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BeyondHeadlines > Culture & Society > एक थी डायन…
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एक थी डायन…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published April 24, 2013
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9 Min Read
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Fahmina Hussain for BeyondHeadlines

वह रोती है. प्रार्थना करती है. अपने निर्दोष होने की बात कहती है. पर उसकी बात नहीं सुनी जाती है. ऐसा तब तक किया जाता है जब तक वह बेहोश होकर गिर न पड़े. बेहोश होने पर उसे घसीटकर गांव से बाहर फेंक दिया जाता है. इस बीच उसके मां-बाप भी समाज के भय से उसका साथ नहीं दे पाते हैं. उसे भीख देना तो दूर, कोई उसे अपने द्वार पर खड़ा भी नहीं होने देता. मनचले और गैरकानूनी कार्य करने वाले लोग उसे घेर लेते हैं. वह भी बेबस रहती है. आखिर वे ऐसा क्यों करते हैं? क्योंकि लोगों को शक था कि वह डायन है…

आज़ादी के 65 सालों के बाद भी शासन के तमाम प्रयासों, महिला संगठनों की स्थापना व महिला शिक्षा पर जोर देने के बावजूद ग्रामीण स्त्रियों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है. गाँवों और कस्बों में आज भी औरतों को डायन कहकर मार दिया जाता है.

एक थी डायन…

राष्ट्रीय महिला आयोग के संकलित आंकड़ों के मुताबिक देश के लगभग 50 जिलों में ये प्रथा आज भी बड़े पैमाने पर पायी जाती है. डायन क़रार दी जाने वाली अधिकांश महिलाएं आदिवासी या दलित तबके से ताल्लुक रखतीं हैं और ज़्यादातर विधवा या बेसहारा होती हैं…

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश राज्य के सीतापुर जिले के कुसेपा दहेली गाँव में एक दम्पत्ति ने अपनी बच्ची  की बलि इसलिए दे डाली कि उनकी तमाम समस्याएं एक झटके में समाप्त हो जाएंगी.

डोंगा तामसी नामक महिला के भतीजे ने ही उसे डायन कह कर सर काट दिया. यह घटना 6 अप्रैल 2013,  झीकपानी थाना अंतर्गत नोवा गांव की है. झीकपानी थाना के थाना प्रभारी चक्रवर्ती राम ने बताया कि डोंगा तामसी को उसके भतीजे ने कुछ लोगों के साथ मिलकर तेज़ हथियार से उसका गर्दन काट दिया और शव को पास के जंगल में छुपा दिया था. खबर मिलने पर पुलिस ने सर कटे शव और अलग से सर को जंगल से बरामद किया.

7 अप्रैल 2013 को पश्चिम सिंहभूम के मझहारी थाना क्षेत्र में सिनी कुई नामक एक महिला को डायन बताकर उसके रिश्तेदारों ने उसे तब तक पिटते रहे जब तक कि उसने दम नहीं तोड़ा. हालांकि उक्त घटनाओं में पुलिस ने तो मामले दर्ज कर लिया है पर किसी के गिरफ्तारी अभी तक नहीं हुई है.

10 अप्रैल 2013 को पश्चिम सिहंभूम जिले के एक अन्य घटना में एक 55 वर्षीय महिला रजनीगंधा मुखी ने अंधविश्वास में वशीभूत एक देवी को खुश करने के लिए अपने पांव के नश को काट लिया और अस्पताल ले जाने के पहले ही उसकी जान निकल गयी.

देश के कोने-कोने से ऐसी हजारों अंधविश्वास भरी घटनाएं दिल को दहलाती रहती हैं. अभी पिछले दिनों ही यूपी के सोनभ्रद जिले में डायन होने के शक में एक महिला की जीभ काट दी गयी. डायन-बिसाही के आरोप में अमानवीयता की ख़बर झारखंड में आम है. कभी किसी महिला को डायन बताकर उसे मल खाने पर मजबूर किया जाता है तो कभी उसका यौन शोषण किया जाता है. झारखंड में डायन प्रथा का तांडव आज 21वीं शताब्दी में भी उसी तरह जारी है जैसे कि मध्यकालीन भारत में हुआ करता था.

झारखंड राज्य में डायन प्रथा का कहर का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि दो दशकों में लगभग 1200 महिलाओं को डायन कहकर मौत के घाट उतार दिया गया. इसके अतिरिक्त महिलाओं को डायन कहकर मलमूत्र पिलाना, पेड़ से बांधकर पीटा जाना, अर्द्धनग्न और कभी नग्न कर गांव के गलियों में घसीटा जाना आदि प्रताडि़त करने के कुछ तरीके है जो राज्य के ग्रामीण इलाकों मं  रोजमर्रा की घटनाएं हैं.

देश के तमाम राज्यों पर के कानून पर नज़र डालें तो झारखण्ड ही ऐसा एक राज्य है जहां साल 2001 से डायन प्रथा की रोकथाम के लिए कानून है. राजस्थान के महिला बाल विकास विभाग ने 2011 में ऐसा कानून प्रस्तावित किया है जिसके तहत महिला को डायन क़रार देने पर सात साल तक की सजा हो सकती है.

असम की अगर बात करें तो यहां अब उग्रवाद से कहीं ज़्यादा हत्याएं अंधविश्वास से हो रही हैं. राज्य की कांग्रेस सरकार स्वास्थ्य सेवा में आमूलचूल परिवर्तन का दावा करती है पर हक़ीक़त इससे कोसों दूर है. गांवों में आज भी बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं. छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में टोनही या डायन नाम का खौफ आज भी बरकरार है.

सिर्फ ग्रामीण क्षेत्र ही नहीं शहरी इलाकों में भी टोना-टोटका को लेकर आम लोगों के मन में संशय बना रहता है. टोना-टोटका जैसी सामाजिक कुरीति से निपटने के लिए इसके खिलाफ 2005 में टोनही निवारण कानून बनाया है. इस कानून के मुताबिक किसी महिला को टोनही बताकर प्रताड़ित करने वाले व्यक्ति को पांच से 10 साल तक की सजा हो सकती है और हत्या करने पर धारा 304 के तहत मुक़दमा भी चलाया जाता है. इसके बाद भी टोनही के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित किया जाना बदस्तूर जारी है.

अगर यह कहा जाए कि भारत में महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों की बढ़ोतरी की दर इतनी ज्यादा है कि इसने अन्य सभी अपराधों को पीछे छोड़ दिया है, तो यह कोई हैरानी की बात नहीं है. देश में डेमोक्रेसी के साथ सामाजिक मूल्यों के दोहरेपन का भी विकास हुआ है.

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ( एनसीआरबी ) के मुताबिक 1971 में देश में रेप के कुल 2043 केस दर्ज किए गए थे. वर्ष 2011 में ऐसे मामलों की संख्या 24 हजार को पार कर गई. सारे राज्यों के मुकाबले मध्य प्रदेश में रेप के सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए. महिलाओं के साथ सबसे ज्यादा अपराध सर्वाधिक साक्षरता वाले राज्य केरल में हो रहे हैं. इसके लिए सिर्फ लचर कानून व्यवस्था को दोषी ठहरना इस समस्या को सीमित ढंग से देखना है.

अगर कोई महिला अपने दफ्तर से देर रात घर जाते हुए महफूज़ नहीं है तो इसके लिए पुलिस तंत्र को कोसा जाता है. पर यदि दिनदहाड़े किसी महिला से सार्वजनिक जगह पर बदतमीजी होती है, तो यह सिर्फ कानून व्यवस्था का मामला नहीं है. इससे हमारे ही बीच मौजूद कुछ लोगों की विकृत सोच उजागर होती है. ऐसे लोगों की नजर में स्त्री सिर्फ उपभोग की वस्तु है. घर से बाहर पांव रख रही स्त्री उनके लिए आसान शिकार होती है. इधर देश में महिलाओं की सार्वजनिक मौजूदगी काफी ज्यादा बढ़ी है. यह सिर्फ महिलाओं का घर से बाहर आना मात्र नहीं है. बल्कि महिलाएं उन सभी क्षेत्रों में पुरुषों से आगे निकल रही हैं या उनसे बेहतर साबित हो रही हैं, जिनमें कभी मर्दों का दबदबा रहा है. घटिया मानसिकता वाले पुरुषों को स्त्री का यह दखल बर्दाश्त नहीं हो रहा है. इसीलिए कभी महिलाओं के कपड़ों को, तो कभी देर रात तक उनके घर से बाहर रहने को उनके साथ होने वाले अपराधों की वजह बताने की कोशिश की जाती है और नहीं तो उसे डायन कह कर मार दिया जाता है.

कितना अजीब है कि जब हम चांद पर पहुंच चुके हैं. अपने को 2020 तक विकसित देशों में शुमार करवाना चाहते हैं, फिर भी हमारे समाज की सोच ऐसी है कि कुछ कहा नहीं जा सकता. देश में बढ़ती महंगाई का ठिकरा भी इसी डायन कही जाने वाली औरतों के सर फोड़ दिया जाता है.

सखी सइयां तो खूब ही कमात है… महंगाई डायन खाए जात है… महंगाई भी साक्षात डायन ही बन गई… बैरन है निगोड़ी है दुखदायी है… सब कुछ है… तो अब स्वतः ही स्त्री से जुड़े भेदभाव और तिरस्कार भी उसी स्त्री रूपी डायन को ही झेलने पड़ेंगे. ये तो अब उसकी नियति है… आखिर हमारी यह सोच कब बदलेगी?

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