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मुझे फांसी दे दो… मैंने गुनाह किया है!

Nadeem Ahmad for BeyondHeadlines

“मुझे फांसी दे दो… मैंने गुनाह किया है!” ये कोई फ़िल्मी डायलॉग नहीं है बल्कि एक 20 साल के मुजरिम की ज़बानी है, जिसने दिल्ली के कोर्ट में जज के सामने कही है. ये उन आरोपियों में से एक है जिसने 23 साल की मासूम लड़की को बस में अगवा करके उसकी ज़िन्दगी को हमेशा के लिए बर्बाद और पूरे समाज को शर्मसार कर दिया है. दिल्ली के दामन में पहली बार ऐसा दाग नहीं लगा है.

हाँ! एक चीज़ ज़रूर देखने को मिली है कि पूरे भारत में इसके खिलाफ आवाजें उठ रही है. मीडिया में, सड़कों पर, लोकसभा में, राज्यसभा में और हर उन जगहों पर जहाँ इंसान बसते हैं.

ये कोई पहला मौका नहीं था जब जालिमों ने दरिंदगी दिखाते हुए इंसानियत को शर्मसार किया है. दिन- रात भागती-दौड़ती देश की राजधानी दिल्ली में फिर एक ऐसा हादसा हुआ जिससे सभी की आँखें नम हो गई.

दो दोस्त, एक लड़का और एक लड़की सिनेमा देखकर अपने मंजिल की तरफ पहुँचने की कोशिश की, मगर उन्हें ये नहीं मालूम था कि आज की रात दोनों के लिए क़यामत से कम नहीं है.

उन्हें नहीं पता था की आज कि रात एक ऐसी काली रात है जो उसके दामन को हमेशा के लिए दागदार बना देगी. अगर उन्हें इस क़यामत का पता होता तो शायेद वो अपने घर से बाहर क़दम नहीं रखते. मगर किस्मत और वक़्त ने उन्हें ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया कि वो मासूम अपनी ज़िन्दगी की आखरी साँसे गिन रही है और शायद ही कभी इस खौफ़नाक काली रात से बाहर निकल सकेगी.

यहाँ एक बात समझने की है कि आज के समय में आप किसी भी जगह पर देखें तो लड़कियों पर हर लोगों की नज़र भूके भेड़ियों की तरह होती है और वो चाहते हैं कि कब किसी को अपना शिकार बना लें.

आमतौर पर ऐसा देखने को मिला है की लोग शराब पीकर ही ऐसे वारदात को अंजाम देते हैं. मगर यही हमारी दिल्ली है जहाँ हर जगह पर आपको देखने को मिलेगा. “सरकारी विदेशी शराब की दुकान”. क्या शराब पीना लोगों के लिए पानी पीने के बराबर है? क्या शराब के बिना लोग जिंदा नहीं रह सकते?

हमारी दिल्ली की सरकार प्लास्टिक पर रोक लगाती है, सिगरेट पर रोक लगाती है, गुटखा पर पाबंदी लगाती है तो भला शराब पर क्यूँ नहीं रोक लगा सकती है…?

दिल्ली की सड़कों पर ब्लू लाइन बसों को बंद कर दिया गया है, मगर आज भी ऐसी बसें यहाँ चलती है जिसे कोई भी रोकने वाला नहीं है, क्यूँ?  क्यूंकि शायेद ऐसे बसों के मालिक नेता हैं या फिर कोई ताकतवर इंसान है जिससे दिल्ली की सरकार उलझना नहीं चाहती है.

ब्लू लाइन बसों को सफ़ेद रंग से पोतकर वाइट लाइन के नाम पर चलाया जाता है. क्या सरकार को ये बात समझ में नहीं आती कि आखिर ऐसी बसें है तो प्राइवेट ही?

चलती बस में गैंग रेप के बाद दिल्ली की मुख्मंत्री शीला दिक्षित का बयान आया कि परिवहन विभाग की तरफ से उस बस का लाइसेंस रद्द कर दिया गया है. मैं पूछना चाहता हूँ शीला दिक्षित से की क्या उस यादव बस का मालिक फिर से कोई लाइसेंस नहीं बनवा सकता है? वो बिलकुल बनवा सकता है और आप ही की सरकार उन्हें लाइसेंस बनवाकर देगी.

यहाँ एक बात और सामने आ रही है और दिल्ली की बहुत सारी महिलाओं ने मीडिया के हवाले से ये बात कही है की दिल्ली की सड़कों पर, मेट्रो में, बसों में लोग लड़कियों को छेड़ते हैं मगर कोई मदद करने को आगे नहीं आता.

मैं इन तमाम बातों से इत्तेफाक रखता हूँ और मैंने कई बार ऐसा देखा भी है. मुझे इस बात की तकलीफ भी है के हमारे ही समाज के कुछ शरारती तत्व महिलाओं की इज्ज़त नहीं करते, उन पर बुरी नज़र रखते हैं. उनको अपना शिकार बनाना चाहते है जो किसी अज़ीब से कम नहीं है. ये कितने शर्म की बात है  कि हमारे सामने किसी की इज्ज़त लुटती रहे और हम सिर्फ तमाशा देखते रहें.

हमें इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि एक औरत किसी की माँ हो सकती है, किसी की बेटी हो सकती है, किसी की बीवी हो सकती है, किसी की बहन हो सकती है और अगर ये भी ना हुई तो वो एक तवाइफ़ हो सकती है जो हमारे ही समाज का एक हिस्सा है. उन्हें भी जीने का उतना ही हक है जितना हमारी माँ- बहनों को है फिर भला हम कैसे किसी की ज़िन्दगी को बर्बाद कर दे जिस पर हमारा कोई हक़ नहीं है ? कैसे किसी की इज्ज़त को दागदार कर दें?

मुनिरका गैंग रेप में जालिमो ने एक कमेंट किया था कि “लड़के के साथ घूम के आ रही है, मज़े लेकर आ रही है”. अगर आप इन लाइनों पर ध्यान दें तो आपको अंदाजा होगा की ये दरिन्दे पहले से ही भूके थे जो सिर्फ किसी शिकार की तलाश में ही दिल्ली  की सड़कों पर भटक रहे थे और उन्हें एक शिकार मिल गया जिसको जालिमों ने आज मौत के अँधेरे में धकेल दिया है जहाँ से शायद वो कभी नहीं उभर सकती है.

हम दुआ करते हैं कि ऊपर वाला किसी को ऐसे दिन न दिखाए. जिससे सारी ज़िन्दगी वो सदमे में रहे. मुनिरका गैंग रेप मामले में भले ही आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है उन्हें सजा भी मिल जायेगी मगर क्या इसके बाद ऐसे हादसे नहीं होंगे?

इस बात का जवाब न तो हम दे सकते हैं और न ही हमारी सरकार. ज़रुरत है सर्फ हमें अपने  सोच में बदलाव लाने की. हमें अपनी सोच बदलनी होगी. हमें जागरूक होना पड़ेगा तभी शायद हम इस नर्क से बाहर निकल सकेंगे.

(लेखक दैनिक विराट भारत में क्राइम रिपोर्टर हैं) 

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