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BeyondHeadlines > Edit/Op-Ed > उत्तर प्रदेश में ‘मैंगो मैन’ और पुलिस
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उत्तर प्रदेश में ‘मैंगो मैन’ और पुलिस

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published October 10, 2012
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8 Min Read
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Dilnawaz Pasha for BeyondHeadlines

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने 9 अक्टूबर को लखनऊ में विशाल रैली कर प्रदेश सरकार और प्रशासन व्यवस्था पर सवाल खड़े करते हुए अपने ‘सुशासन’ को याद करवाने की कोशिश की. मायावती ने कहा, ‘प्रदेश की सरकार को गुंडे चला रहे हैं, आम जनता त्राही-त्राही कर रही है. सरकार ने हर स्तर पर वसूली करने के लिए अपने गुंडे बिठा रखे हैं.’

मायावती सत्ता से बाहर हैं. उनका प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को कोसना राजनीतिक स्टंट हो सकता है. मायावती के ‘सुशासन’ के अनुभव भी कुछ खास अच्छे नहीं है.

9 अक्टूबर 2012 को ही अपने साथ हुई घटना का जिक्र करना चाहूंगा ताकि आप प्रदेश सरकार की गुंडागर्दी और यहा हम जैसे ‘मैंगो मैन’ के हाल का अंदाजा लगा सके.

रात करीब 9 बजे एक मित्र को विदा करने काला पत्थर रेडलाइट तक आया. रोज़ की तरह आज भी ट्रैफिक पुलिस वाले वसूली में लीन थे और आने-जाने वाले निकल रहे थे. मित्र को विदा कर मैं अपने घर की ओर चल पड़ा. कुछ क़दम ही चला था कि मैंने खुद से सवाल किया कि कब तक इस तरह के अवैध कामों को देखकर अनदेखा करते रहोगे? मैं शायद लौट भी जाता लेकिन एक सब्जियों से भरे ऑटो के ड्राइवर को पैसे देने के लिए मजबूर होता देख मैं खुद को रोक नहीं पाया.

मोबाइल का कैमरा ऑन किया और सड़क पार की. ऑटो के पास ही खड़ा सिपाही ऑटो से बाहर आए ड्राइवर से रेड लाइट पास करने के एवज में पैसे मांग रहा था. सौदेबाजी चल रही थी. मैं दूर से खड़ा वीडियो बनाता रहा.

सौदा पट गया, ड्राइवर गाड़ी में आया और बाकी बैठे साथियों से पुलिसवालों को देने के लिए पैसे मांगने लगा. मेर कैमरा ऑन था और वीडियो रिकॉर्डिंग जारी थी. तभी अचानक एक सिपाही आया और कहा- मोबाइल है, इसे लेकर घर जा, यहां क्यों खड़ा है. मैंने तुरंत वीडियो सेव किया, इसी बीच सिपाही ने मेरा फोन अपने हाथों में जकड़ लिया.

चंद पल पहले तक पुलिस की अवैध वसूली के सबूत जुटा रहा मेरा गैलेक्सी नोट अब सिपाही के हाथों में तड़प रहा था. छीना-झपटी में मोबाइल बंद हो गया. सिपाही ने पूछा- तुम क्या पत्रकार हो. मैंने कहा नहीं- तो फिर वीडियो क्यों बना रहा है, अभी तुझे सबक सिखाते हैं. वो आगे कुछ कहता इससे पहले ही मैंने कहा कि ऊपर देखो, सीसीटीवी लगा है.

रेड लाइट पर लगे सीसीटीवी कैमरा को देखते ही सिपाही सड़क पार कर दूसरी ओर चला गया. एक मिनट के भीतर ही वहां मौजूद सभी ट्रैफिक पुलिस कर्मी और सिपाही नदारद हो गए.

मैंने 100 नंबर पर कॉल कर शहर के पुलिस अधीक्षक का नंबर लिया और उन्हें फोन कर घटना के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि कल वो मेरठ में हैं इसलिए परसों ही मुझ से मिल पाएंगे. मैंने सिपाही द्वारा मोबाइल छीनने की कोशिश को आपराधिक घटना कहा तो उन्होंने मुझे इंदिरापुरम थाने जाकर शिकायत दर्ज करवाने की बात कह दी. इसी बीच उन्होंने थाने में फोन करके मेरी शिकायत दर्ज किए जाने की ताकीद भी कर दी.

रात 9 बजकर 45 मिनट पर मैं थाने पहुंचा. बाहर दरवाजे पर एक सिपाही बंदूक ताने खड़ा था. अंदर दो मुंशी बैठे थे. एक और व्यक्ति मोबाइल छीने जाने की शिकायत दर्ज करवाने आया था. सिपाहियों ने मोबाइल लूट की घटना को मोबाइल खोने की घटना बनाकर शिकायत दर्ज कर ली. मैं अभी खड़ा ही था कि मुंशी ने पूछा- कैसे आए हो? मैंने कहा एक सिपाही ने मेरा मोबइल लूटने की कोशिश की, शिकायत दर्ज करवाने आया हूं. मेरे यह कहते ही दिवार पर लिखे थानाध्यक्ष के नंबर की ओर इशारा करते हुए मुंशी ने कहा कि पहले इंस्पैक्टर साहब से बात करो फिर शिकायत दर्ज की जाएगी. मैंने इंस्पैक्टर को फोन लगाया, उन्होंने मुंशी से बात की और मुझे शिकायत लिखने के लिए दो कागज मिल सके.

मैंने शिकायत लिखी, वहां मौजूद हेडकांस्टेबल ने मुंशी से शिकायत पढ़ी. शिकायत पढ़े जाने के बाद मुंशी और सिपाही इस बात को जोर देकर पूछने लगे कि मैं क्या करता हूं. उन्होंने कई बार पूछा लेकिन मैंने सिर्फ इतना ही कहा कि प्राइवेट नौकरी करता हूं. उन्हें यह नहीं बताया कि पत्रकार हूं.

अपने ही एक सहकर्मी के खिलाफ एक ‘मैंगो मैन’ की शिकायत दर्ज करते हुए सिपाही काफी सकपका रहे थे. मैंने लिखने के लिए पैन मांगा तो आनाकानी की. दो सादे कागज के पन्ने देते हुए ऐसा व्यवहार किया जैसे अपनी संपत्ति मेरे नाम लिख रहे हों. अंततः रात साढ़े दस बजे के करीब मेरी शिकायत दर्ज हो सकी. थाना इंदिरापुरिम के एसएचओ ने भरोसा दिया है कि वो जांच करेंगे. एसएसपी ने भी कहा है कि वो दोषी सिपाहियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे.

पूरे घटनाक्रम के बाद मैं घर लौट आया हूं. सिपाहियों की ही वसूली पर मेरी पिछली रिपोर्ट पर फेसबुक और BeyondHeadlines पर आई टिप्पणियां मेरे सामने सवाल बनकर खड़ी हैं. उस वक्त ज्यादातर साथियों ने कहा था- ‘बंधु आप तो पत्रकार हो, किसी दिन आम आदमी बनकर वसूली करते हुए सिपाहियों का वीडियो रिकॉर्ड करना तब पता चलेगा यूपी पुलिस क्या करती है.’ ये टिप्पणियां मेरे जहन में कौंध रही है और मैं मन ही मन रेड लाइट पर लगे उस सीसीटीवी का शुक्रिया अदा कर रहा हूं. अगर वो सीसीटीवी न होता तो शायद मेरा मोबाइल मेरे पास नहीं होता, या मेरा ही क्या हाल हुआ होता खुदा जाने….

लेकिन इस अहसास के बीच एक सवाल कौंध रहा है कि कब तक गलत को देखकर आंखे बंद की जा सकती है, कब तक अपनी चेतना को मारा जा सकता है. कभी न कभी किसी न किसी को तो आवाज़ उठानी ही होगी. वो कभी-कभी न कभी अब क्यों नहीं हो सकता और वो किसी न किसी मैं क्यों नहीं हो सकता.

मुझे ‘मैंगो मैन’ समझकर सिपाही ने जो व्यवहार किया वो किया. लेकिन मैंने भी ठान ही ली है कि मैं साबित करके रहूंगा कि जिस देश में मैं रहता हूं वो ‘बनाना रिपब्लिक’ नहीं है. क्या आप मेरे साथ हैं? अगर हैं तो ‘मैंगो मैन’ के रूप में अपने अनुभव साझा करें. आपकी टिप्पणियों का स्वागत है.

TAGGED:Banana RepublicMango ManUP policeउत्तर प्रदेश में 'मैंगो मैन' और पुलिस
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