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Reading: आतंकवादी… या फिर स्पेशल सेल के शिकार?
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BeyondHeadlines > Exclusive > आतंकवादी… या फिर स्पेशल सेल के शिकार?
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आतंकवादी… या फिर स्पेशल सेल के शिकार?

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published May 18, 2013
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9 Min Read
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आख़िर क्या है दिल्ली पुलिस के इस खामोशी का राज…?

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

आतंकवाद ‘सरकारी खेती’ होता जा रहा है. जिसका भी जी चाहता है, वो आतंकवाद के नाम पर ‘निजी फायदे’ की ज़मीन तलाशना शुरू कर देता है. पर आखिर ये आतंकवादी कौन है? कहां रहता है? इनके नाम क्या हैं? परिचय क्या है? ये बातें क्यूं नहीं ज़ाहिर की जाती हैं? इन्हें छिपाने का मक़सद क्या है? क्या मक़सद परदे की आड़ में और बेगुनाहों की ज़िन्दगी की क़ीमत पर सियासी फायदा लेने का है? क्या बेकसूरों को जीते जी मौत का ज़हर पिला कर सरकारी मेडल या वीरता पुरस्कार हासिल करने का है! प्रमोशन पक्का करने का है! आख़िर आतंकवाद के सवाल पर दिल्ली पुलिस को काठ क्यों मार जाता है. उसकी बोलती क्यों बंद हो जाती है. देश की राजधानी दिल्ली से अलग-अलग थानों से आरटीआई  से मिली जानकारी इसी बात की पुष्टि कर रही है.

आरटीआई से हासिल दस्तावेज़ों में दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल को छोड़कर बाकी सारे पुलिस कमिश्नरों का कहना है कि उनके पास दिल्ली में आतंकवाद से संबंधित कोई रिपोर्ट, कोई साइंटिफिक रिसर्च, कोई डाटा, कोई मेमो, किसी विभाग से कोई पत्राचार या कोई रिकार्ड्स नहीं है. जबकि स्पेशल सेल के कमिश्नर का कहना है कि हम यह आरटीआई की धारा-8 (1) (g) और (h) के तहत नहीं दे सकते.

स्षष्ट रहे कि आरटीआई की धारा 8 (1) (g) यह कहती है कि वैसी सूचनाएं नहीं दी जा सकती हैं जिससे किसी के जान को खतरा हो, वहीं धारा-8 (1) (h) यह कहती है कि वैसी सूचनाएं नहीं मिलेगी, जिससे जांच की प्रक्रिया में रूकावट आए. यह जानकारी वेल्फेयर पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. क़ासिम रसूल इलियास को आरटीआई के माध्यम से मिली है.

आतंकवादी... या फिर स्पेशल सेल के शिकार?

आरटीआई एक्टविस्ट व वेल्फेयर पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. क़ासिम रसूल इलियास कहते हैं कि आतंकवाद के नाम पर पिछले कई सालों से जो खिलवाड़ हो रहा है, उसे सिवाए ‘स्टेट टेररिज़्म’ के और कोई नाम नहीं दिया जा सकता. अदालतें देर से ही सही, आतंकवाद के मामले में गिरफ्तार लोगों की बेगुनाही पर मुहर लगाती जा रही हैं, लेकिन इससे न तो पुलिस के रवैये में कोई तब्दीली आई है और न ही सरकार इसको लेकर गंभीर है.

आरटीआई  के तहत साउथ डिस्ट्रीक, नई दिल्ली से मिली जानकारी के मुताबकि पिछले 10 सालों में 6 लोगों को आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तार किया गया है. जबकि इस ज़िले में पिछले 10 सालों में 64 लोग आतंकी घटनाओं में मारे गए हैं. इस ज़िला के हॉज़खास थाने में मकोका क़ानून के तहत पिछले 10 सालों में दो लोग यानी शिव मूरत द्विवेदी उर्फ शिवा और प्रवीण कुमार की गिरफ्तारी हुई है.

इसी ज़िला के वसंत विहार में मकोका के तहत 11 लोगों की गिरफ्तारी हुई है, जिनमें रवि कपूर, अजय सेठी, अजय कुमार, अमित शुक्ला, बलजीत सिंह, मो. इरफान, रफ़ीक़, बलदेव राज, शहाबुद्दीन, पारस, मुनेश के नाम शामिल हैं. वहीं साउथ डिस्ट्रीक का यह भी कहना है कि पिछले दस सालों में लशकर-ए-तैय्यबा के तीन लोगों की गिरफ्तारी हुई है और यह तीनों जम्मू-कश्मीर के हैं. इसके अलावा पुलिस को लशकर-ए-तैय्यबा के 6 लोगों की तलाश है और यह सारे पाकिस्तान के हैं, इनमें से एक मारा भी जा चुका है.

मालवीय नगर पुलिस स्टेशन में भी आतंकवाद के नाम पर एक्सप्लोसिव एक्ट के तहत दो मामले फरवरी, 2008 और मई, 2008 में दर्ज है. और इत्तेफाक यह है कि इन दोनों मामलों में तीनों आरोपी एक ही हैं और तीनों फिलहाल बरी हो चुके हैं. यही नहीं, इन्हीं तीनों आरोपियों का नाम हौज खास पुलिस स्टेशन में भी 16 जनवरी, 2008 का एक एफआईआर में दर्ज है. और 02 सितम्बर, 2009 को इन्हें बरी किया जा चुका है. इसी थाने में मकोका के तहत भी 3 लोगों यानी अमन कुमार, पवन कुमार व मो. इस्तेयाक की गिरफ्तारी हुई है.

सेन्ट्रल डिस्ट्रीक से मिली जानकारी के मुताबिक इस ज़िले में पिछले दस सालों में इंडियन मुजाहिदीन से जुड़े 11 लोगों की गिरप्तारी हुई है. इसके साथ ही मकोका के तहत भी पिछले दस सालों में 15 लोगों की गिरफ्तारी हुई है. इसके अलावा पिछले दस सालों में 11 कश्मीरी नौजवानों को भी गिरफ्तार किया गया है.

वेस्ट डिस्ट्रीक से मिली सूचना के मुताबिक इस ज़िला में 04 लोगों को पोटा/टाडा/मकोका के तहत गिरप्तार किया गया है, जिनका नाम देने से एडिश्नल डिप्टी कमिश्नर देवेन्द्र आर्य ने आरटीआई की धारा-8 (1) (j) और (g) के तहत मना कर दिया है.

नई दिल्ली डिस्ट्रीक से मिली जानकारी के मुताबिक 10 लोगों की गिरफ्तारी आतंकवाद के नाम पर की गई है. वहीं नॉर्थ इस्ट डिस्ट्रीक बताती है कि मकोका के तहत 9 लोग और टाडा के तहत 7 लोगों की गिरफ्तारी हुई है.

नॉर्थ वेस्ट डिस्ट्रीक का कहना है कि आतंकवाद के नाम पर सिर्फ एक व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई है, जिसका नाम उन्होंने आरटीआई की धारा-8 (1) (h) के तहत देने से मना कर दिया है.  इसके साथ ही इस ज़िले ने यह भी बताया है कि इस ज़िले में 17 लोगों की गिरफ्तारी मकोका के तहत हुई है और इनके नाम भी आरटीआई की धारा-8 (1) (h) के तहत देने से मना कर दिया गया है.

द्वारका से मिली जानकारी के मुताबिक कापसहेड़ा पुलिस स्टेशन में 02 जुलाई 2005 को एक मामला दर्ज किया गया था. जिसमें 7 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी और यह सातों लोग 6 साल जेल में रहने के बाद 02 फरवरी 2011 को अदालत के आदेश से बाइज़्ज़त बरी हो गए.

दिल्ली के डिफेंस कॉलोनी थाने ने मकोका के तहत 15  लोगों की गिरफ्तारी की है. क्राईम ब्रांच, चाणक्यपूरी ने बताया है कि उन्होंने आतंकवाद के नाम पर अब तक 5 लोगों की गिरफ्तारी की है, जिसमें जगतार सिंह, जसपाल सिंह, विकास सहगल, दिलबाग सिंह और सुरेन्द्र सिंह के नाम शामिल हैं.

अगर बात एनकाउंटर की करें तो डिफेंस कॉलोनी थाने ने जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के गेट के करीब 08 मई, 2006 को एनकाउंटर किया था, जिसमें पुलिस ने मो. इक़बाल उर्फ हमज़ा, पाकिस्तानी नागरिक को मार गिराने का दावा किया. वेस्ट डिस्ट्रीक ने आरटीआई के जवाब में बताया है कि 05 मार्च, 2005 को द्वारका के सूरज विहार इलाके में एक एनकाउंटर किया था. कितने लोग मारे गए इसकी जानकारी उन्होंने नहीं दी है.

वहीं द्वारका के असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर ने बताया है कि 16 अगस्त, 2004 को द्वारका के सेक्टर-6 में स्पेशल सेल की मदद से आबिद उर्फ विक्की को मार गिराया था. नज़फगढ़, साउथ वेस्ट सब डिवीज़न के एसीपी नारायण ने बताया है कि 22 मई, 2003 को दिनपूर गांव में एक एनकाउंटर में अब्दुल अज़ीज़ उर्फ अमित को मार गिराया गया जो कि पाकिस्तानी नागरिक था. नई दिल्ली डिस्ट्रीक के एडिश्नल डिप्टी कमिश्नर संजय त्यागी ने बताया है कि 26 अप्रैल, 2005 को नेशनल साइंस सेन्टर के पीछे लिंक रोड पर दो अनाम आतंकियों को मार गिराया गया था.

क्राईम ब्रांच, चाणक्यपूरी ने स्पेशल सेल की मदद से 19 सितम्बर, 2008 को बटला हाउस में एनकाउंटर किया था, जिसमें दो बेगुनाह मारे गए थे. उसके बाद से एक भी एनकाउंटर इस राजधानी दिल्ली में आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक नहीं हुआ है.

दिल्ली पुलिस की यह रहस्यमय चुप्पी और परदे के पीछे का खेल उनके इरादों पर कई गंभीर सवाल खड़े करती है. यह सवाल बेगुनाहों की जान से जुड़े हैं और ऐसे में इन्हें टालने की कोशिश संविधान और न्याय दोनों के खिलाफ किसी विश्वासघात से कम नहीं है.

TAGGED:hindu terrorismterrorismterroristTerrorist ... Or the Special Cell of the hunt?
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