Abhinav Upadhyay for BeyondHeadlines
दीपों का पर्व दीपावली जहां एक तरफ़ हर वर्ष लोगों के लिए खुशियों की सौगात लेकर आती है और लोग इसे धूम-धाम से मनाने के लिए प्रतीक्षारत रहते हैं और पटाखे जलाकर आनंद लेते हैं, वहीं पूरी रात इसके शोर से पशु-पक्षियों की नींद हराम हो जाती है. यही नहीं, यह ‘दिवाली’ उनके जीवन को संकट में डाल देता है.
यह जानकर शायद आप सबको आश्चर्य हो कि नवजात पक्षियों का तो मानसिक संतुलन तक बिगड़ जाता है और हृदयाघात जैसी परेशानी आने से मृत्यु तक हो जाती है. इसलिए दीपावली की रात पक्षियों के लिए क़यामत की रात बनकर आती है.
इस संबंध में दिल्ली विश्वविद्यालय के वन्य जीव विशेषज्ञ डा. एम. शाह अहमद का मानना है कि साल के दो दिनों का यह त्योहार पक्षियों के लिए नई बात जैसी है, क्योंकि बहुत सी पक्षियां इस समय अंडे देती हैं और उनके बच्चे पटाखों की तेज़ आवाज़ सहन नहीं कर पाते. उन्हें पता भी नहीं चलता कि आखिर ये धमाके क्यों हो रहे हैं. वह इस अनजान परिस्थितियों में हो रहे बदलाव को सहन नहीं कर पाते. इन धमाकों से पक्षियों के बच्चों की हृदयगति रुक जाती है या वे अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं. ऐसा भी देखा गया है कि कुछ तो उस इलाके को छोड़कर दूर चले जाते हैं और फिर नहीं आ पाते.
कुछ ऐसा ही हाल कुत्तों की नई प्रजाति के साथ भी होता है. पामेलियन कुत्ते तो पटाखों के इन धमाकों से कांप तक जाते हैं और कोना पकड़ कर दुबक कर बैठ जाते हैं. एक अन्य वन्य जीव विशेषज्ञ का कहना है कि युद्ध के बाद पशु-पक्षियों की क्या स्थिति हो जाती है. इस पर गहन शोध और अध्ययन हो चुके हैं. लेकिन भारत में ऐसा नहीं हुआ है.
अफगानिस्तान में अमेरिका द्वारा की गई बमबारी से कई पारिस्थितिक परिवर्तन भी हुए. तेज़ आवाज़ और बारूद की गंध के कारण कई साइबेरियाई पक्षियों ने उस रास्ते से भारत आना छोड़ दिया. दीपावली के अगले दिन कई जगहों पर पक्षियों के शव मिलते हैं लेकिन लोग इसे सामान्य रूप से लेते हैं.
सवाल यह है कि हमारी छोटी-छोटी खुशियां अगर मासूम परिंदों के लिए जानलेवा हो रही हैं तो क्या हमें ऐसे अवसरों पर पशु-पक्षियों के साथ सहानुभूति दिखाने की जरूरत नहीं है?
