Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
प्रकाश झा के ‘चक्रव्यूह’ में फंसे लोगों का आक्रोश अब सातवें आसमान पर है. उनके खिलाफ ‘सत्याग्रह’ की पूरी तैयारी कर ली गई है. सच पूछे तो प्रकाश झा की छवि देश व दुनिया में भले ही काफी अच्छी हो, पर उनके जन्मभूमि चम्पारण के गरीब लोग उन्हें अपने दुश्मन के तौर पर देखते हैं. उनका मानना है कि ‘चक्रव्यूह’ में जो किरदार मेदांता ने निभाया है, रियल लाईफ में बिल्कुल वैसा ही किरदार प्रकाश झा अपने गांव वालों के साथ निभा रहे हैं.
‘सत्याग्रह’ बनाने में व्यस्त प्रकाश झा ने अपने गांव के ही लोगों को लालच के ‘चक्रव्यूह’ में फांस लिया है. कुछ साल पहले प्रकाश झा ने गांव में चीनी मिल लगाने और उसमें नौकरी देने का सब्जबाग दिखाकर गांव वालों की ज़मीन हड़प ली. प्रकाश झा ने अपने निर्देशन कौशल के दम पर चीनी मिल के शिलान्यास का आडंबर किया. यही नहीं, विदेशी कंपनियों के निवेश का धांसू प्रचार भी किया. किसी मसाला फिल्म की तरह उन्होंने अपनी चीनी मिल के सब्जबाग को हरा करने के लिए तमाम ज़रूरी मसाले डाले. प्रकाश झा ने स्वयं को अपने इलाके में महात्मा के रूप में प्रदर्शित किया. उनकी फिल्मी छवि और प्रचार के प्रभाव में आकर लोगों ने औने-पौने दाम में अपनी ज़मीन चीनी मिल के लिए अधिग्रहित करवा दी. लेकिन जब प्रकाश झा के वादों की हवा निकली तो बेरोज़गार किसानों का बुरा हाल हो गया. नौकरी के लालच में ज़मीन दी थी, अब न ज़मीन है न नौकरी.
गांव के लोग भी मानते हैं कि उनकी ज़मीने हड़पने के लिए प्रकाश झा ने फिल्मी दिमाग का इस्तेमाल किया. योजनाबद्ध तरीके से उन्हें सब्ज़बाग दिखाया. यही नहीं, राज्य के मुखिया नीतिश कुमार को बार-बार अपने हैलीकॉप्टर से गांव में लाकर अपनी पूरी धौंस दिखाई. फिल्मी दुनिया के जादूगर प्रकाश झा और सूबे के मुखिया नीतीश कुमार के चेहरे की धमक देखकर गांव वाले धोखा खा गए और अपनी ज़मीनें चीनी मिल के लिए दे दीं.
लेकिन प्रकाश झा ने सिर्फ किसानों की जमीन ही नहीं हड़वी बल्कि स्थानीय नेताओं को भी खूब चूना लगाया. प्रकाश झा के झांसे आकर कोई नेता अपने बेटा को तो कोई खुद को फिल्मी पर्दे पर देखने लगा. मॉल-हॉल-मार्केट बना बिहार को विदेश बनाने के नाम पर विभिन्न शहरों में सरकारी ज़मीन का आवंटन तक हो गया. लेकिन जब मामला अदालत में गया तो अदालत ने आवंटन पर रोक लगा दी और पूरा मामला खटाई में डाल दिया. ताकतवर सरकार की ज़मीन तो बच गई, लेकिन गरीब किसानों की ज़मीन अब तक प्रकाश झा के चंगुल से नहीं निकल सकी है.
स्पष्ट रहे कि किसानों के खेतों की रजिस्ट्री दिसम्बर, 2006 में शुरू हुआ. और मौर्य चीनी मिल (P&M इन्फ्रास्ट्रक्चर) गुरूवलिया का शिलन्यास 28 अप्रैल, 2007 को हुआ. इसी दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथों इन भूदाता किसानों को सम्मान-पत्र दिया गया, जिस पर प्रकाश झा व चीनी मिल एवं गन्ना उद्योग राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नीतीश मिश्र का हस्ताक्षर भी था. किसानों में खुशी की लहर थी. लेकिन अगले तीन-चार सालों के बाद चीनी मिल के बजाए कुछ और खेल होने लगा तो किसानों को पूरी कहानी समझ में आ गई.
मई 2010 में ज़मीन वापसी को लेकर भूदाता संघ का गठन किया गया. 29 मई 2010 को मौर्य चीनी मिल के कथित निर्देशक प्रकाश झा के भाई प्रभात झा को एक बैठक में बुलाकर स्थिति स्पष्ट करने को कहा गया. लेकिन प्रभात झा नहीं आए. पुनः 15 जून 2010 को भूदाता संघ द्वारा एक निमंत्रण प्रभात झा को भेजा गया, जिसे प्रभात झा ने लेने से इंकार कर दिया. तब से लेकर आज तक गुरूवलिया के गरीब व बेरोज़गार किसान आंदोलन कर रहे हैं. कई सड़कों पर उतर चुके हैं. ज़िला व राज्य के हर अधिकारी व नेता से गुहार कर चुके हैं. मीडिया के सामने भी गिड़गिड़ा चुके हैं. पर किसी ने साथ नहीं दिया तब इनके सामने न्याय की उम्मीद सिर्फ न्यायलय से है, लेकिन यहां भी इन्हें काफी लंबा इंतज़ार करना पड़ रहा है. अभी तक सुनवाई की तारीख भी तय नहीं हो सकी है. और बस इन किसानों के सामने ‘सत्याग्रह’ करने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं बचता है.
भूदाता संघ के अध्यक्ष हरगुण कुमार त्रिपाठी कहते हैं कि सरकार की तरफ से अगर जल्द ही कुछ नहीं किया गया तो परिणाम काफी घातक हो सकते हैं. लोगों में निराशा है और जब लोगों में निराशा आ जाती है तो वो कुछ भी कर गुज़रने को तैयार रहता है.
इधर बेतिया मेडिकल कॉलेज की लड़ाई लड़ रहे आंदोलनकारी भी प्रकाश झा की धोखाधड़ी से काफी गुस्से में हैं. इस मेडिकल कॉलेज की लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाने वाले ठाकूर प्रसाद त्यागी कहते हैं, पहले तो बेतिया मेडिकल कॉलेज के पक्ष की बात करके प्रकाश झा हमारे आंदोलन में शामिल हुआ, लेकिन वो अंदर ही अंदर सरकार से अपनी सांठ-गांठ कर रहा था. इस प्लेटफार्म का इस्तेमाल उन्होंने अपने राजनीतिक फायदे के लिए किया. अस्पताल में जनरेटर व अपने लोगों को रखकर लोगों को हर पल यह अहसास दिलाया जाता रहा कि यह सब कुछ प्रकाश झा की वजह से हो रहा है. लेकिन जब वो चुनाव हार गए तो उन्होंने अन्दर ही अन्दर अपने एक प्राईवेट मेडिकल कॉलेज का प्रस्ताव सरकार के समक्ष रखकर हमारे आंदोलन को कमज़ोर करने की नाकाम कोशिश की. वो तो भगवान की कृपा है कि हमें समय रहते उसका सच पता चल गया. आगे वो कहते हैं कि सामाजिक मुद्दों पर फिल्म बनाकर वो देश को ठगने का काम कर रहे हैं.
यही नहीं, प्रकाश झा को लेकर चम्पारण के युवाओं में भी काफी आक्रोश है. प्रकाश झा ने H.R.S. सेक्यूरिसी संस्था के नाम पर यहां के सभी होनहार एवं शिक्षा प्राप्त कर रहे नवयुवकों को 6 महीने का ट्रेनिंग करवाया. इस ट्रेनिंग के चक्कर में सारे लड़कों की पढ़ाई छूट गई. उनका भविष्य खराब हो गया. सुपौल बाढ़ राहत में लड़कों को दो माह के लिए ले जाया गया. मझौलिया बाढ़ राहत में इन लड़कों को दो-तीन महीना बाढ़ग्रस्त लोगों की सेवा में रखा गया. जिनका मुआवज़ा आज इन लड़कों को नहीं मिला है. इन लड़कों में इतना गुस्सा है कि वो किसी की जान लेने की बातें भी करने लगे हैं. यह लड़के कहते हैं कि हमें वर्षों से फंसा कर रखा और आज हमें निकम्मा बनाकर छोड़ दिया है. हमें आज दर-दर की ठोकरें खाना पड़ रहा है. हमारे बाप दादा की ज़मीन भी गई और हमारा भविष्य भी खराब होता नज़र आ रहा है.
बहरहाल, इन सब के बीच प्रकाश झा अपनी फिल्म ‘सत्याग्रह’ बनाने में मश्गूल हैं, दूसरी तरफ गांव के लोग रियल ‘सत्याग्रह’ की तैयारी कर रहे हैं. वैसे भी चम्पारण सत्याग्रह की भूमि रही है. और यहीं से भारत के आज़ादी की लड़ाई लड़ी गई और हमारा देश आज़ाद हुआ.
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