उदारवाद और धर्मनिरपेक्षता

Beyond Headlines
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Mohammad Asif Iqbal for BeyondHeadlines

वर्तमान दौर में दुनिया के विभिन्न देश दो बड़े विचारों के आक्रमण से पीड़ित हैं. इनमें एक उदारवाद है तो दूसरा धर्मनिरपेक्षता… ज़रूरत है कि विचारों के आक्रमण का हर स्तर पर मुकाबला किया जाए ताकि जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों, धर्म, नैतिकता, समाज, शिक्षा, रोज़गार और राजनीति इस मानसिक अशांति से निकल कर मनुष्य को वास्तविक जीवन का पालन करने में सहायक हों तथा पूंजीवादी उपनिवेशवाद “उग्रवाद” और “आतंकवाद” जैसे गलत नारों की आड़ में आज जो खुलकर मासूम इंसानों का बड़े पैमाने पर शोषण कर रहे हैं  उस पर काबू पाया जा सके.

हालांकि साम्यवाद और समाजवाद की हार हो गई है इसके बावजूद दोनों सिद्धांत अपने मूल के लिहाज से असल विचार नहीं हैं बल्कि उदारवाद और धर्मनिरपेक्षता के ही केवल द्वितीयक हैं. दुनिया का बड़ा क्षेत्र उदारवाद और धर्मनिरपेक्षता में बुरी तरह घिरा हुआ है. स्थिति यह है कि एक ओर देशों के अधिकांश शासक अपने हितों की खातिर पश्चिमी शक्तियों के सहायक हैं वहीं दूसरी ओर मुसलमानों का बहुमत उदारवाद और धर्मनिरपेक्षता को न समझने के कारण इस लड़ाई को एक गोमगो की स्थिति में देख रहा है.

Secularism

उदारवाद और धर्मनिरपेक्षता के अलमबरदार मुस्लिम देशों के नागरिकों को धोखे में रखे हुए हैं. ये लोग भगवान, दूत, कुरान और इस्लाम का नाम लेते हैं मगर व्यावहारिक जीवन में इस्लामी शिक्षाओं को लागू होने से बिदकते हैं. इन लोगों का कहना है कि एक आदमी एक समय में मुसलमान और धर्मनिरपेक्ष या उदार हो सकता है. वे राजनीतिक, साहित्यिक , पत्रकारिता और सांस्कृतिक क्षेत्रों में प्रभाव रखते हैं और मीडिया और सरकारी संसाधनों का उपयोग करते हुए खामोशी के साथ समाज के सभी क्षेत्रों से भगवान और धार्मिक शिक्षाओं को बेदखल करने के लिए प्रयासरत हैं.

धर्मनिरपेक्षता की संरचना के अनुरूप यह धर्मनिरपेक्ष शासक या ज्ञान पेशेवर मुसलमानों के विश्वास, पूजा के तरीकों का विरोध नहीं करते बल्कि खुद भी उन्हें धारण करके लोगों को अपने बारे में पक्के मुसलमान होने का विश्वास दिलाते हैं और जनता उनसे धोखा खा जाते हैं. इन परिस्थितियों में आवश्यक है कि उदारवाद और धर्मनिरपेक्षता को समझा जाए और उसके बुरे प्रभाव से स्वयं और दुनिया को बचाया जाए.

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