Major Sangeeta Tomar for BeyondHeadlines
भारतीय सेना में रह कर देश की सेवा करने का मौका मिला. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में भी अपनी सेवाएं देते हुए अनेक महिलाओं संबंधित समस्याओं को जाना उसे निपटाने में भी महिलाओं की कोशिश की. साथ ही कई समाजसेवी संगठनों के साथ मिलकर महिलाओं में जागरूकता और सशक्तिकरण का प्रयास चल रहा है. देश में महिलाओं के कानूनों की लंबी लिस्ट है, पर उन कानूनों का पालन करना सिर्फ सरकार की ही जिम्मेदारी नहीं, विपरित इसके कानून हमारे घरों से ही टूटते हैं. दूसरे की ओर मुंह ताकने के बजाय कानून का पालन करने वाले हम क्यों नहीं हो सकते हैं?
अगर आप और हम चाहें तो महिलाओं के साथ हो रही हिंसा का शुरूवाती दौर में खातमा कर सकते हैं. दहेज प्रथा हमारे घरों से ही शुरू होती हैं, घर के लोग ही छोटी-छोटी बातों पर दहेज के नाम पर ताने देने लगते हैं, रिश्तों में इतनी कड़वाहट हो जाती है कि हार कर महिला को तलाक या आत्महत्या का रास्ता चुनना पड़ता था. पढ़ी लिखी महिलाओं की सोच काफी हद तक संकीर्ण होती है पर इसके लिए सभी महिलाओं का शिक्षित का होना भी बहुत ही जरूरी है. लेकिन ऐसा भी देखने में आया है कि देश में अनेक महिलाएं शिक्षित हैं, फिर भी वह अपने हक की लड़ाई लड़ने में विफल रहती हैं क्योंकि इसका मूल कारण है महिलाओं में कानून की जानकारी का अभाव है.
हमें शिक्षा के साथ-साथ महिलाओं में कानूनी शिक्षा को भी अनिवार्य रूप से शामिल करना चाहिए. महिलाओं को उनके हक के बारे में पता होना चाहिए वो चाहे घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, पैतृक संपत्ति में बराबरी का हिस्सा या राइट टू डिगनटी ऑफ वर्किंग प्लेस ही क्यों न हो. शिक्षित होने के साथ-साथ रोजगार का होना भी महिलाओं में अति आवश्यक है. कामकाजी महिला होने के नाते वह सामाजिक गतिविधियों को आसानी से समझ सकेगी, रास्ते में आने
वाली चुनौतियों का सामना करने के साथ वह अपने निर्णय स्वयं लेने में भी सक्षम होगी.
आज महिलाएं तलाकशुदा या विधवा होने के बाद भी समाज में पूरे सम्मान के साथ अपना पचरम लहरा रही हैं, ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहां महिलाओं की पहुंच न हो. अपने कार्यकुशलता के कारण ही अपनी अलग पहचान बनाए हुई हैं. अनेक महिलाएं ऐसी भी हैं जो पति से प्रति माह गुजारा भत्ता लेने के बजाय उसकी प्रताड़ना से परेशान हो शीघ्र ही तलाक लेना चाहती हैं. वो अपनी शिक्षा या हूनर के बदोलत इतनी सक्षम है कि अपने लिए कमा कर खा सकती है.
आज के समय में समाज में परिवर्तन तो आया है पर फिर भी समाज के नजरियें में और परिवर्तन की जरूरत है. आज के दौर में गांव या मध्यम वर्ग की महिला भले ही चाहे वूमन्स डे न जानती हो पर फिर भी उसे इतना जरूर पता है कि घरेलू हिंसा क्या होती है, उसे अब पुलिस स्टेशन और पुलिस के बारे में भी जानकारी होने लगी है. लेकिन बढ़ती जनसंख्या के चलते कानून भी कई मामलों में चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता, अदालत में न जाने कितने केस पैंडिंग है, जिन पर सुनवाई की तारिख आते आते वो शख्स गुजर जाता है, शायद यह सब बढ़ती जनसंख्या के कारण है. अगर जनसंख्या काबू में रहेगी तो कानून व्यवस्था और अधिक अपना शिकंजा कस सकेगा. औरत को समझना चाहिए कि बच्चा सिर्फ भगवान की देन ही नहीं, उसकी भी देन है उसे अधिक बच्चों को जन्म देने का विरोध करना चाहिए. पढ़ी लिखी महिला ही समाज में परिवर्तन ला सकती है। छोटी बच्चियों को अपने घरों में बर्तन मांजवाने के बजाय शिक्षा देना चाहिए.
(मेजर संगीता तोमर राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्षा हैं और यह लेख अनिता गौतम से बातचीत पर आधारित है.)