Culture & Society

पर्दा नहीं जनाब इसे फैशन कहिए…

Fehmina Hussain for BeyondHeadlines

पर्दा प्रथा का विरोध इस समय बहुत से देशों में हो रहा है. कई देश तो पर्दा यानी बुर्का, हिजाब, अबाईया व स्कार्फ़ पर प्रतिबन्ध भी लगा चुके हैं. भारत में भी सेक्यूलर मीडिया इस पर हमेशा वार करती रहती है. मीडिया ने हमेशा पर्दे और इस्लामी लिबास को स्त्रियों की दासता के रूप में पेश किया है. कुछ लोग तो यह सुझाव देने में भी आगे रहते हैं कि लड़कियों को ऐसे कपड़े नहीं पहनने चाहिए. लेकिन इन सबके विरूद्ध हमारे देश में बुर्का, हिजाब, अबाईया व स्कार्फ़ का चलन दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है. बल्कि सच पूछे तो यह अब फैशन का हिस्सा बनता जा रहा है.

21 साल की रूपा जोशी कहती हैं “पर्दा करना किसी धर्म या समाज की मांग नहीं, बल्कि ये ट्रेन्ड में है और इसे पहनने या ओढ़ने में कोई बुराई नहीं. आज बड़े शहरों में हो या छोटे शहरों में, ये फैशन खूब चला है.”

इग्नो में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रही शोपामा चटर्जी कहती हैं कि  “हिजाब लगाने के भी अलग-अलग तरीके के फैशन हैं. बड़े जुड़े के साथ स्कार्फ़ को ऊँचा लगाना भी नए ट्रेन्ड में शामिल है.”

its fashion not veil

मैमुना इदरीसी जो कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया में बीए की छात्रा हैं, उनसे हिजाब के बारे में जब मैंने बात की तो उनका कहना था “इस्लाम में शुरू से ही औरतों के हिफाज़त की बात कही गई है. जहाँ तक हिजाब की बात है तो इसके बहुत से फायदे हैं. धूल-मिट्टी, सन-टेनिंग से स्किन बच जाती है. साथ ही फ़ैशनेबल कपड़ों को ‘इस्लामी टच’ भी मिलता है.”

19 वर्षीय रागिनी त्यागी कहती हैं “मैं मुस्लिम तो नहीं हूं. पर मुझे हिजाब लगाना अच्छा लगता हैं. घर वाले इस बात से काफी नाराज़ भी होते हैं, फिर भी मैं घर से बाहर जाते हुए इसे लगा कर जाती हूँ. इसे लगाने से मेरे बाल प्रदुषण से बच जाते हैं और चेहरा भी हाईलाइट होता है.” आगे की बातचीत में वो ये भी कहती हैं कि “हिजाब लगाना गलत नहीं है, पर उसे पहनने की अपनी मर्जी होनी चाहिए.”

जामिया में बीए (इंग्लिश आनर्स) प्रथम वर्ष की छात्रा मानल हिजाब के अनुभव को बताते हुए कहती हैं “मैंने अभी कुछ महीने पहले पर्दा करना शुरू किया है. इसके पहले मैंने कभी पर्दा नहीं किया था और करने का कोई इरादा भी नहीं था. मैं हमेशा जींस, शॉर्ट्स, टॉप पहना करती थी. दिल्ली आने पर मैंने इंग्लिश ट्रांसलेशन वाली कुरान पढ़ी तो बहुत अच्छी-अच्छी बाते जानने को मिली. पर्दे के बारे में भी पढ़ा. तब मैंने सोचा कि मुझे भी पर्दा करना चाहिए. और इसमें बुराई भी क्या है?”

औरतों के पर्दे का मामला औरतों पर ही छोड़ देना चाहिए. सच पूछे तो पिछले कुछ सालों में बुर्का अलग रूप में देखने को मिला है. आज छोटे शहरों में भी बुर्का बिल्कुल नए रूप में नज़र आ रहा है. औरतें इसका इस्तेमाल दूसरों की नज़र से बचने के बजाए उनकी नज़र में आने के लिए कर रही हैं. अब बुर्के के दुकानों में सिर्फ काले रंग नहीं दिखते, बल्कि नए फैशन के बुर्के और हिजाब भी नज़र आने लगे हैं, जिसमें एम्ब्राइडरी, कुरेशिया डिज़ाइनर, जरी आदि का काम होता है. इतना ही नहीं, इनके कई किस्में हैं. अम्ब्रेला नकाब में बहुत घेरा होता है. मैक्सी अम्ब्रेला ऊपर से पहना जाता है. कोट नकाब में कालर लगा होता है. फ्रंट खुला नकाब में सामने के बटन खोलकर पहनना होता है. पैसे की बात करें तो बाज़ार में 500 रुपये से लेकर 21, 000 रुपये तक नकाब उपलब्ध है. इसके अलावा नोज पीस, रुमाली, स्कार्फ, मखना आदि अलग से लेना होना होता है.

किसी भी औरत के लिए जाहिरी तौर पर सबसे कीमती चीज़ उसका हुस्न होता है. और वह अपने हुस्न को बरक़रार रखने के लिए तरह-तरह की तरकीबें करती है. शायद शहर में रहने वाली लड़कियों ने इन सच्चाईयों को पहचान लिया है. इसलिए वो बाइक या स्कूटी चलाते समय अपने हाथों में दस्ताना और चेहरे को पूरी तरह ढंके नज़र आती हैं. ये पर्दा नहीं तो और क्या है?

हिज़ाब को लेकर भले ही कितने फतवे निकले हो. कितने ही बहस हुए हों. पर इन सब के बावजूद आज समाज में इसके जवाब के लिए महिलाओं ने अलग से अपना रास्ता तलाश कर लिया है. वक़्त चाहे कोई भी रहा हो सजना-संवरना तो औरतों का मशगला रहा है. फिर भला सजने-संवरने के नाम पर पर्दे की बात आये तो महिलायें उससे क्यूँ पीछे रहे? यह अलग बात  है कि अब पर्दे को किसी बंदिश में नहीं, बल्कि ट्रेन्ड व फैशन में ढाल लिया गया है.

चलते-चलते आपको यह भी बता दूं कि फिल्म “लम्हा” में बुर्के में नज़र आने वाली कश्मीरी गर्ल बनी हमारी बिल्लो रानी यानी बिपाशा को आप कैसे भूल गए? फिल्म मेरे हुजूर में जब माला सिन्हा ने एक गाने पर अपने रूख से नकाब उठाया था तो वह बुर्का और नकाब उस दौर का फैशन स्टेटमेंट बन गया था.

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