हम युवा और हमारा गणतंत्र

Beyond Headlines
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Ashutosh Kumar Singh for BeyondHeadlines

हम गणतंत्र हो चुके हैं. हमारे पास अपना-पराया संविधान है. हम आज़ाद हैं (लेकिन गुलामी करने की आदत आज भी है). हम युवा हैं. हमारी अलग पहचान है. सपने हैं. कुछ करने का जुनून है.

सामने रास्ते अनेक हैं. मंज़िल ढुंढ़ने में भटकन के शिकार हैं. हमारा गणतंत्र, हमारा संविधान हमें दूसरों की नक़ल करने की शिक्षा देते हैं. ऐसी शिक्षा से शिक्षित होकर, हम कैसी राष्ट्रीयता का प्रदर्शन करेंगे, खुद भी पता नहीं है. हमारे पास दृष्टिकोण है, भारत को सबल राष्ट्र बनाने वास्ते. हम मंथन में जुटे हैं. दुख है कि हमारे ‘ अमृत ’ को विदेशी लूट रहे हैं. हमारी सोच और दृष्टीकोण को वो अपना रहे हैं. खुद आगे बढ़कर, हमें ही निम्नतर बनाने में जुटे हैं. हमारी अपनी सरकार है. कार के तले लाखों ज़िंदगियां लहूलहान हो रही है और सर का अपना कोई पता नहीं है.

हम युवा तिलमिला रहे हैं. तिल-तिल की तरह तले जा रहे हैं. मिलने के नाम पर भूख और बेरोज़गारी हमें मिली. रोज़-रोज़ की गाली से अच्छा हमारे लिए बेरोज़गाली ही है. हम स्वतंत्र भारत के गुलाम युवा हैं. हालांकि हम पर लगाम किसी का नहीं है, गर प्रेमिका को हटाकर बात की जाए. हमें भी मालूम है, राष्ट्र का भार हम पर है. राष्ट्र का नाम हमें भा रहा है. संबोधन के लिए इसका नाम ‘ इंडिया ’ हमने रख लिया है, पर ‘ भारत ’ के ‘ त ’ को छोड़ दिया जाए तो ‘ भार ’ से चिंतित ज़रुर हैं हम.

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