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आख़िर यह मुल्क कैसे चलेगा?

BeyondHeadlines News Desk

“हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए…. सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए…” दुष्यंत कुमार की इन्हीं कविता की पंक्तियों के साथ भारत में आतंकवाद और देशद्रोह के नाम पर गिरफ्तार किए जा रहे बेगुनाहों की रिहाई के लिए शुरु की गई राजनीतिक और सामाजिक पहल ‘पीपुल्स कैंपेन अगेंस्ट पॉलिटिक्स ऑफ टेरर’ का ‘द्वितीय राष्ट्रीय कन्वेंशन’ आगाज़ रविवार को दिल्ली के मालवंकर हॉल में हुआ.

‘पीपुल्स कैंपेन अगेंस्ट पॉलिटिक्स ऑफ टेरर’ के मुहिम के मक़सद को लोगों के सामने रखते हुए सीपीआई के अतुल कुमार अंजान ने बताया कि “हम कसाब या अफ़ज़ल गुरू की हिमायत नहीं कर रहे हैं, बल्कि हम बात कर रहे हैं आमिर जैसे बेगुनाहों की जो 14 साल तक अपनी जेलों में अपनी बेगुनाही का सज़ा काटता है. आतंकवाद से निपटने के नाम पर राज्य की संपत्तियों का खूब दुरूपयोग हो रहा है. बेगुनाहों की गिरफ्तारी का यह सवाल सिर्फ मुसलमानों का नहीं, बल्कि यह देश का सवाल है. हमारी यह मुहिम देश में होने वाले हर ज़ुल्म के खिलाफ तब तक चलती रहेगी जब तक कि इंसाफ नहीं मिल जाता.”

राज्यसभा सांसद मो. अदीब बताते हैं कि “जिस मुल्क में अदालतें 10-12 सालों के बाद अपना फैसला सुनाए, पुलिस बेगुनाहों पर ज़ुल्म करे और सरकार गुंगी व बहरी बने तमाशा देखे तो फिर यह मुल्क कैसे चलेगा? आखिर इस मुल्क में मुसलमानों को इंसाफ कौन देगा?” उन्होंने देश के समस्त सेकूलर सियासी व समाजिक पार्टियों से अपील की कि वो इस मामले में साथ खड़ी हों ताकि मुल्क के एक तबके पर जो सरकारी ज़ुल्म हो रहा है उस पर रोक लग सके.

कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर अपनी ही पार्टी पर गुस्सा ज़ाहिर करते बोलते है कि “ अगर हमें इस मुल्क को गांधीवादी मुल्क बनाना है तो सरकार को यह दिखाना होगा कि वो सबके लिए बराबर है. हर हम मुल्क में होने वाले प्रशासनिक ज़ुल्म को नहीं रोक सकते तो हमारा सिंहासन पर बैठने का कोई अधिकार नहीं है.”

राजद के लालू प्रसाद यादव कहते हैं कि “मुस्लिम युवकों के लिए हालात दिन प्रतिदिन खराब होते जा रहे हैं. देश की खुफिया एजेंसियां उत्तर प्रदेश के बाद बिहार के मुस्लिम युवाओं को टारगेट कर रही हैं. बिहार सीतामढ़ी, मधुबनी और दरभंगा से कई बेगुनाहों की गिरफ्तारियां की गई हैं और नीतीश सरकार खामोश बैठी है. अब हमें इस ज़ुल्म के खिलाफ सड़कों पर उतरना होगा, गांधी मैदान व रामलीला मैदान में आंदोलन करना होगा और हम हमेशा आपके साथ हैं.”

लोजपा के राम विलास पासवान कहते हैं कि “ये कितना अजीब है भाजपा के बेईमान लोग पाकिस्तान से आकर देशभक्ति की बात करते हैं. जब इस देश में सीमी पर पाबंदी लगाई गई है तो फिर आरएसएस व उसके दूसरे संस्थाओं पर क्यों नहीं? आरएसएस ट्रांसमीटर है और बाकी सब इसके चैनल हैं. आरएसएस पर पाबंदी लगना ही चाहिए. ये गांधी के हत्यारे हैं. हमें एक मिशन के तौर पर इस मुहिम को आगे ले जाना होगा.”

सीपीएम के एबी बर्धन मानते हैं कि “इंसाफ की यह लड़ाई आसान नहीं है, इसके लिए लगातार संघर्ष की ज़रूरत है. सड़क पर लड़ाई के साथ-साथ कानूनी लड़ाई भी ज़रूरी है और इसके लिए हमारी पार्टी बेगुनाहों के साथ है.”

सी.के. ज़ाफर शरीफ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में सू-मोटो लेना चाहिए. वहीं प्रकाश करात ने आतंकवाद के खिलाफ जंग के नाम पर मुसलमानों की गिरफ्तारी को ‘पनौती’ क़रार दिया.

इस प्रकार इस सम्मेलन में अजीत साही, मनीषा सेठी, डी.राजा, सुधाकर रेड्डी, जस्टिस ए.एम. अहमदी, वज़ाहत हबीबुल्लाह, सैय्यद अज़ीज़ पाशा, कूंवर दानिश अली, महमूद पराचा, मो. आमिर, अमीक़ जामई, अब्दुल हफीज़ गांधी, आदिल हसन आज़ाद, अहमद सईद मलीहाबादी और मौलाना सलमान नदवी इत्यादि ने अपनी बातों को लोगों के सामने रखा.

स्पष्ट रहे कि पिछले कुछ सालों में भारत में हजारों नागरिकों को आतंकवाद और देशद्रोह के झूठे मामलों में फंसाने में सरकार और प्रशासन की भूमिका के मामले सामने आए हैं. न्यायपालिका में बेगुनाह मुसलमान युवाओं को फर्जी मामलों में फंसाने के सैंकड़ों मामले पहुंचे हैं और पुलिस का चेहरा खुलकर सामने आ गया है.

यह बात शक से परे साबित हो चुकी है कि भारत में पुलिस और जांच एजेंसियां पिछले कई सालों से नागरिकों को डराकर उन पर अत्याचार करने की एक योजनागत मुहिम चला रही हैं. फर्जी मामलों में फंसाकर लोगों को उनके परिवार, ज़मीन, समुदाय और समाज से दूर किया जा रहा है. इसका एक उद्देश्य एक खास समुदाय, जिस पर आतंक से जुड़े होने का झूठा ठप्पा लगाया गया है, पर आतंकवाद के ठप्पे को चिपकाए रखना भी है.

न्यायपालिका द्वारा पुलिस को ऐसे प्रकरणों में ढील देने ने पीड़ित परिवारों की पीड़ा को और भी बढ़ा दिया है. पुलिस के इस कुकृत्य का न्यायपालिका भी मौन समर्थन कर रही है जिस कारण कई निर्दोषों को सालों तक जेल की यातना सहनी पड़ रही है. परिवार के परिवार फर्जी मामलों के कारण बर्बाद हो रहे हैं. वक्त की ज़रूरत यह है कि पुलिस और सरकार के जघन्य कृत्यों पर न सिर्फ नज़र रखी जाए बल्कि उन्हें गैर-कानूनी रूप से फर्जी मामलों में नागरिकों के फंसाने के लिए जिम्मेदार भी ठहराया जाए.

‘पीपुल्स कैंपेन अगेंस्ट पॉलिटिक्स ऑफ टेरर’ ने इस अवसर पर सरकार के समक्ष अपनी एक मांग-पत्र भी जारी किया. ये मांगे इस प्रकार हैं:-

  2001 के बाद से आतंकवाद और अलगाववाद के तमाम मामलों की व्यापक जांच सुप्रीम कोर्ट द्वारा करवाई जाए. वो मामलें भी शामिल किए जाएं जिनमें फैसला आ चुका है.

  केंद्र सरकार और राज्य सरकारें यह सुनिश्चित करें की आतंकवादी गतिविधियों के संबंध में गिरफ्तार होने वाले लोगों के मामले में स्पीड ट्रायल हो ताकि बेगुनाह जेलों में न सड़ सकें.

  केंद्र सरकार आतंकवाद, अलगाववाद और देशद्रोह के तमाम मामलों को एक साथ चलवाने के विकल्प पर विचार करे ताकि आरोपियों पर एक साथ मुकदमा चलाकर समय बचाया जा सके.

  जेलों से झूठे सैंकड़ों बेगुनाहों को दोबारा सम्मानित जीवन शुरू करने के लिए केंद्र सरकार तुरंत आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाए.

  सरकारें फर्जी मामलों के पीड़ितों के पुनर्वास के लिए उन्हें रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाए ताकि वो और उनका परिवार दोबारा सम्मानित जीवन जी सके.

  फर्जी मामले दर्ज करने वाले उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ जिन्हें कोर्ट ने जिम्मेदार माना है सरकार तुरंत व्यापक जांच शुरू करवाए ताकि बेगुनाहों के जीवन से खेलने वालों को सजा मिल सके.

  सरकार ऐसे अधिकारियों के खिलाफ न्यायिक जांच करवाए जिनपर बेगुनाहों को फंसाने के आरोप हों. आरोप सिद्ध होने पर उन्हें सजा दी जाए और नौकरी से निकालकर पेंशन, प्रोमोशन रोकी जाए और अवॉर्ड निरस्त किए जाए.

  राजनीतिक पार्टियों के नेता और संसद के सदस्य बेगुनाहों को जेल से निकलवानों और पीड़ित परिवारों को इंसाफ दिलवाने के लिए सामने आए ताकि देश के बाकी नागरिकों के मानवाधिकारों का हनन न हो सके.

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