BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Reading: यादों के आईने में हरिवंश राय बच्चन
Share
Font ResizerAa
BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
Font ResizerAa
  • Home
  • India
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Search
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Follow US
BeyondHeadlines > Latest News > यादों के आईने में हरिवंश राय बच्चन
Latest NewsLeadबियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी

यादों के आईने में हरिवंश राय बच्चन

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published November 27, 2012
Share
13 Min Read
SHARE

Rajeev Kumar Jha for BeyondHeadlines

“अगर तुम्हारे मन का हो जाये तो अच्छा और ना हो तो और भी अच्छा“

यह अनमोल सन्देश जब हालावाद के प्रणेता और उत्तर छायावादी कवि एवं रचनाकार हरिवंश राय बच्चन ने सन् 1835 में अपने पुत्र अमिताभ को दिया था तब अमिताभ भी उस समय इस सन्देश का सार नहीं समझ पाए थे. लेकिन कालान्तर में बच्चन के यह अमर वाक्य जीवन में सफलता और असफलता के द्वंद में जूझते हुए लोगों के लिए जहां पथ प्रदर्शक बना वहीँ अमिताभ बच्चन के जीवन का पंच लाइन भी. अपना परिचय देते हुए बच्चन ने बस एक पंक्ति में कहा था –“मिट्टी का तन ,मस्ती का मन ,क्षण भर जीवन मेरा परिचय ”

उनकी दूरदर्शिता , उनकी स्पष्टवादिता, उनकी यथार्थता , ज़मीन से जुड़े होने का उनका अहसास और अंततोगत्वा उनके पूरे जीवन का सार बस इस इस एक पंक्ति से हीं स्पष्ट हो जाता है.

हिन्दी कविता और हिन्दी की कई विधाओं को एक नया आयाम, नई ऊँचाई और एक अलग पहचान देने वाले कवि एवं साहित्यकार हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में हुआ था. बच्चन नाम इन्हें बाल्यकाल से ही मिला जिसका शाब्दिक अर्थ है बच्चा अथवा संतान. माँ सरस्वती देवी और पिता प्रताप नारायण श्रीवास्तव के सुपुत्र बच्चन बचपन से हीं मृदुल स्वभाव के थे.

बच्चन ने  कायस्थ पाठशालाओं में उर्दू की तालीम ली जो उस समय क़ानून की पढ़ाई के लिए आवश्यक माना जाता था. तदोपरांत उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. एवं कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में हीं पी.एच.डी. किया. मात्र 19 वर्ष की उम्र में सन 1926 में उनका विवाह श्यामा बच्चन से हुआ जिनकी उम्र मात्र 14 वर्ष थी. यह शादी उस समय के मौजूदा सामाजिक हालात को भी बयाँ करती है.

सन 1936 में यक्ष्मा रोग से श्यामा बच्चन की असमय मौत हो गई. श्यामा बच्चन के गुज़र जाने के बाद सन 1941 में बच्चन ने एक पंजाबन अदाकारा तेजी सूरी से विवाह किया. तेजी रंगमंच एवं गायन से जुडी महिला थी. तेजी बच्चन से दो पुत्र हुए -अजिताभ और अमिताभ. तेजी बच्चन ने हरिवंश राय के अनूदित कई नाटकों में अभिनय का काम भी किया.

बच्चन ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन का कार्य भी किया. वे अंग्रेजी के प्राध्यापक थे. यह बात सबको आज भी आश्चर्य में डालती है कि प्रध्यापक तो वह अंग्रेजी के थे लेकिन लिखा हिन्दी में. आसानी से यह कहा जा सकता है कि भाषा पर भाषाई पंडितों के हीं एकक्षत्र साम्राज्य के भ्रम को उन्होंने सफलता पूर्वक तोड़ा. कहना ना होगा कि वे ऐसे पहले भारतीय थे जिन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में पी.एच.डी. किया, लेकिन अपने पाँव हिन्दी क्षेत्र में न केवल जमाया वरण हिन्दी को उर्वर, सरस और लोक भाषा बनाने में अमूल्य योगदान भी दिया.

किसी भी बात पर बेबाक टिप्पणी करने वाले खुले दिल के बच्चन ने अपनी रचनाओं में कभी भी पांडित्य प्रदर्शन नहीं किया. यदि यह कहें कि अपनी हर रचना को शुरू करने से पहले हीं उन्होंने एक औसत दर्जे के हिन्दी पाठक को भी ध्यान में रखा तो अतिशयोक्ति न होगा. कभी न थकने वाले बच्चन रचना करने के दौरान अपना पूरा दिल निकाल कर रख देते थे.

हिन्दी ,अंग्रेजी और उर्दू पर उनकी ज़बरदस्त पकड़ के बारे में उनका साहित्य बोलता है. एक ओर जहां उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में यीट्स पर शोध किया , शेक्सपियर की रचनाओं का सटीक एवं कलात्मक अनुवाद किया तो दूसरी तरफ भारतीय भाषाओं में उमर खय्याम की रचनाओं का बेहतरीन अनुवाद किया और मधुशाला जैसी कालजयी रचना भी की.

बच्चन भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ भी रहे. फिर राज्य सभा के मनोनीत सदस्य बने. ऑल इंडिया रेडियो में भी इन्होंने अपना सहयोग दिया. राजभाषा समिति के अध्यक्ष पद पर रहते हुए सौराष्ट्र मंत्रालय को गृह मंत्रालय एवं परराष्ट्र मंत्रालय को विदेश मंत्रालय का नामकरण करने में उनकी प्रमुख भूमिका रही.

जहां तक बच्चन की रचनाओं का सवाल है- उन्होंने लगभग पांच दर्जन रचनाएँ हिन्दी की विभिन्न विधाओं में की. अपनी प्रत्येक रचना में उन्होंने अपनी निष्ठा और अपनी कर्मठता से अपनी अनुभूतियों को शब्द दिए पाठकों के लिए उसे सरल, सरस और हृदयग्राही बना दिया. पद्य विधा में उनकी रचनाएँ हैं- तेरा हार (1932), मधुशाला (1935), मधुकलश (1937), निशानिमंत्रण (1938), एकांतसंगीत (1939), आकुलअंतर  (1943), सतरंगिनी (1945), हलाहल (1946), बंगाल का काव्य (1946), खादी के फूल (1948), मिलन यामिनी (1950), प्रणय पत्रिका (1955), धार के इधर उधर (1957), आरती और अंगारे (1958), बुद्ध और नाचघर (1958), त्रिभंगिमा (1961), चार खेमे चौसठ खूंटे (1962), दो चट्टानें (1965), बहुत दिन बीते (1967), कटती प्रतिमाओं की आवाज़ (1968), उभरते प्रतिमानों के रूप (1969) और जल समेटा (1973).

इनके अतिरिक्त गद्य तथा अनुवाद में उन्होंने- बच्चन के साथ क्षण भर (1934), खैय्याम की मधुशाला  (1935), सोपान (1953), मैकबेथ (अनुवाद,1957), जनगीता (1958), ओथेलो (अनुवाद,1959), उमर खय्याम की रुबाइयां (अनुवाद,1959), कवियों में सौम्य संत पन्त (1960), आपके लोकप्रिय हिन्दी कवि-पन्त (1960), आधुनिक कवि-7 (1961), नेहरू; राजनीतिक जीवन चरित (1961), नये पुराने झरोखे (1962), अभिनव सोपान (1964), चौसठ रूसी कवितायें (1964), डब्ल्यू सी यीट्स एण्ड अकल्तिज्म (1965), मरकत द्वीप का स्वर (1965), नागर गीता (1966), बच्चन के लोकप्रिय गीत (1967), हेमलेट (अनुवाद,1969), भाषा अपनी भाव पराये (1970), पन्त के सौ पत्र (1970), प्रवास की डायरी (1971 ), किंग लियर (1972), टूटी-छूटी कड़ियाँ (1973), मेरी कविताई की आधी सदी (1981), सोअहे हन्स: (1981), आठवें दशक की प्रतिनिधि श्रेष्ठ कविताएं (1982) और मेरी श्रेष्ठ कविताएं (1984) जैसी रचनाएं कीं.

आत्मकथा/रचनावली विधा में भी उन्होंने अपनी सशक्त लेखनी सामान रूप से चलायी. इस क्रम में उन्होंने- क्या भूलूं क्या याद करूँ (1969), नीड का निर्माण फिर (1970), बसेरे से दूर (1977), दस द्वार से सोपान तक (1965), बच्चन रत्नावली नौ खण्डों में (1983) जैसी रचनाएं कर उन्होंने अपनी मौलिकता , सार्वभौमिकता, शब्द एवं साहित्य सामर्थ्यता तथा अपनी उद्घ्टता का मिशाल पेश किया.

बच्चन की कृति  ‘दो चट्टानें’ को 1968 में हिन्दी कविता का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला. इसी वर्ष उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार तथा अफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. बिडला फाउन्डेशन ने इनकी आत्मकथा के लिए सरस्वती सम्मान दिया था. सन 1976 में भारत सरकार ने साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उन्हें पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया था.18 जनवरी 2003 को इस पुरोधा ने अंतिम सांस ली.

आजीवन अनुशासन प्रिय बच्चन ने तेरा हार (1932) से लेकर मेरी श्रेष्ठ कवितायें (1984) तक के लेखन की सफर पूरे तन्मयता के साथ पूरी की, लेकिन जिस रचना ने उन्हें सफलता एवं प्रसिद्धी के शिखर पर पहुंचाया वह थी उनकी मधुशाला. मधुशाला के हालावाद में केवल मदिरा का बखान नहीं है, वरन यह पूरे जीवन की शाला है. इसके माध्यम से बच्चन ने जीवन के मूल सिद्धांतों को समझाया है. मदिरा को लक्ष्य कर उन्होंने जीवन के हरेक पहलू, आडम्बर, धार्मिक अथवा सामाजिक कट्टरता पर बेबाकी से एवं निर्भीक होकर लिखा है. मधुशाला जितना हिन्दी के विद्वानों के बीच लोकप्रिय हुई उतना हीं सामान्य पाठकों के बीच और इसकी वजह थी इसका सरल और सरस होना. मधुशाला की कुछ पंक्तियाँ–“दुत्कारा मस्जिद ने मुझको कहकर है पीने वाला,ठुकराया ठाकुर द्वारे ने देख हथेली पर प्याला,कहाँ ठिकाना मिलता जग में भला अभागे काफिर को,शरणस्थल बनकर न मुझे यदि अपना लेती मधुशाला”.

बच्चन ने मधुशाला के माध्यम से हिंदू-मुस्लिम, उंच-नीच, अमीर–गरीब के बीच की खाई को पाट दिया. यह मधुशाला और बच्चन दोनों की सफलता है. आजीवन ईश्वरभक्त आस्तिक बच्चन ने  यह कहकर कि- “बैर बढाते मंदिर मस्जिद, मेल कराती मधुशाला” अपने अंदर की मानवता को सार्वजनिक करने में कोई कोताही नहीं की. फारस के महान कवि और दार्शनिक उमर खैय्याम की रुबाइयां जो संसार में साहित्य की अमूल्य निधि हैं, का अनुवाद जिस कुशलता के साथ किया वह बच्चन के सामर्थ्यता की हीं बात थी. बच्चन के हरेक पुस्तक में गहरी दृष्टि, गंभीर चिंतन, यथार्थवाद एवं एक विशेष दृष्टिकोण दृष्टिगोचर होता है.

एक ओर जहां बच्चन ने “पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले” लिख कर लोगों को जीवन में किसी भी कार्य को करने के पहले जांच परख कर लेने की हिदायत देते हैं तो दूसरी ओर “हो जाए न पथ में रात कहीं, मंजिल भी तो है दूर नहीं, यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी जल्दी चलता है, दिन जल्दी-जल्दी ढलता है” कह कर एक कर्म योगी, एक मर्मयोगी, एक आकांक्षी की वास्तविक मनोदशा को उजागर भी करते हैं.

उन्मादों में अवासाद, शितलवाणी में आग एवं रोदन में राग का सामंजस्य साधते-साधते हीं वह बेखुदी, वह खुलापन, वह स्पष्टवादिता, वह बेबाकी, वह मस्ती, वह दीवानापन उनके व्यक्तित्व में में उतर आयी है कि- “दुनिया में हूँ, दुनिया का तलबगार नहीं हूँ. बाजार से गुजरा हूँ, खरीददार नहीं हूँ”  कहने का जज्बा पैदा हो गया है. बच्चन दुनिया को जानने से पहले खुद को जानने को तरजीह देते थे. आदमी समाज से कट नहीं सकता इस तथ्य के वे प्रबल हिमायती थे. अपने गम को सहन कर द्र्सरे की खुशी में खुश होना तो जैसे  उन्होंने आत्मसात कर लिया था. निशानिमंत्रण के एक गीत की कुछ पंक्तियाँ इसी बात की गवाह हैं- “मै जग जीवन का भार लिए फिरता हूँ, फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ”. बच्चन के समकालीन साहित्यकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, रामधारी सिंह दिनकर, रमेशचंद्र झा, भगवती चरण वर्मा, धर्मवीर भारती, शिवमंगलसिंह सुमन, सुमित्रा नंदन पन्त आदि सबों ने मुक्त कंठ से उनकी प्रशंसा की है.

पन्त ने लिखा है- “बच्चन की मदिरा चैतन्य की ज्वाला है जिसे पी कर म्रत्यु भी जीवित हो उठती है….”. शिवमंगल सिंह सुमन कहतें हैं- “ऐसी अभिव्यक्तियाँ नयी पीढ़ी के लिए पाथेय बन सकेंगी, इसी में इनकी सार्थकता भी है”. हजारी प्रसाद द्विवेदी कहतें हैं– “बच्चन की रचनाओं में समूचा काल और क्षेत्र भी अधिक गहरे रंगों में उभरा है. पुष्पा भारती कहती हैं– बच्चन जब गद्य लिखते थे तब कविता संग-संग चलती थी… उनका गद्य भी अद्भुत है”.

अफ़सोस कि बात है कि उनकी युग बोध सम्बन्धी कविताएं जो बाद में लिखीं गईं उनका संपूर्ण मूल्यांकन अभी तक नहीं हो पाया है. निःसंदेह कवि के रूप में बच्चन को सर्वाधिक लोकप्रियता एवं सफलता मिली, किन्तु सामान रूप से उन्होंने कहानी नाटक, डायरी तथा बेहतरीन आत्मकथा भी लिखी जो ना केवल अपने आप में पूर्ण हैं वरन अपनी प्रांजल शैली के कारण निरंतर पठनीय बनी हुई है.

कभी कभी ऐसा लगता है कि बच्चन की कृतियां यदि विश्व के अन्य देशों तक जातीं तो वहाँ के लोग भी बच्चन के साहित्यिक समुद्र और काव्यगत शीतल झील में गोते लगाते और उनकी यह मस्ती नोबेल पुरस्कार वालों तक पहुँच जाती.  फिर सोचता हूँ जो सम्मान, जो आदर, जो प्यार बच्चन को हिन्दी पाठकों ने दिया, जिस प्रकार से  बच्चन की रचनाओं को सर आँखों से लगाया उसके आगे नोबेल पुरस्कार कहीं नहीं टिकती.

(लेखक पत्रकारिता में शोधरत हैं एवं उनसे cinerajeev@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.)

TAGGED:Harivansh Rai Bacchan
Share This Article
Facebook Copy Link Print
What do you think?
Love0
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0
“Gen Z Muslims, Rise Up! Save Waqf from Exploitation & Mismanagement”
India Waqf Facts Young Indian
Waqf at Risk: Why the Better-Off Must Step Up to Stop the Loot of an Invaluable and Sacred Legacy
India Waqf Facts
“PM Modi Pursuing Economic Genocide of Indian Muslims with Waqf (Amendment) Act”
India Waqf Facts
Waqf Under Siege: “Our Leaders Failed Us—Now It’s Time for the Youth to Rise”
India Waqf Facts

You Might Also Like

ExclusiveIndiaLeadYoung Indian

Weaponizing Animal Welfare: How Eid al-Adha Becomes a Battleground for Hate, Hypocrisy, and Hindutva Politics in India

July 4, 2025
Latest News

Urdu newspapers led Bihar’s separation campaign, while Hindi newspapers opposed it

May 9, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

OLX Seller Makes Communal Remarks on Buyer’s Religion, Shows Hatred Towards Muslims; Police Complaint Filed

May 13, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

Shiv Bhakts Make Mahashivratri Night of Horror for Muslims Across India!

March 4, 2025
Copyright © 2025
  • Campaign
  • Entertainment
  • Events
  • Literature
  • Mango Man
  • Privacy Policy
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?