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Reading: कोसी पर ‘चिंतन कांफ्रेंस’ 5 फरवरी को
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कोसी पर ‘चिंतन कांफ्रेंस’ 5 फरवरी को

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published January 28, 2013 3 Views
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5 Min Read
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BeyondHeadlines News Desk

विषय: वर्तमान में कोसी: समाज और फिल्म के आईने में

स्थान: इंडोर स्टेडियम, खगड़िया

दिनांक: 5 फरवरी,2013   समय: 10 बजे

आयोजक: बुनियाद, बेहतर कल की 

मीडिया पार्टनर: BeyondHeadlines

अख़बार हर साल कोसी की तबाही की कहानी लिखते हैं. हर साल सरकारी महकमों में इस पर चर्चा होती है. हर साल दुनिया बिहार की बेबसी की तस्वीर देखती है. और हर गुज़रते साल के साथ दुनिया आगे बढ़ जाती है और कोसी किनारे बसने वाले और पीछे रह जाते हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक  2008 में कोसी तटबंध टूटने से पांच जिलों के 35 प्रखंडों में 1067 गांव में बाढ़ के पानी में डूब गए. 34 लाख लोग इसकी चपेट में आए. यह एक भीषण विपदा थी.  इस आपदा में आधिकारिक रिकार्डों के मुताबिक 540 लोगों ने अपनी जान गंवाई. सिर्फ इंसान ही नहीं, बल्कि 32 लाख बेजुबान जानवर भी इस बाढ़ की भेंट चढ़ गए. इस विपदा में 37 सौ लोग लापता हुए. दुनिया में कहीं किसी प्राकृतिक आपदा से यदि 37 सौ लोग भी गायब हो जाते हैं तो हाहाकार मच जाता है. यह हमारी सरकार की उदासीनता ही है कि 37 सौ लोगों के लापता होने के बाद भी कोई खास प्रयास नहीं किए गए.

 इस विपदा को गुज़रे 5 साल हो गए हैं. इन पांच सालों में दुनिया कितनी भी बदली हो, लेकिन कोसी किनारे बसे गांव वहीं के वहीं हैं, या यह कहना भी गलत नहीं होगा कि वक्त के पहिये में वह और पीछे चले गए हैं. बाढ़ को प्राकृतिक आपदा कहकर कोसी को कोसा जा सकता है. लेकिन यह हमारी सरकार और प्रशासन की अपने लोगों जान-माल की रक्षा करने की जिम्मेदारी को कम नहीं कर सकता है. यह सरकार हमारे प्रति जिम्मेदार है और अब वक्त आ गया है जब हम इससे कोसी के नाम पर लूटे गए एक-एक रुपये का हिसाब मांगेंगे और उस बर्बादी के लिए जिम्मेदार लोगों को उचित सजा दिलवाएंगे.

कोसी की बाढ़ में जाने गईं थी, घर टूटे थे, खेत-खलिहान बर्बाद हुए थे. कोसी किनारे बसे लोगों का सिर्फ भौतिक नुक़सान ही नहीं हुआ था बल्कि भावनात्मक और मानसिक नुक़सान भी हुआ था. उनके पास जो था सिर्फ वही नहीं गया था, बल्कि वो भी चला गया जिसे वह भविष्य में पा सकते थे. कोसी की बाढ़ ने सिर्फ घर बार नहीं छीना था बल्कि लोगों की आंखों से बेहतर भविष्य के सपने भी छीन लिए थे. सरकार ने उस वक्त हमसे वादा किया था कि कोसी किनारे बसे गांवों का पुनर्वास किया जाएगा. गांवों को सुंदर बनाया जाएगा. बर्बादी के लिए जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारियों को सजा दी जाएगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. वक्त के साथ सरकार के वादे भी ऐसे ही जम गए जैसे किसानों के खेतों पर कोसी का बालू… आज कोसी किनारे बसे लोग ऐसी परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर हैं जिनके बारे में हमारे हुक्मरान सोच भी नहीं सकते. लागातार पलायन जारी है, लेकिन सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.

 कोसी के लोगों को पीछे छोड़कर बिहार आगे नहीं बढ़ सकता. यह ‘चिंतन कांफ्रेंस’ कोसी पर चर्चा करने के लिए हैं. हमें पूरा विश्वास है कि कोसी किनारे बसे लोगों के उज्जवल भविष्य के रास्ते निकाले जा सकेंगे. उन्हें बेहतर जीवन की उम्मीद दी जा सकेगी. उनके बच्चों की आंखों में फिर से सपने पैदा किए जा सकेंगे. लेकिन यह सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक बेदारी के बिना संभव नहीं है.

हम प्रयास कर रहे हैं कोसी क्षेत्र में बदलाव के लिए. लेकिन यह पहला प्रयास नहीं है. हमसे पहले भी बहुत से भाइयों ने प्रयास किए हैं. हम उनके समर्थन के साथ बस इस दिशा में एक क़दम बढ़ा रहे हैं. हमें विश्वास है कि हमें न सिर्फ कोसी के पीड़ितों, बल्कि हमारे रहनुमाओं का साथ मिलेगा और हम समस्याओं के हल तलाश सकेंगे.

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