Abhishek Upadhyay for BeyondHeadlines
नक्सल इस देश के लिए खतरा है. बिल्कुल ठीक है. मगर अपने मुनाफे की चक्की में आदिवासी इलाकों का शरीर पीसकर खून तक निचोड़ ले रहे टाटा, एस्सार और जिंदल क्या हैं?
एक खतरे को गोली नसीब होगी और दूसरे खतरे को 7 आरसीआर के प्रधानमंत्री निवास में शाही मेहमान नवाजी… और नक्सलों का भी असली चेहरा देखिए. इनकी गोलियां कभी किसी कार्पोरेट घराने पर नहीं चलेंगी… नक्सली इलाकों में सब जानते हैं ये हकीक़त…
“कार्पोरेट चढ़ावा” लेकर क्रांति हो रही है इन जंगलों में… एस्सार के अधिकारी तो नक्सलियों को चढ़ावा देने की एवज में जेल की हवा तक खा चुके हैं… अफसोस सिर्फ इस बात का है कि इस लड़ाई में बुरी तरह मारे जा रहे हैं गरीब आदिवासी… नक्सली भी उन्हीं पर अपनी ताक़त आज़मा लेते हैं और सुरक्षा बलों के अधिकारियों को जब भी “टारगेट” पूरा करना होता है… इन्हीं आदिवासियों को एक तरफ से लिटाकर शुरु हो जाते हैं…
और दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में बैठे हमारे जैसे बुद्धिजीवी भी पेट भर खा चुकने के बाद नक्सलियों के नाम पर इन्हीं गरीब आदिवासियों को खत्म कर देने का सिंहनाद करते दिखाई देते हैं… ऐसे में अगर गोरख पांडेय ये लिखते हैं… तो इसमें गलत क्या है…
हजार साल पुराना है उनका गुस्सा
हजार साल पुरानी है उनकी नफ़रत
मैं तो सिर्फ
उनके बिखरे हुए शब्दों को
लय और तुक के साथ
लौटा रहा हूं
तुम्हें डर है कि मैं
आग भड़का रहा हूं…