Nirmal Rani for BeyondHeadlines
हमारे देश के व्यापार, आवागमन, डाक व माल-भाड़े की ढुलाई तथा इनके निर्धारित गंतव्य तक पहुंचने से लेकर तमाम औद्योगिक विकास में भारतीय रेल की बहुत बड़ी भूमिका है. यदि यह कहा जाए कि भारतीय रेल के बिना देश का विकास ही संभव नहीं है तो यह कहना भी गलत नहीं होगा.
शायद यही वजह है कि इसे देश की जीवन रेखा भी कहा जाता है. परंतु हक़ीक़त तो यह है कि इस रेल व्यवस्था को तकनीकी दृष्टि से जितना सुरक्षित व संवेदनशील होना चाहिए यह उतनी सुरक्षित है नहीं. इसके असुरक्षित रहने के कारण जहां रेल प्रशासन की ओर से बरती जाने वाली तमाम प्रकार की लापरवाहियां हैं वहीं देश की आम जनता भी जो कि रेलवे की नज़ाकत व इसकी संवेदनशीलता को ठीक ढंग से नहीं समझती या समझते हुए भी उसकी अनदेखी करती है, वह भी जि़म्मेदार है. और यही रेलवे व आम जनता की संयुक्त लापरवाहियों के परिणामस्वरूप देश में रोज़ाना कहीं न कहीं से किसी न किसी हादसे की ख़बर सुनाई देती है.
उदाहरण के तौर पर पूरे देश में हज़ारों ऐसी रेलवे क्रासिंग हैं, जहां फाटक नहीं हैं या फिर मानव रहित फाटक हैं. ऐसे बिना फाटक की रेल व सडक़ क्रासिंग पर होने वाले हादसों की ख़बरें तो अक्सर आती ही रहती हैं. और यदि इन फाटक रहित रेल क्रासिंग पर कोई हादसा पेश आ जाए तो जनता सीधे तौर पर रेल प्रशासन को ही इसके लिए दोषी ठहराती है.
ज़ाहिर है ठहराना भी चाहिए. यह वास्तव में रेलवे की ही जि़म्मेदारी है कि वह किसी क्रासिंग से ट्रेन गुज़रते वक्त रेल लाईन पार करने वाले लोगों या वाहनों की सुरक्षा हेतु वहां फाटक लगाए जाने का प्रबंध करे.
अब प्रश्र यह है कि क्या ऐसी रेल क्रासिंग पर जहां गेट अथवा बैरियरनुमा फाटक लगे हुए हैं उन जगहों पर कोई दुर्घटना नहीं होती?
जी नहीं ऐसा हरगिज़ नहीं है. मेरे ख्याल से फाटक वाली रेल क्रासिंग पर फाटक रहित क्रासिंग से अधिक दुर्घटनाएं पेश आती हैं. फिर आखिर इन दुर्घटनाओं का जि़म्मेदार कौन हुआ? रेल विभाग या खुद आम आदमी?
प्राय: यह देखा जाता है कि जिस समय रेलवे का बैरियरनुमा फाटक बंद होता है उस समय अपने को जल्दी में समझने वाला प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह रिक्शा चालक हो, रेहड़ी वाला व्यक्ति हो, पैदल चलने वाला कोई शख्स या फिर साईकल, स्कूटर व मोटरसाईकल चालक यह सभी किसी न किसी प्रकार दु:ख-तकलीफ़ व परेशानी उठाकर बंद किए हुए बैरियर के पोल के नीचे से झुककर निकलने की कोशिश करते हैं. जबकि फाटक बंद होने की स्थिति में किसी भी व्यक्ति का इस प्रकार अवैध तरीके से फाटक पार करना न केवल उस के लिए खतरे का कारण हो सकता है बल्कि यह अपने-आप में एक अपराध भी है.
परंतु फाटक बंद होने की स्थिति में धड़ल्ले से गेट पार करने वाले लोगों को न तो खुद यह बात समझ में आती है कि वे थोड़ा धैर्य से काम लें तथा रेलवे द्वारा अपनाए जाने वाली इस सूक्ति को समझें कि -दुर्घटना से देर भली. और न ही रेलवे की ओर से ऐसे लोगों को रोकने व टोकने हेतु कोई पुख्ता प्रबंध किया जाता है. परिणामस्वरूप पूरे देश में लगभग सैकड़ों लोग रोज़ाना रेल की चपेट में आकर अपनी जान गंवा बैठते हैं.
इसके अतिरिक्त देश में अधिकांश शहरी क्षेत्रों से जहां-जहां रेल लाईनें गुज़रती हैं वहां रेलवे की ज़मीन पर अवैध कब्ज़े इस हद तक बढ़ गए हैं कि रेलवे की संपत्ति, रेल लाईन तथा रेलगाडिय़ों आदि के लिए भी बड़ा खतरा पैदा हो गया है. शरारती प्रवृति के लोग रेल लाईनों का इस्तेमाल कूड़ा-करकट फेंकने,मरे हुए जानवर फेंकने, लोहा व प्लास्टिक की वस्तुओं को तोडऩे-फोडऩे जैसे कार्यों के लिए भी करते रहते हैं.
ज़ाहिर है यह सभी चीज़ें भारतीय रेल की सुरक्षा के लिए बड़ा ख़तरा हैं. इसके अतिरिक्त पूरे देश में गाय-भैंस, बकरियां आदि भी रेल लाईन पर विचरण करती दिखाई देती हैं. ऐसा इसीलिए संभव हो पाता है क्योंकि रेल लाईन तक पहुंचने के लिए क्या आदमी तो क्या जानवर किसी के लिए भी कोई रोक-टोक नहीं है.
यह तो रेल का अपना भार तथा इसकी गति व उसमें प्रयुक्त होने वाला भारी इस्पात आदि ऐसा होता है कि अपनी चपेट में आने वाली किसी भी चीज़ को तहस-नहस करते हुए रेल आगे बढ़ जाती है. और उसके समक्ष आने वाली कोई भी वस्तु ध्वस्त हो जाती है. इसके अतिरिक्त चोर-उचक्के प्रवृति के लोग भी रेल लाईनों पर अक्सर घूमते-फिरते देखे जाते हैं. ऐसे लोग रेल लाईनों पर पड़ी लाईन से ढीली होकर निकली हुई स्प्रिंग उठाकर ले जाते हैं.
लगभग आधा किलो वज़न वाली स्प्रिंग बेचकर इन चोरों को तो चंद पैसे ही हाथ लगते हैं जबकि रेलवे की सुरक्षा के दृष्टिकोण से ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए. परंतु इस देसी व्यवस्था को आखिर कौन रोके?
पूरे देश में रेल लाईनों पर पैदल खलासी एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन की ओर चलते दिखाई देते हैं. इन की नज़रें उसी निकली हुई स्प्रिंग या ढीली पड़ चुकी स्प्रिंग पर होती है. ज़ाहिर है इस प्रकार के रख-रखाव में जो कि पूरी तरह से कारगर व सटीक नहीं है, भारतीय रेल को पूरे देश में करोड़ों रुपये खर्च करने पड़ते हैं. इससे बचने का उपाय यह है कि रेल प्रशासन को ऐसी स्प्रिंग रेल लाईन को स्लीपर के साथ मज़बूती से जकड़े रखने हेतु लगानी चाहिए जोकि न तो ढीली हो सकें न ही बाहर निकल सकें. ऐसी स्प्रिंग चीन की रेल लाईनों पर प्रयोग में लाई जा रही हैं. परंतु हमारा देश अभी भी झंडी, लालटेन, हथौड़े व पैदल लाईन जांच प्रणाली की व्यवस्था से उबर नहीं पा रहा है.
बड़े अफ़सोस के साथ एक बात यह भी लिखनी पड़ रही है कि रेल संपत्ति की सुरक्षा तथा रेलवे को चोर-उचक्कों से बचाने की जि़म्मेदारी रेल विभाग ने जिन कंधों पर डाल रखी है. उनकी कार्य-प्रणाली तथा गतिविधियां भी पूरी तरह गैर-जि़म्मेदाराना व संदिग्ध हैं.
रेल सुरक्षा बल की चौकियां तो हालांकि तमाम स्टेशन पर देखने को मिलती हैं. परंतु इनके कर्मचारी अपनी डयूटी के प्रति लापरवाही बरतते या ड्यूटी देने के बजाए धन उगाहने की कोशिशों में लगे रहने वाले अवैध कार्य करते यह ज़रूर देखे जा सकते हैं.
कई स्टेशन पर तो आरपीएफ, जीआरपी तथा टिकट निरीक्षकों का बाकायदा नेटवर्क बना होता है जो रेलवे स्टेशन पर सक्रिय भिखारियों, चोरों, उठाईगिरों, चेन स्नेचरों से मिला होता है. इसके अलावा बिना टिकट यात्रियों को पकड़ कर उन्हें धौंस दिखाकर पैसे वसूलने में यह वर्दीधारी टीटी की सहायता करते हैं.
तमाम ऐसे दैनिक यात्री जो अपना व्यापार संबंधी सामान लेकर सुबह-सुबह ट्रेन पर बैठकर पास-पड़ोस के कस्बों या गांवों की ओर यात्रा करते हैं. उन्हें उनके अधिक सामान या अधिक जगह घेरने वाले सामान का हौव्वा खड़ा कर उनसे रोज़ाना अवैध वसूली की जाती है. इसे हम भारतीय रेल का कितना बड़ा दुर्भाग्य व त्रासदी कहेंगे कि जिन्हें विभाग ने तैनात किया है व तनख्वाह दी है इस बात के लिए कि वे रेलवे के हितों का ध्यान रखते हुए इसकी सुरक्षा, इसके रख-रखाव व रेलवे की आय को बढ़ाने आदि का काम पूरी ईमानदारी व जि़म्मेदारी से करेंगे. वही लोग रेलवे को नुक़सान पहुंचाने तथा पूरी गैर-जि़म्मेदारी के साथ अपनी ड्यूटी देने जैसा फर्ज़ अदायगी का ढोंग किया करते हैं. गोया- जिन पे तकिया था वही पत्ते हवा देने लगे…
ख़बर है कि चीन व जापान की तरह देश में भी शीघ्र ही हाई स्पीड ट्रेन भी चलने वाली है. बहुत अच्छी ख़बर है. परंतु कितना अच्छा होता कि यदि हम पहले अपनी पारंपरिक व प्राचीन रेल प्रणाली को ही आधुनिक, सुरक्षित तथा और अधिक गतिशील बनाने का प्रयास करते. क्योंकि अब ऐसा लगने लगा है कि भारतीय रेल के परंपरागत त्रुटिपूर्ण एवं ढीले-ढाले संचालन से छुटकारा पाए जाने की सख्त ज़रूरत है.
भारतीय रेल उच्च अधिकारियों को चाहिए कि वे चीन जाकर वहां की रेल व्यवस्था को ठीक से देखकर, उसका अध्ययन कर तथा उससे कुछ सबक़ लेकर भारतीय रेल में सुधार करने के अवसर पैदा करें. आज चीन के विकास के चर्चे पूरी दुनिया में यूं ही नहीं हो रहे हैं. जिस प्रकार असुक्षित व अव्यवस्थित ही सही परंतु भारतीय रेल को देश के विकास की जीवन रेखा कहा जाता है उसी प्रकार अति व्यवस्थित व अति सुरक्षित चीनी रेल प्रणाली भी वहां के विकास की जीवन रेखा है.
यदि हम भारतीय रेल को चीन की तर्ज पर सुरक्षित, कम खर्चीला तथा जि़म्मेदार कर्मचारियों से युक्त कर देंगे तो इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारा देश भी विकास के रास्ते पर और तेज़ी से आगे बढ़ सकेगा. परंतु भारतीय रेल की वर्तमान दशा देखकर तो यही लगता है कि देश की जीवन रेखा समझी जाने वाली भारतीय रेल कम से कम इस समय तो असुरक्षा के साए में ही संचालित हो रही है.