Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
भारत एक लोक कल्याणकारी राज्य है. यहाँ के सभी नागरिकों को स्वतंत्रता पूर्वक जीने का अधिकार मिला हुआ है. लेकिन धीरे-धीरे ऐसे हालात बनते जा रहे हैं जिसके कारण जनसमूह का प्रतीक भारत राष्ट्र भी बीमार होता जा रहा है. पिछले दिनों रिसर्च एजेंसी अर्नेस्ट एंड यंग व भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) की ओर से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित खर्च के कारण भारत की आबादी का लगभग 3 फीसदी हिस्सा हर साल गरीबी रेखा के नीचे फिसल जाता है. यानी प्रत्येक साल तीन करोड़ साठ लाख लोगों को बीमार स्वास्थ्य सुविधाएं गरीब बना रही है.
लेकिन बीमार देश के सेहत को सुधारने के लिए बनाये गये स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रायल के ‘आज़ाद’ बाबूओं को इन आंकड़ों से कोई फर्क नहीं पड़ता. वो तो अपने दफ्तरों में चाय की चुस्कियां लेने में मस्त हैं.
BeyondHeadlines द्वारा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रायल में दायर की गई आरटीआई से खुलासा हुआ है कि मंत्रालय के सिर्फ CC&P सेक्शन के बाबू रोजाना लगभग दस हजार रुपये का सिर्फ चाय नाश्ता ही खा जाते हैं.
BeyondHeadlines ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रायल में आरटीआई दाखिल कर ऑफिस में खर्च का ब्यौरा मांगा था जिसमें चाय-नाश्ते पर होने वाले खर्च भी शामिल था. मंत्रालय ने हमारे सूचना के अधिकार के आवेदन को सभी विभागों में भेज दिया. मंत्रालय के अधीन आने वाले तमाम विभागों में से सिर्फ CC&P सेक्शन ने ही हमारी आरटीआई का जवाब देते हुए बताया कि पिछले पांच साल में 92 लाख 47 हजार 623 रुपये इस CC&P सेक्शन में चाय नाश्ते पर खर्च हुए. अकेले साल 2012-2013 में 22 लाख 58 हजार 369 रुपये चाय नाश्ते पर खर्च हुए. अगर रोजाना का हिसाब लगाया जाए तो साल में 365 दिन होते हैं, और वित्तीय वर्ष 2012-13 में 104 शनिवार व रविवार पड़े हैं, साथ ही साथ लगभग 33 महत्वपूर्ण छुट्टियां पड़ी हैं. यानी लगभग 137 दिन ऑफिस बंद रहा है (यह दिन अधिक भी हो सकता है) और 228 दिन ही ऑफिस में काम हो पाया. इस प्रकार देखा जाए तो इस सेक्शन में रोज़ लगभग दस हजार रुपये का चाय-नाश्ता बाबू खा गये.
अब सवाल यह है कि जब गुलाम नबी आज़ाद जब विदेश यात्राओं व कश्मीर की राजनीति में बिजी हों और बाबू चाय की चुस्कियां लेने में तो देश के बीमारों के हितों का ख्याल कौन रखेगा? ज़रा एक बार फिर सोचिये कि जिस दफ्तर के चाय नाश्ते का रोजाना का खर्च दस हजार रुपये हो, उसका कुल खर्च कितना होगा?
गौरतलब है कि आजादी के बाद से अभी तक के आंकड़े बताते हैं कि भारत अपने स्वास्थ्य नीति को लेकर कभी भी गंभीर नहीं रहा है. ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत अपने सकल घरेलु उत्पाद का लगभग 1 प्रतिशत राशि ही स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करता है. भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में स्वास्थ्य सेवाओं पर इतना कम खर्च राष्ट्र को स्वस्थ रखने के लिए किसी भी रूप में पर्याप्त नहीं कहा जा सकता है. वह भी जब उसका ज्यादातर पैसा विज्ञापन व बाबूओं की खातिरदारी में खर्च हो जाता हो.
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