article
Facebook Copy Link Print
What do you think?
Love0
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0
“Gen Z Muslims, Rise Up! Save Waqf from Exploitation & Mismanagement”
India Waqf Facts Young Indian
Waqf at Risk: Why the Better-Off Must Step Up to Stop the Loot of an Invaluable and Sacred Legacy
India Waqf Facts
“PM Modi Pursuing Economic Genocide of Indian Muslims with Waqf (Amendment) Act”
India Waqf Facts
Waqf Under Siege: “Our Leaders Failed Us—Now It’s Time for the Youth to Rise”
India Waqf Facts

You Might Also Like

Latest News

Urdu newspapers led Bihar’s separation campaign, while Hindi newspapers opposed it

May 9, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

OLX Seller Makes Communal Remarks on Buyer’s Religion, Shows Hatred Towards Muslims; Police Complaint Filed

May 13, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

Shiv Bhakts Make Mahashivratri Night of Horror for Muslims Across India!

March 4, 2025
Edit/Op-EdHistoryIndiaLeadYoung Indian

Maha Kumbh: From Nehru and Kripalani’s Views to Modi’s Ritual

February 7, 2025
Copyright © 2025
  • Campaign
  • Entertainment
  • Events
  • Literature
  • Mango Man
  • Privacy Policy
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?