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बेतिया के राजमहल पर चोरों की छाया, राजा-महाराजाओं की आत्मा बेचैन!

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published March 12, 2013 9 Views
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14 Min Read
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Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

बिहार में बढ़ती चोरी की वारदात से आम लोग तो परेशान हैं ही, साथ यहां के राजा-महाराजा की आत्माएं भी बिहार सरकार को कोस रही होंगी.

बेतिया राज में कीमती सामानों की चोरी बेहद ही आम हो चुकी है. बेतिया राज में चोरों का आतंक इस कदर छाया हुआ है कि वे बेखौफ तरीके से एक के बाद दूसरी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. एक नए घटनाक्रम में दो बोरा बर्तन लावारिस हालत में बेतिया राज परिसर से बरामद किए गए. ऐसी आशंका जताई जा रही है कि चोरों ने एक बार फिर से शीशमहल में सेंध लगा दी है. कुछ ही दिनों के भीतर एक व्यक्ति को शीश महल के समीप ही गिरफ्तार किया गया. जानकारी के मुताबिक चोर के पास से शीशे के पुराने झूमर के कुछ हिस्से एवं शीशे के दूसरे सामान भी बरामद किए गए. ये सामान बेतिया राज के शीश महल के ही हैं. हैरान कर देने वाली बात यह भी है कि शीश महल का एक दरवाजा भी खुली हालत में पाया गया. उधर गिरफ्तार किए गए चोर ने दावा किया कि वह नशे की हालत में था और उसने इस संबंध में किसी भी जानकारी से साफ इंकार कर दिया.

स्थानीय लोग इसके पीछे बेतिया राज के कर्मचारियों की मिलीभगत बताते हैं जबकि राज के कर्मचारी सारा दोष यहां के गरीब गार्डों पर मढ़ देते हैं. लेकिन गार्ड व अन्य लोगों का मानना है कि चाबी बेतिया राज के प्रधान लिपिक के  पास रहती है और दिलचस्प तथ्य यह भी है कि इस घटना में ताला तोड़ा नहीं बल्कि खोला गया था. ऐसे में ये कर्मचारी गार्ड पर आरोप लगाकर अपने गुनाहों  पर परदा डालने की कोशिश कर रहे हैं. एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि चोरी किए गए पुरातात्विक सामान का मूल्य राज मैनेजर द्वारा 70 हज़ार रूपये आंका गया, जबकि सूत्रों के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में इसकी क़ीमत करोड़ों में है.

Bettiah Raj

इससे पहले अक्तूबर, 2009 में भी राज के अभिलेखागार में चोरी की घटना हुई. लेकिन चोरों ने इस घटना में कौन सी परिसंपत्तियों की चोरी की, इस बात की कोई भी जानकारी राज की देखभाल कर रहे अधिकारियों के पास नहीं थी.  बहरहाल, बेतिया राज में चोरी का यह कोई नया मामला नहीं है. इससे पूर्व भी यहां कई बार क़ीमती सामानों की चोरियां हो चुकी हैं. जुलाई 2009 के महीने में शहर के राजकचहरी परिसर में स्थित ऐतिहासिक घड़ी की मशीन घड़ी घर का ताला खोलकर चोरी कर ली गयी थी, जिसके बारे में बताया जाता है कि इसे 1600 ईस्वी में बेतिया के तत्कालीन महाराज ने इंग्लैंड से मंगवाया था. इसकी खासियत यह थी कि इसमें चारों दिशाओं की दीवारों में लगी घड़ियां एक ही मशीन से चलती थीं. सूत्रों की मानें तो इस घड़ी के पेन्डुलम एवं इसकी मशीन में सोने एवं हीरे के हिस्से लगाए गये थे.

सन 2006 के अगस्त महीने में भी इसी बेतिया राज से एक लंदन की घड़ी एवं हाथी की दंत जड़ित टेबल की चोरी करने की कोशिश की गई थी. लेकिन स्थानीय लोगों एवं राहगीरों द्वारा देख लिए जाने की सूरत में चोर मौके से गायब हो गए. लोगों ने पीले रंग के एक झोले में रखी लंदन की रॉयल एक्सचेंज की कीमती घड़ी एवं हाथी की दंत जड़ित टेबल को राजकर्मी रामधारी साह को सुपुर्द कर दिया था. 2006 में इसी महीने बर्तनों की चोरी का मामला भी सामने आया था.

2000 के दशक में भी राजा के समय के फोटो और खिलौनों समेत अन्य बेशकीमती सामनों की चोरी भी की गयी थी. लेकिन ये सभी चोरी के मामले आज तक पुलिस के अनुसंधान और सीआईडी की जांच में उलझे हुए हैं. कोई नतीजा अभी तक नहीं निकल सका है.

बेतिया राज के ऐतिहासिक कालीबाग मंदिर में साल 1996 में अज्ञात चोरों ने मुख्य मंदिर के समक्ष से बटुक भैरव की मूर्ति चुरा ली थी. इस मामले भी अभी तक कुछ नहीं हो सका है.

90 के दशक में बेतिया राज के खजाने की मज़बूत चादर काटकर कीमती आभूषणों, पत्थर आदि की चोरी कर ली गयी थी. इस मामले में बेतिया राज की ओर से दो करोड़ की संपत्ति की चोरी का मामला नगर थाने में दर्ज कराया गया था. हालांकि स्थानीय लोगों का मानना है कि इससे कई गुना ज़्यादा की सम्पत्ति चोरी हुई थी. यहां कि स्थानीय लोग इसे एशिया की सबसे बड़ी चोरी मानते हैं. कहा जाता है कि इस चोरी में हैलीकाप्टर का इस्तेमाल किया गया था और कई दिनों तक लगातार रात में छत को मशीन के ज़रिए काटा गया था, क्योंकि छत की ज़मीन लोहे की मज़बूत चादरों से बनाई गई थी.

ऐसे में अगर देखा जाए तो आरंभ से ही ऐतिहासिक बेतिया राज के मंदिरों एवं उसके अन्य धरोहरों पर चोरों की नज़र है. लेकिन बिहार सरकार की तरफ़ से इस राज की संपदा को संरक्षित रखने की दिशा में कोई सशक्त सरकारी पहल नहीं दिख रही है. इतनी बड़ी सम्पत्ति की रखवाली की ज़िम्मेदारी डंडे वाले चौकीदार से कराई जा रही है. उलझाने वाला सवाल यही है कि आखिर डंडे वाले इन चौकीदार से कैसे हो सकती है बेतिया राज के अरबों की संपत्तियों की रखवाली?

गौरतलब है कि बेतिया राज की प्रशासनिक नियंत्रण एवं सुरक्षा की जिम्मेदारी पूरी तरह बिहार सरकार के ऊपर है. लेकिन स्थिति यह है कि सरकारी नियंत्रण होने के बावजूद राज की अरबों की संपत्तियों की सुरक्षा सिर्फ एक-दो सिपाहियों के जिम्मे कर दी गई है. इस तरह से सुरक्षा के नाम पर मजाक और खिलवाड़ किया जा रहा है.

अब सवाल उठता है कि क्या बेतिया राज की धरोहरों और अवशेषों की सुरक्षा ज़रूरी नहीं है, अगर ज़रूरी है, तो फिर इसकी दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन हैं? क्या सरकार और प्रशासन को इनके सदुपयोग की कोई चिंता नहीं है, हकीकत यह है कि अगर सरकार चाहे तो बेतिया राज से जुड़े स्मारकों और महल के अवशेषों को पर्यटन से जोड़कर इन्हें दुनिया के सामने पेश कर सकती है, लेकिन ज़रूरत इच्छाशक्ति और स्वार्थरहित मानसिकता की है, जो शायद वर्तमान हालात में सरकार और प्रशासन के पास नहीं है.

आखिर में हम आपको बताते चलें कि “INSAAN International Foundation” ने इस संबंध में बेतिया के ज़िला अधिकारी को एक आरटीआई भेज कर पूछा था कि 15 अगस्त, 1947 से लेकर अब तक बेतिया राज की सम्पत्ति में चोरी के कितने मामले दर्ज हुए हैं. सारे मामलों में दर्ज एफआईआर की फोटो-कापी उपलब्ध कराई जाए और साथ ही यह भी बताएं कि पुलिस प्रशासन इन मामलों में अब तक क्या कार्रवाई की है. लेकिन अफसोस बेतिया के जिला अधिकारी महोदय की तरफ से कोई सूचना अब तक नहीं दी गई है.

बेतिया राज का इतिहास:

मुग़ल कालीन हिन्दुस्तान में सम्राट अकबर के समय बिहार सूबे को छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित कर 6 अलग-अलग सरकारें कायम की गई थी, जिनमें से चम्पारण भी एक था. बताया जाता है कि 1579 में बंगाल, बिहार और उड़ीसा में विद्रोह हो गया. सम्राट को कमज़ोर समझ अफगान के पठान भी बागी हो गए, बंजारों का लूट-पाट इतना बढ़ गया कि सम्राट अकबर चिन्तित हो गए. उनके दरबार में एक सेनापति उदय करण सिंह थे. इस विद्रोह को दबाने का भार उन्हें सौंपा गया. पटना के पास गंगा पार करते ही हाजीपुर में उदय करण सिंह का मुकाबला बंजारों से हो गया. लड़ाई में कुछ बंजारे मारे गए और बाकी बन्दी बना लिए गए. इसके बाद पूरा विद्रोह शान्त व खत्म हो गया.

सम्राट अकबर को जब इस जीत की सूचना मिली तो उन्होंने उदय करण सिंह को इनाम स्वरूप चम्पारण सरकार की बागडोर सौंपने का आदेश दे दिया. अकबर के जीवन पर्यन्त उदय करण सिंह एवं उनके बाद उदय करण सिंह के लड़के जदु सिंह चम्पारण की देखभाल करते रहे. इतिहास गवाह है कि राजा की उपाधि जदु सिंह के लड़के उग्रसेन सिंह को सम्राट शाहजहां के शासनकाल में सन् 1629 में दी गई. अर्थात बेतिया राज के प्रथम राजा उग्रसेन सिंह कहलाए. सन 1659 में उग्रसेन सिंह का देहान्त हो गया. उनके बाद उग्रसेन सिंह के एकमात्र पुत्र गज सिंह राजा बने जो 1694 तक राज करके स्वर्ग सिधार गए. इनके सबसे बड़े लड़के दिलीप सिंह को 1694 में राजा बनाया गया, लेकिन 1715 में यह भी परलोक वासी हो गए. इसके बाद इनके बड़े पुत्र ध्रुव सिंह को राजा बनाया गया. यह अब तक के सबसे सफल राजा माने गए. इन्होंने ही सुगांव से हटाकर बेतिया को अपनी राज की राजधानी बनाया.

कहा जाता है कि ध्रुव सिंह को कोई पुत्र नहीं हुआ. केवल दो लड़कियां हुई. ध्रुव सिंह ने देखा कि उनके पुत्र हीन होने के चलते उनका राज भाईयों के हाथ चला जाएगा, यही सोच कर उन्होंने अपने जीवन काल में ही अपने पुत्री के पुत्र युगलकिशोर सिंह को राज तिलक देकर राजा बना दिया. इस तरीके से ध्रुव सिंह ने अपने भाईयों के हाथ रियासत की सत्ता जाने से बचा तो ली मगर परिवार के बीच खाई जरूर पड़ गई. ध्रुव सिंह की मृत्यु 1762 में हो गई.

ध्रुव सिंह के मृत्यु के बाद राजा युगलकिशोर सिंह के ताज में कांटें लग गए. एक तरफ नाना के भाईयों का विरोध और दूसरी तरफ ईस्ट इंडिया कम्पनी की दहशत.. तनाव में आकर वे 1766 में ईस्ट इंडिया कम्पनी के विरूद्ध विद्रोह कर बैठे. विद्रोह दबाने के लिए कोलोनेल बारकर की अगुवाई में ईस्ट इंडिया कम्पनी के सिपाहियों ने बेतिया राज पर चढ़ाई कर दी। आखिरकार युगलकिशोर को भागना पड़ा. राजा युगलकिशोर के भागने के बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी ने पूरे चम्पारण सरकार को अपने कब्ज़े में ले लिया.

वे पटना राजस्व परिषद द्वारा निर्गत परवाने के अनुपालन में सारण सरकार के सुपरवाइजर के समक्ष 25 मई 1771 को उपस्थित हुए और आत्म-समर्पण के बाद अगस्त 1771 में परगना मझौआ एवं सिमरौन हेतु अम्लदस्तक तैयार कर उन्हें दे दिया गया. युगलकिशोर सिंह की मृत्यु 1784 में हो गई, इसके बाद उनके पुत्र बृजकिशोर सिंह अपने पिता का मालिकाना हक पाते रहे. 1816 में यह भी दुनिया छोड़ कर चले गए.

इसके बाद इनके बड़े लड़के आनन्द किशोर सिंह ने सारण के कलेक्टर के यहां दाखिल खारिज कराकर एवं कुछ शर्तो को कबूल करके बेतिया राज को प्राप्त किया और इन्हें इस समय महाराजा की उपाधि से विभूषित किया गया. आनन्द किशोर सिंह संगीत प्रेमी थे, इन्हीं के समय ध्रुपद गायन की परम्परा बेतिया में चली. 29 जनवरी 1838 को महाराजा आनन्द किशोर स्वर्ग सिधार गए. इन्हें कोई संतान नहीं थी, इसलिए उनके भाई नवल किशोर राजा हुए. इन्होंने बेतिया राज का काफी विस्तार किया और 25 सितम्बर 1855 को यह भी काल के गाल में समा गए. इसके बाद पहली पत्नी के पुत्र राजेन्द्र किशोर सिंह गद्दी पर बैठे. इन्होंने बेतिया राज का काफी विस्तार किया. इनके दौर में ही बेतिया में रेलवे लाईन बिछी और ट्रेन चली. बेतिया का तारघर भी इनके कार्यकाल में बना. इन्होंने ही बनारस में अवतल बनवाएं और इलाहाबाद में घर खरीदा, (विशेष बात यह है कि इसी घर को देखने के लिए  सिनेमा जगत के महानायक अमिताभ बच्चन ने बचपन में चोरी की थी.) 28 दिसम्बर 1883 को वे भी भगवान के प्यारे हो गए.

इनके मौत के बाद महाराजा हरेन्द्र किशोर राजगद्दी पर बैठे. और यही बेतिया राज के अंतिम महाराजा थे. इन्हें कोई संतान नहीं थी. 24 मार्च 1893 को इस दुनिया को अलविदा कह गए. इनकी दूसरी पत्नी 27 नवम्बर 1954 तक बेतिया राज दरबार को रौशन रखा. उसके बाद से बेतिया राज हमेशा-हमेशा के लिए अंधेरे में चला गया.

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