BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Reading: सहस्त्राब्दियों पुरानी है नारी तिरस्कार की परंपरा
Share
Font ResizerAa
BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
Font ResizerAa
  • Home
  • India
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Search
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Follow US
BeyondHeadlines > Latest News > सहस्त्राब्दियों पुरानी है नारी तिरस्कार की परंपरा
Latest NewsLeadबियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी

सहस्त्राब्दियों पुरानी है नारी तिरस्कार की परंपरा

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published January 3, 2013
Share
12 Min Read
SHARE

Nirmal Rani for BeyondHeadlines

दिल्ली में 16 दिसंबर की सरेशाम सामूहिक बलात्कार एवं मारपीट की एक हृदयविदारक घटना के बाद महिलाओं के संरक्षण, उनके मान-सम्मान तथा उनकी रक्षा को लेकर विश्वस्तर पर एक व्यापक बहस छिड़ गई है. हालांकि नारी उत्पीडऩ की घटनाएं भारत में संभवतः आदिकाल से ही होती आ रही हैं. परंतु इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तथा सूचना व प्रौद्योगिकी की तकनीक के आधुनिक होने के बाद अब इन घटनाओं को यथाशीघ्र देश-विदेश के कोने-कोने में तुरंत पहुंचा दिया जाता है. जिस पर समाज की ओर से तत्काल प्रतिक्रियाएं आनी भी शुरु हो जाती हैं.

और जब ऐसे हादसे खुदा न वास्ता देश की राजधानी दिल्ली में घटित होने लगें फिर तो मीडिया के लिए और भी सोने में सुहागा हो जाता है. यानी अपने मुख्यालय पर बैठकर ही घटना का पूरा विवरण, लोगों का गुस्सा, धरना-प्रदर्शन, सरकार पर पडऩे वाले दबाव, पुलिसिया ज़ुल्म, सरकार द्वारा उठाए जा रहे क़दम आदि सभी अपडेट्स चंद किलोमीटर के फासले में ही एकत्रित हो जाते हैं.

इसमें कोई शक नहीं कि दिल्ली में पिछले दिनों हुई घटना पूरे देश को हिलाकर रख देने वाली घटना थी. निश्चित रूप से दिल्ली के लोगों को इस घटना के विरोध में इसी प्रकार एकजुट होना चाहिए था और वे एकजुट हुए भी. और निरूसंदेह दिल्ली तथा देश के लोगों की एकजुटता का ही परिणाम है कि इस मामले को फास्ट ट्रैक कोर्ट पर लाया गया है तथा सरकार, कानूनविदों तथा शासनिक व प्रशासनिक स्तर पर ऐसे जघन्य अपराधों में सख्त से सख्त सज़ा का प्रावधान किए जाने की चर्चा छिड़ गई है. इसी एकजुटता का परिणाम है कि ऐसे अपराधों के दोषियों को यथाशीघ्र संभव सज़ा सुनाए जाने की उम्मीद की जा रही है.

परंतु एक टीकाकार की इस टिप्पणी से क्या इंकार किया जा सकता है कि जब दिल्ली में बलात्कार की घटना होती है तो पूरा देश दिल्ली की घटना के विरोध में दिल्ली के प्रदर्शनकारियों के साथ हो जाता है. परंतु जब देश के अन्य स्थानों पर ऐसी वारदातें होती हैं तो दिल्ली के लोगों के कानों में जूं तक नहीं रेंगती.

दिल्ली की घटना के बाद अरुंधती राय ने दिल को झकझोर कर रख देने वाली आसाम की उस दर्दनाक घटना की याद दिलायी कि किस प्रकार भारतीय सुरक्षा कर्मियों द्वारा उत्तर पूर्व की महिला के साथ बलात्कार किया गया. किस प्रकार एक महिला के गुप्तांग में पत्थर भर दिए गए. इस घटना से क्षुब्ध महिलाओं के आक्रोश का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वहां दर्जनों महिलाओं ने अर्धनग्न अवस्था में बलात्कार की घटना  से दुरूखी होकर स्थानीय रक्षा मुख्यालय के समक्ष प्रदर्शन किया तथा अपने नारों के द्वारा उन्होंने बलात्कारियों व उन्हें संरक्षण देने वालों का आह्वान किया कि वे आएं तथा उनके साथ बलात्कार करें.

निःसंदेह दिल्ली में बड़े पैमाने पर सभ्य समाज के लोग सर्दी की ठिठुरती रातों में एकत्रित हुए यहां तक कि तमाम लोगों ने इन विरोध प्रदर्शनों की खातिर अपनी नववर्ष की खुशियां भी न्यौछावर कर डालीं. परंतु उत्तर पूर्व में अर्धनग्र महिलाओं द्वारा किया गया वह प्रदर्शन, महिलाओं की तड़प, उनकी आजिज़ी तथा उनकी व्याकुलता का एक चरमोत्कर्ष था. जिसका मुकाबला दिल्ली के प्रदर्शन से नहीं किया जा सकता. परंतु उस घटना के साथ न तो देश खड़ा हुआ न ही दिल्ली और न ही मीडिया…

बहरहाल, दिल्ली गैंगरेप की घटना के बाद जहां कानून, अदालत, सज़ा, फास्ट ट्रैक कोर्ट जैसी बातों पर तेज़ी से बहस हो रही है. वहीं भारतीय समाज में महिला उत्पीडऩ विरोधी मानसिकता पर अंकुश लगाए जाने की बात भी की जा रही है. कुछ लोग यह कहते सुनाई दे रहे हैं कि इसका समाधान पारिवारिक शिक्षा से संभव है. कुछ का मत है कि स्कूल व कॉलेज में इस विषय पर शिक्षित करने की ज़रूरत है. कुछ लोग पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता बदलने की बात कर रहे हैं. परंतु नारी उत्पीडऩ तथा नारी तिरस्कार जैसी विकराल समस्या की जड़ों में झांकने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है.

इसका मुख्य कारण यह है कि नारी उत्पीडऩ, नारी तिरस्कार तथा नारी को निचले व सौतेले दर्जे का समझने की जड़ें दरअसल हमारे प्राचीन धर्मशास्त्रों, हमारे प्राचीनतम रीति-रिवाजों, संस्कारों तथा धार्मिक ग्रंथों व धर्म संबंधी कथाओं में पाई जाती हैं. गोया हम कह सकते हैं कि नारी को नीचा दिखाने की परंपरा भारतीय समाज को धर्मशास्त्रों के माध्यम से विरासत में मिली हुई है.

और ज़ाहिर है कि सहस्त्राब्दियों से हम जिन धर्मशास्त्रों, धार्मिक परंपराओं व रीति-रिवाजों का अनुसरण करते आ रहे हैं उनसे मुक्ति पाना इतना आसान नहीं है. नारी को छोटा व नीच समझने की मानसिकता भारतीय समाज की रग-रग में समा चुकी है. और इसकी ज़िम्मेदार और कोई नहीं बल्कि हमारी धार्मिक परंपराएं, मान्याताएं व धार्मिक ग्रंथ मात्र ही हैं.

उदाहरण के तौर पर पूरा भारतीय समाज गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित राम चरित मानस का न केवल आदर व सम्मान करता है तथा इसका प्रतिदिन तथा विभिन्न विशेष अवसरों पर पाठ करता है बल्कि यह ग्रंथ लगभग प्रत्येक घर में उपलब्ध भी रहता है. क्या मर्द क्या औरत तो क्या बच्चे सभी बड़ी श्रद्धा, उत्साह तथा समर्पण के  साथ रामायण का पाठ करते देखे जा सकते हैं. और इसी रामायण में वह बहुचर्चित श्लोक दर्ज है जिसमें गोस्वामी तुलसीदास जी ने फरमाया है कि- ढोल गंवार शूद्र पशु नारी-सकल ताडऩा के अधिकारी…

अब ज़रा गौर कीजिए कि सदियों से इस श्लोक को वाचने का काम केवल पुरुष ही नहीं, बल्कि महिलाओं द्वारा भी होता आ रहा है. यह श्लोक महिलाओं के साथ-साथ शूद्रों व ग्रामवासियों के लिए भी अपमानजनक है. और निश्विचत रूप से आज भारतीय समाज में जिस प्रकार महिलाओं का तिरस्कार हो रहा है उसी प्रकार शूद्र समाज भी तिरस्कृत होता आ रहा है.

क्या हमारे समाज में महिलाओं व शुद्रों का कोई ऐसा हमदर्द है जो इन धर्मग्रंथों में वर्णित ऐसे श्लोकों के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद कर सके? या ऐसे श्लोकों को रामचरित मानस से हटाए जाने की बात कर सके? अब जबकि बाल्यकाल से ही हम ऐसे श्लोकों का सम्मान करते, उन्हें रटते व दोहराते आएंगे, केवल पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं भी स्वयं इसे रटती रहेंगी तो ऐसी शिक्षा के परिणाम भी ऐसे ही निकलेंगे जोकि हमें दिखाई दे रहे हैं. यानी जहां पुरुष महिलाओं को उत्पीड़ित करने व उसपर ज़ुल्म करना अपना अधिकार समझता है वहीं आमतौर पर महिलाएं भी इस उत्पीडऩ व तिरस्कार को या अपने साथ होने वाले सौतेले व्यवहार को अपना भाग्य मान बैठती हैं.

हमारे शास्त्र ही हमें बताते हैं कि किस प्रकार पुरुषों की भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण किया गया. किस प्रकार जुए में पांडवों ने एक महिला को दांव पर लगा दिया. गोया महिला को एक वस्तु या संपत्ति होने का संदेश दिया गया. किस प्रकार मां के वचन की पालना के नाम पर द्रौपदी को पांच भाईयों में बांटने का काम पांडवों द्वारा किया गया. इस घटना में तो विशेष रूप से कुंती के रूप में एक महिला ही द्रौपदी जैसी महिला का ही अपमान करते दिखाई देती है. जबकि द्रौपदी की हैसियत एक इंसान के बजाए वस्तु या धन-संपत्ति जैसी प्रतीत होती है. कभी लक्ष्मण के हाथों सुर्पणखा की नाक कटती दिखाई देती है तो कभी इसी घटना का बदला लेते हुए रावण भी अपना निशाना सीता माता पर साधता है तथा उनका अपहरण कर ले जाता है.

देवी-देवताओं व हमारे शास्त्रों से जुड़ी ऐसी और भी सैकड़ों कथाएं हैं जिन्हें आज हम निष्पक्ष व पारदर्शी नज़रों से देखें तो यह सभी महिलाओं के लिए घोर लज्जा व तिरस्कार से भरपूर घटनाएं नज़र आती हैं. परंतु चूंकि मामला धर्मग्रंथों व धर्मशास्त्रों से जुड़ा होता है लिहाज़ा पोंगा पंडितों के भयवश कोई भी इन पर उंगली उठाने का साहस नहीं करता. जबकि आज के दौर में महिलाओं के हो रहे अपमान, तिरस्कार व उत्पीडऩ की घटनाओं के पीछे वास्तविक रहस्य यही हैं और इन्हीं घटनाओं ने भारत में विशेषकर पुरुष प्रधान समाज की स्थापना कर डाली है. हमारी यही प्राचीन परंपराएं हमें इस मोड़ तक ले आई थीं कि भारत में एक समाज विशेष द्वारा कन्या के पैदा होने पर उसकी हत्या कर दी जाती थी.

हमारे ही भारतीय समाज में नारी को उसके पति की चिता पर सती होने के लिए जीवित अवस्था में चिता के हवाले कर दिया जाता था. भला हो महान समाजसुधारक राजाराम मोहन राय का जिन्होंने देश को इस भयानक कुरीति से मुक्ति दिलाई. परंतु अब भी कभी-कभार महिलाओं के सती होने की ख़बर दुर्भाग्यवश आ ही जाती है. हमारे समाज में एक ओर तो कन्या भ्रुण हत्या की खबरें आती हैं तो दूसरी ओर यही समाज नवरात्रों में कन्यापूजन का ढोंग करता हुआ भी दिखाई देता है.

कहने का तात्पर्य यह कि पुरुषों को समाज में प्रधानता दिलवाने का ज़िम्मा हमारे धर्मों, धर्मशास्त्रों तथा धार्मिक शिक्षाओं में ही निहित है. अन्यथा आज भी तमाम मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश पर रोक न लगी होती. अन्यथा भारतीय महिलाओं को कब और कहां कैसे कपड़े पहनने हैं और कैसे नहीं इसे निर्धारित करने का अधिकार पुरुषों को न होता. लिहाज़ा समाज में परिवर्तन लाने हेतु युवाओं व पुरुषों की मानसिकता बदलने के अस्थायी एवं सतही उपाय ढूंढने के बजाए व्यवस्था परिवर्तन हेतु इस समस्या की मूल जड़ में झांकना तथा उसमें सुधार करना ज़रूरी है. गोया नारी तिरस्कार की सदियों पुरानी परंपरा को छोड़कर अपनी सोच में परिवर्तन लाने का प्रयास करना.

TAGGED:Crime against Women
Share This Article
Facebook Copy Link Print
What do you think?
Love0
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0
“Gen Z Muslims, Rise Up! Save Waqf from Exploitation & Mismanagement”
India Waqf Facts Young Indian
Waqf at Risk: Why the Better-Off Must Step Up to Stop the Loot of an Invaluable and Sacred Legacy
India Waqf Facts
“PM Modi Pursuing Economic Genocide of Indian Muslims with Waqf (Amendment) Act”
India Waqf Facts
Waqf Under Siege: “Our Leaders Failed Us—Now It’s Time for the Youth to Rise”
India Waqf Facts

You Might Also Like

Latest News

Urdu newspapers led Bihar’s separation campaign, while Hindi newspapers opposed it

May 9, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

OLX Seller Makes Communal Remarks on Buyer’s Religion, Shows Hatred Towards Muslims; Police Complaint Filed

May 13, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

Shiv Bhakts Make Mahashivratri Night of Horror for Muslims Across India!

March 4, 2025
Edit/Op-EdHistoryIndiaLeadYoung Indian

Maha Kumbh: From Nehru and Kripalani’s Views to Modi’s Ritual

February 7, 2025
Copyright © 2025
  • Campaign
  • Entertainment
  • Events
  • Literature
  • Mango Man
  • Privacy Policy
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?