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हैदराबाद ब्लास्ट के संबंध में मिस्टर शिंदे से सात सवाल…

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के रिहाई मंच (Forum for the Release of Innocent Muslims imprisoned in the name of Terrorism) ने हैदराबाद धमाकों में पूछताछ के नाम पर मुस्लिम युवकों की अवैध गिरफ्तारियों और उपीड़न को यूपीए सरकार की मुस्लिम विरोधी और साम्प्रदायिक हिंदु वोटों के लिये की जा रही राजनीतिक क़वायद क़रार दिया है. संगठन ने शिंदे को नया हिंदु हृदय सम्राट घोषित करते हुए कहा कि शिंदे का यह कहना कि हैदराबाद में हुए विस्फोट अफ़ज़ल गुरू और कसाब की फांसी की प्रतिक्रिया थी से संदेह पैदा होता है कि इस घटना के पीछे स्वयं सरकार का हाथ है जो धमाकों से अफ़ज़ल की फांसी पर उठे सवालों को दबाना और खुद को भाजपा से ज्यादा हिंदुत्ववादी साबित करना चाहती है.

मंच ने केंद्र में यूपीए सरकार को समर्थन देने वाली समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव से भी शिंदे के भगवा आतंकवाद सम्बंधी दिये गये बयान से पीछे हटने पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने की मांग की है.

Black Blast copy

हैदराबाद धमाकों के बाद मुस्लिम युवकों के उत्पीड़न पर लखनऊ स्थित कार्यालय पर आयोजित बैठक के बाद जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच के महासचिव पूर्व पुलिस महानीरिक्षक एस.आर. दारापुरी ने कहा कि हैदराबाद धमाकों के ठीक पहले जिस तरह शिंदे हिन्दुत्वादी संगठनों की आतंकवाद में संलिप्तता के अपने बयान से पीछे हटे और भाजपा नेताओं के साथ बैठक की उससे संदेह होता है कि ये धमाके भाजपा और संघ परिवार को खुश करने के लिये गृह मंत्री और उनके मंत्रालय के अधीन खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा करवाया गया और मुस्लिम समुदाय से जोड़कर इंडियन मुजाहिदीन इत्यिादि का नाम लिया जाने लगा ताकि हिंदुत्ववादी संगठन शक के दायरे से बाहर हो जाएं. आतंकवाद के आरोपों में घिरे संघ परिवार को क्लीन चिट देने की यूपीए सरकार की इस रणनीति की तस्दीक इससे भी हो जाती है कि घटना के ठीक बाद हिंदुत्वादी संगठनों ने हैदराबाद बंद का आह्वान किया तो दूसरी तरफ भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नक़वी को पाकिस्तान से आतंकी संगठनों के धमकी भरे कथित फोन भी आने लगे ताकि भाजपा और संघ की भूमिका पर शक न किया जाए.

रिहाई मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मो शुऐब ने कहा कि इससे साफ हो जाता है कि इंडियन मुजाहिदीन गृह मंत्रालय का ही कागजी संगठन है जिसका नाम उछाल कर सरकार बार-बार अपने राजनीतिक संकट हल करती है. उन्होंने शक जाहिर किया कि जिस तरह भटकल और आज़मगढ़ के कुछ युवकों का नाम उछाला जा रहा है, जिन्हें संगठन मानता है कि खुफिया एजेंसियों के पास ही हैं, को बाटला हाऊस की तरह किसी फर्जी मुठभेड़ में मार कर हैदराबाद विस्फोट की गुथ्थी सुलझा लेने का दावा किया जाए.

रिहाई मंच ने हैदराबाद विस्फोटों की जांच को गृह मंत्रालय और खुफिया एजेंसियों द्वारा भटकाने का आरोप लगाते हुये शिंदे से 7 सवाल पूछे हैं:-

1- धमाकों के ठीक बाद दिल्ली स्पेशल सेल द्वारा चार कथित आईएम सदस्यों की कथित इंट्रोगेशन रिपोर्ट मीडिया को क्यों और कैसे लीक कर दी गयी. क्या ऐसा कर के जांच को एक खास दिशा में मोड़ने की कोशिश की गयी?

2- हिंदुत्ववादी संगठनों को जांच के दायरे से क्यों बाहर रखा गया. जबकि हैदराबाद समेत देश के कई हिस्सों में हुये आतंकी विस्फोटों में उसकी भूमिका उजागर हुयी है?

3- क्या ऐसा गृह मंत्री द्वारा भाजपा और संघ परिवार के दबाव में किया जा रहा है? या गृह मंत्री स्वेक्षा से संघ परिवार के कथन- सभी मुसलमान आतंकी नहीं होते लेकिन सभी आतंकी मुसलमान होते हैं- को मानते हुए सिर्फ मुसलमानों को आरोपी बना रहे हैं?

4- कथित आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन को इस घटना में संलिप्त बताने का आधार विस्फोट का मोडस ऑपरेंडी- आईईडी, डेटोनेटर, जिलेटिन की छड़ो का इस्तेमाल बताया जा रहा है. जबकि जिन आतंकी विस्फोटों में हिंदुत्ववादी संगठनों की संलिप्तता उजागर हुयी है उनमें भी इन्हीं विस्फोटक तत्वों का इस्तेमाल हुआ है. ऐसे में जांच एजेंसियों द्वारा केवल मॉडस ऑपरेंडी के तर्क के से सिर्फ कथित मुस्लिम संगठनों को ही इसके लिये जिम्मेदार ठहराने को जांच एजेंसियों के साम्प्रदायिक जेहनियत का नजीर क्यों न माना जाए?

5- मक्का मस्जिद धमाकों में कोर्ट से बरी और राज्य सरकार द्वारा मुआवजा और आतंकवाद में संलिप्त न होने का प्रमाणपत्र पाए मुस्लिम युवकों को जांच एजेंसियों द्वारा क्यों पूछताछ के नाम पर उठाया जा रहा है? क्या केंद्र सरकार इन मुस्लिम युवकों को निर्दोष बताने वाली अदालत के फैसले से सहमती नहीं रखती?

6- अगर सीसीटीवी कैमरे काम नहीं कर रहे थे तब जांच एजेंसियों द्वारा एक दाढ़ी वाले व्यक्ति को साईकिल बम रखने का फुटेज प्राप्त होने का दावा किस आधार पर किया जा रहा है?

7- नवम्बर 21, 2002 को हैदराबाद में हुये कथित आतंकी विस्फोट के नाम पर 22 नवम्बर को उप्पल, हैदराबाद के मो आज़म को और 23 नवम्बर को करीमनगर के अब्दुल अजीज़ नाम के युवक को उनके घरों से उठा कर फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया. वहीं 12 अक्टूबर 2005 को हैदराबाद के एसटीएफ आफिस में हुये कथित हमले के आरोप में यजदानी नामक हैदराबादी युवक को 2006 में दिल्ली में फर्जी मुठभेड़ में पुलिस ने हत्या कर दी. सरकार इन फर्जी मुठभेड़ों पर अपनी स्थिति स्पष्ट करे?

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