Sayed Parwez for BeyondHeadlines
अगर आपको पलवल गाजियाबाद लोकल शटल में सफर करने का मौका मिले तो आप शटल में भजन कीर्तन मण्डली मायक लाउडस्पीकर, लेकर भजन कीर्तन करते देख सकते हैं. यह भजन कीर्तन के इतने शैकिन होते हैं कि मायक, बैटरी, छुनछुना इत्यादि सामग्री हर रोज़ इनमें से एक आदमी लेकर आता है.
शुरू-शुरू में मुझे यह देख कर अच्छा लगा कि आज के भागमभाग जिन्दगीं में हमारी पुरानी परम्परा दिखाई देती है. पहले लोग गॉंवों में पेड़ के नीचे गाया करते थे. दोपहर का समय हो, तो गीत सुनने वालों की संख्या में चारवाहें ज्यादा होते थे. या आस-पास के किसान समूह…
ट्रेन में भक्ति भाव देखकर लगा कि इनके बाद की पीढ़ी भक्ति करें या ना करें. यह प्रश्न पैदा होता है. खैर अब मैं नियमित तुग़लकाबाद से गाजियाबाद वाली शटल पकड़ने लगा. क्योंकि मुझे साहिबाबाद जाना होता था. हर रोज़ से मुझे यह अनुभव होने लगा कि यह भजन कीर्तन मण्डली कोई आन्तरिक भक्ति नहीं कर रहे हैं. जिस डिब्बे और जिस सीटों पर बैठकर यह भजन कीर्तन करते हैं. वहां कोई और बैठ जाए तो उसे अभद्र व्यवहार भी सहन करना पड़ सकता है.
इसी प्रकार की भक्ति मैंने एक मस्जिद के मौलवी को ग्रंथ पढ़ते देखा. मौलवी मस्जिद में ही किसी काम से अपने मीनार वाले कमरे में चला गया. वहीं पर एक युवक भी नमाज़ पढ़ने आया. उसने पुरानी शैली वाली मीनार को अन्दर से झॉंक कर देखा. युवक इस बात से अंजान था कि यहां कोई रहता भी है. युवक तो मीनार को देख कर ही आश्चर्य चकित था. मौलवी ने उसे देखा और क्या-क्या कहा. अरे हरामी, कमीने इत्यादि अपशब्द कहे…
क्या यहाँ एक और प्रश्न पैदा होता है कि हम किस प्रकार की भक्ति कर रहें हैं… या दिखावा… हम ग्रंथ तो पढ़ते हैं, लेकिन उसे आत्मसात नहीं कर रहें हैं.
इसी तरह गाजियाबाद के एक गऊशाला में देखने को मिला. मैं और मेरा मित्र परविन्द्र सिंह राणा… हम जब गाजियाबाद जाते, तो अकसर गऊशाला में चले जाते. एक दिन गऊशाला के पुजारी ने हम से कहा. भाई साहब कहीं भी सरकारी ज़मीन मिले तो उसे गऊशाला बना देते हैं. आज ही मैंने कई गायों को बचा कर लाया हूँ. बाद में हमें पता चला कि उसने जहां अपनी गऊशाला बना रखी है. वह भी सरकारी जमीन पर है.
हम देखते हैं कि देश में धर्म जाति के नाम पर ऐसे बहुत से शख्स हैं, जो अपनी रोटी सेक रहे हैं. खैर प्रश्न उठता है कि आखिर हम किसकों यह भक्ति भाव दिखा रहें हैं. मैंने यह अनुभव किया जो ट्रेन में भजन कीर्तन हो रहा हैं. यह लोग भजन के महत्व को ही नहीं जानते. वह शराब और नशे की हालत में दिखाई दिए. कुछ भजन कीर्तन मण्डली किसी राजनीतिक दल के साम्प्रदायिकता फैलाऊ ढ़ंग में दिखा.
कोई देश की एकता की बात करते दिखा. पर इनकी बातों में एकता दिखाई नहीं दी. इनकी बातों से बू आती है, क्षेत्रवाद, भाषावाद, जातिवाद और साम्प्रदायिकता की.
एक सज्जन मुझे ऐसे भी मिले जो दिल्ली की बसों गीत गाते हैं. गीत गाना उनका शौक है. स्वर्गीय किशोर कुमार के गीत उनकी जुबान पर रटे हुए हैं और वह उतने ही लय सुर से वह गाते हैं. इस शख्स का नाम है सुरेन्द्र आनन्द… यह दिल्ली के जिस रूट पर जाता है. उसी रूट पर अपने स्टाइल से गाता है. जब दिन भर काम के दबाव से और थके हारे लोग, जब अपने घर जा रहे होते हैं. तब सुरेन्द्र आनन्द की आवाज़ को आप दिल्ली परिवहन निगम की बस नः 764 में सुन सकते हैं.
इसकी बातों में जिन्दादिली दिखती हैं. इसके गीतों में भारत की एकता और अखण्डता दिखती है. इसके गीतों में क्षेत्रवाद,जातिवाद,भाषावाद और साम्प्रदायिकता की बू नहीं आती. शुरूआती दौर में मुझे ट्रेन मण्डली वाले नज़र आया. पर बात करके अनुभव हुआ कि यह शख्स लोगों को जिन्दादिली सीखाना चाहता है. खैर देखना है कि यह लोगों को अपना काम करते हुए कितना खुश रख पाते हैं या किसी साम्प्रदायिकता फैलाऊ टीम में सम्मिलित हो जाते हैं.