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क्या लिखते हैं सरबजीत की मौत पर उर्दू अखबार…???

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

पाकिस्तान में सरबजीत की मौत पर अब सियासत भी शुरू हो चुकी है.  लेकिन भारत की आम जनता में  काफी ग़म व गुस्सा है. आज का सारा अखबार सरबजीत के कारनामें व उसके जीवन व मौत की कहानियों से भरा पड़ा है. बाकी अखबारों की तरह उर्दू अखबारों में भी सरबजीत सिंह की मौत की खबर को काफी प्रमुखता से जगह दी गई है. सिर्फ खबर ही नहीं, बल्कि सारे उर्द अखबारों में इस पर संपाकदीय भी लिखे गए हैं.

जागरण ग्रुप का दैनिक उर्दू अखबार ‘इंक़लाब’ लिखता है कि “28 अगस्त, 1990 को पाकिस्तानी पुलिस ने सरहद के करीब के इलाके से सरबजीत सिंह को नशे की हालत में टहलते हुए गिरफ्तार किया. पहले तो पाकिस्तानी पुलिस ने इसे हिन्दुस्तानी जासूस क़रार दिया लेकिन बाद में इसको 1990 में इस्लामाबाद और लाहौर में होने वाले चार बम धमाकों से जोड़ दिया. हालांकि पाकिस्तानी पुलिस के पास कोई सबूत नहीं था, सिर्फ सरबजीत के खुद के इक़बालिया बयान को सबूत माना गया. हालांकि हमसब जानते हैं कि पुलिस वाले इक़बालिया बयान किस तरह से हासिल करते हैं.”

‘इंक़लाब’ आगे लिखता है कि “पाकिस्तान के इंतहा-पसंदों ने सरबजात के क़त्ल का प्रोग्राम उसी अंदाज़ में बनाया जिस तरह हिन्दुस्तान के कुछ इंतहा-पसंदों ने पुणे के यरवदा जेल में दहशतगर्दी के इल्ज़ाम में बंद कतील सिद्दिकी का क़त्ल किया था.  सरबजीत के मौत के बाद सभी पार्टियां हंगामा कर रही हैं, उनसे यही सवाल है कि अगर सरबजीत बेकसूर था तो उन्होंने अपने दौर-ए-हुकूमत में उसकी रिहाई के लिए क्या किया? ”आखिर में अखबार लिखता है कि “हमें सरबजीत के पूरे खानदान से हमदर्दी है और हम यही चाहते हैं कि आइन्दा कोई क़ैदी किसी जेल में इस तरह से क़त्ल न किया जाए जैसे सरबजीत सिंह व कतील सिद्दीकी किए गए.”

urdu media after sarabjit death

‘राष्ट्रीय सहारा उर्दू’ इस विषय पर अपने एक लेख “सरबजीत और क़तील : जान तो जान है” में असफर फरीदी एक स्थान पर लिखते हैं कि पिछले साल जेल में कैद कतील सिद्दीकी के क़त्ल के बाद अघर पूरा हिन्दुस्तान एक साथ मिलकर इसका विरोध किया जाता तो शायद पाकिस्तान में खतरनाक से खतरनाक मुजरिम को भी कातिलाना हमले करने को किसी की हिम्मत नहीं होती. हम अपने यहां जब अपने शहरियों के साथ इंसाफ नहीं कर पाते तो फिर दूसरे शहरियों से इंसाफ की उम्मीद कैसे की जा सकती है? जब तक हमारी अपनी रविश में तब्दीली नहीं आएगी तब तक न जाने कितने ही सरबजीत कातिलाना हमलों के शिकार होते रहेंगे.

‘हिन्दुस्तान एक्सप्रेस’ अपना संपाकदीय इसी सवाल से शुरू किया है कि “क्या सरबजीत सिंह की मौत हिन्द-पाक के दरम्यान नफ़रत की एक नई दिवार तो नहीं खड़ा कर देगी.?” आगे अखबार लिखता है कि “यह सिर्फ सरबजीत की मौत नहीं, बल्कि इंसानियत की मौत है.”

 ‘सहाफत’ अपने संपाकदीय में लिखता है कि “अपने भाई को रिहा कराने की जो कोशिश दलबीर कौर ने की वो ऐतिहासिक हैसियत की हामिल है. उन्होंने कोई ऐसी जगह न छोड़ी जहां उनको उम्मीद थी कि वो अपने भाई को छुड़ा सकेंगी. एक भाई के लिए एक बहन की यह अनथक जद्दोजहद सुनहरे अक्षरों में लिखे जाने के क़ाबिल है.”

जेल से रिहा होने के बाद मोहमम्द अहमद क़ाज़मी द्वारा शुर किया गया अखबार ‘क़ौमी सलामती’ भी अपने संपादकीय में लिखता है कि“….कहा जा रहा है कि सरबजीत ने दहशत गर्दाना हमले में शामिल होने का इक़बालिया बयान दिया था, इसलिए उसे सज़ा-ए-मौत मिली थी, लेकिन कौन नहीं जानता कि हिन्दुस्तान हो या पाकिस्तान यहां इक़बालिया बयान किस तरह से लिया जाता है. सरबजीत क्या वाक़ई गुनाहगार था या फिर वो दोनों देशों के उस जुनूनी तबके के नफ़रतों का भेंट चढ़ गया जो आपसी रिश्तों, दोस्ती और भाईचारे की राह में हमेशा हायल होते रहे हैं.” आगे अखबार लिखता है कि “… सरबजीत वापस आ रहा है, लेकिन मुल्क से रिहाई के बाद नहीं बल्कि ज़िन्दगी से रिहाई के बाद मौत को गले लगा कर अपनी मिट्टी में मिलने आ रहा है. दर्दमंदी, इंसानियत और अहसास अगर दोनों मुल्कों में परवान चढ़ जाए तो बहुत से बेगुनाह सियासत की भेंट चढ़ने से बच सकते हैं.”

इस बीच एक खबर यह भी है कि पाकिस्तान ने सरबजीत पर हमले की ज्यूडिशियल एन्क्वायरी के आदेश दे दिए हैं, ऐसे में कितना बेहतर होता है कि भारत सरकार भी कतील सिद्दीकी के मौत की ज्यूडिशियल एन्क्वायरी कराने का आदेश जारी करते….

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