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इसे कमजोरी नहीं तो और क्या कहा जाए?

Puja Singh for BeyondHeadlines

बाईबल में एक कहानी है डेविड और गोलियथ की… डेविड एक कम उम्र का युवा था और गोलियथ शैतान के आकार का एक खूंखार आदमी. फिर भी डेविड ने अपनी सूझबूझ से विजय पाई. उसने गुलेल से ही गोलियथ के मस्तक पर पत्थर का वार किया, जिससे गोलियथ वहीं ढेर हो गया.

कहानी से हमें सबक मिलता है कि अगर हम अपनी बुद्धि का सही प्रयोग करें तो अपने से अधिक संपन्न शक्तिशाली देश पर विजय पा सकते हैं. हाल के इतिहास में वियतनाम इसका जीता-जागता उदाहरण है. छोटा सा देश, परंतु उसने चीन के आगे कभी सिर नहीं झुकाया. यहां तक कि अमेरिका को भी अपने छापामार युद्ध से परास्त किया.

दुर्भाग्य से भारत इन मापदंडों पर खरा नहीं उतरता. यहां संसद सदस्य राष्ट्रीय गीत का अपमान करते हैं. परंतु उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती. बहुत से लोग ऐसे हैं जो खुलेआम कहते हैं कि उनका धर्म सर्वोपरि है. देश उसके बाद आता है. पंथनिरपेक्षता का हमारे सामने एक विकृत और अपभ्रंश स्वरूप प्रस्तुत किया जाता है.

इसे कमजोरी नहीं तो और क्या कहा जाए

इसके अलावा हमारे नेताओं को देश के लोगों को जाति, धर्म या क्षेत्र के आधार पर बांटने में कोई संकोच नहीं होता है. इन सबका दुष्परिणाम देश की एकता और शक्ति पर पड़ता है. विशेषज्ञों के अनुसार किसी देश की शक्ति उसकी समग्र राष्ट्रीय शक्ति के आधार पर नापी जाति है. समग्र राष्ट्रीय शक्ति का तात्पर्य देश के विभिन्न क्षेत्रों में शक्तियों का जोड़ है. अर्थात् सैन्य शक्ति के अलावा देश की आर्थिक शक्ति, सामाजिक परिस्थितियां, राजनीतिक दूरदृष्टि, विदेश नीति आदि कितनी सकारात्मक और प्रभावी हैं. यह भी देखा जाता है कि भारत के एक थिंक टैंक ने इस मापदंड से विभिन्न देशों की शक्तियों का आकलन किया.

सबसे पहले नंबर पर अमेरिका आया और उसके बाद जर्मनी और जापान, चीन चौथे नंबर पर है. उसके बाद रूस पांचवें नंबर पर और भारत छठे स्थान पर. आकलन को यदि सही माना जाए तो चीन और भारत की समग्र राष्ट्रीय शक्ति में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है. परंतु इस विषय पर शोध करने वालों ने यह भी लिखा है कि शक्ति होना ही पर्याप्त नहीं है. शक्ति का प्रयोग करने का निश्चय और संकल्प भी होना चाहिए.

आपात स्थिति में हमारा नेतृत्व जिस कमजोरी का परिचय देता है उसे देखकर शर्म आती है. ऐसा नहीं कि हमारा नेतृत्व हमेशा से कमजोर रहा है. आजादी के ठीक बाद हैदराबाद राज्य के खिलाफ पुलिस कार्रवाई की गई. गोवा को भारत में मिलाने के लिए भी सैन्य शक्ति का प्रयोग किया गया. बांग्लादेश को आजाद कराने के लिए भी आक्रामक नीति अपनाई गई. अमेरिका ने अपना जहाजी बेड़ा भेजकर धमकाने की कोशिश की, परंतु भारत नहीं दबा.

पिछले करीब 25 वषरें से भारत कहीं भी सख्त कार्रवाई करने में पीछे हट जाता है. कंधार में आंतकवादियों के विरुद्ध हम जिस तरह झुक गए, उसे याद कर आज भी शर्म आती है. वर्तमान सरकार ने 26/11 के बाद पाकिस्तान के विरुद्ध सख्त रुख अपनाया था, परंतु धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य हो गया. यद्यपि पाकिस्तान ने मुंबई की घटना के अपराधियों और षड्यंत्रकारियों के विरुद्ध कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है. चीन ने अभी हाल में जब लद्दाख में अतिक्त्रमण किया उस समय भी हमने कमजोरी का परिचय दिया. चीनी सैनिक भारत की सीमा में 19 किलोमीटर घुस आए थे. हमारे विदेशमंत्री बीजिंग गए. परंतु उन्होंने इस विषय पर खुलकर बात करने की आवश्कता नहीं समझी. हां, बीजिंग शहर उन्हें कितना पसंद आया, इसका जिक्र उन्होंने जरूर किया. और कहा कि वह बीजिंग में रहना पसंद करेंगे.

यह सही है कि चीनी सेना देपसांग घाटी से चली गई. परंतु उन्हें क्या आश्वासन दिया गया. इसके बारे में सरकार ने खुलकर तथ्य नहीं बताए हैं. कुछ लोगों का यह भी कहना है कि हमने उस क्षेत्र से अपनी सेना हटाकर उसे विवादग्रस्त मान लिया है. यानी चीन के अपनी सीमा में 19 किलोमीटर तक अतिक्रमण को हमने अवैध नहीं क़रार दिया. इसे कमजोरी नहीं तो और क्या कहा जाए?

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