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BeyondHeadlines > Entertainment > हंसने-हंसाने से भला क्या परहेज़?
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हंसने-हंसाने से भला क्या परहेज़?

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published May 14, 2013 1 View
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Hema for BeyondHeadlines

‘लड़कियों के बस दो ही काम हैं- एक रोना और दूसरा रुलाने वाले सास-बहू के सीरियल देखना. वह न तो हंस सकती हैं और न हंसा सकती हैं.’ कुछ समय पहले तक अधिकतर पुरुषों की यही मानसिकता थी, यही माना जाता था कि कॉमेडी और महिलाओं का कोई रिश्ता नहीं है. लेकिन अन्य क्षेत्रों में अपना लोहा मनवाने के साथ महिलाओं ने कॉमेडी में भी धावा बोल दिया है.

‘द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज’ के दो भाग गुज़र जाने तक पुरुष निश्चिंत होकर बैठे थे. उन्हें लग रहा था कि कम से कम एक क्षेत्र तो है, जहां महिलाएं उनके सामने प्रतिद्वंदी नहीं. लेकिन ‘कॉमेडी की महारानी’ आरती कांडपाल ने स्टैंड-अप-कॉमेडी में महिलाओं का श्रीगणेश कर पुरुषों के लिए कॉमेडी में भी प्रतिस्पर्धा बढ़ा दी. आसती कांडपाल के बाद हमारी प्यारी लल्ली यानी भारती सिंह, सुगंधा मिश्रा और नन्ही सलोनी ने भी हंसी के फव्वारे में सभी को भिगो दिया.

What the problem in laughing?

भारती सिंह मानती हैं कि कॉमेडी में केवल लड़कों का राज नहीं है- ‘लोगों की सोच है कि कॉमेडी केवल लड़के कर सकते हैं जो कि बिल्कुल गलत है, यदि मेरी भी यही सोच रहती तो आज मैं न इस मुकाम पर होती और न ही मुझे कोई अवार्ड मिलता.’

अधिकतर लोगों का मानना है कि हास्य कलाकारों में महिलाओं की कमी का एक कारण भारतीय संस्कृति है, प्रसिद्ध हास्य कवि अशोक चक्रधर के अनुसार- ‘भारतीय संस्कृति की बनावट ही ऐसी है कि महिलाओं को हास्य कलाकारों के रूप में नहीं अपनाया जा सका है, इसके साथ ही जिस तरह पुरुष बिना झिझके द्विअर्थी और अश्लील बातें कह जाते हैं, महिलाएं ऐसा नहीं कर पाती हैं.’

इससे सिद्ध होता है कि हमारा सामाजिक ढांचा ही महिलाओं के हास्य कलाकार बनने में एक बाधा है. हास्य कवयित्री डॉक्टर सरोजनी प्रीतम और हास्य कलाकार भारती सिंह दोनों को समाज से जूझना पड़ा डॉक्टर प्रीतम का कहना है- ‘मैं एक एकल महिला हूं, घर गृहस्थी के बंधन से मैं मुक्त हूं, इसलिए मेरा हास्य-व्यंग्य पनप सका. स्थितियों के प्रहार भी मुझ पर हुए लेकिन इन प्रहारों को ही सहकर-पचाकर मैंने उन्हें ही हास्य-व्यंग्य के सांचे में ढाल कर शब्द दे दिए.’

डॉक्टर प्रीतम की बातों से इत्तेफाक रखते हुए ही ऑरोबिन्दो कॉलेज की अध्यापिका मेधा पुष्कर का कहना है- ‘लड़कियों को बचपन से ही यही शिक्षा दी जाती है कि उन्हें अधिक जोर से हंसना नहीं चाहिए, शांत और शालीन बने रहना चाहिए. इसके साथ-साथ हास्य में लड़कियों की कमी एक कारण यह है कि ऐसे मजाकों का केन्द्र बिंदु महिलाएं ही होती हैं. हास्य में द्विअर्थी और अश्लील भाषा के कारण ही कई महिलाएं हास्य से परहेज करती आई हैं.’

कवयित्री डॉक्टर मंजुला शर्मा नौटियाल के अनुसार- ‘अधिकतर महिलाओं के हास्य कवि सम्मेलन से परहेज करने का कारण यह है कि महिलाएं अपने सम्मान को नहीं खोना चाहतीं और न ही पुरुषों की भांति बेधड़क फूहड़ बातें करना पसंद करती हैं.’

कुछ महिलाएं चुप रहना या ऐसे सम्मेलनों से दूर रहने में ही भलाई समझती हैं तो कुछ प्रति उत्तर देना ज़रूरी समझती हैं. ऐसी ही महिलाओं में छत्तीसगढ़ की कवयित्री डॉक्टर निरूपमा शर्मा हैं. डॉक्टर निरूपमा को मंच पर लाने वाली उनकी पहली कविता ‘बाबू लड़ेगा रे’ कवि रामेश्वर वैष्णव की कविता ‘मोनी बेंद्री’ का ही प्रति उत्तर थी. निरूपमा शर्मा के कॉलेज के दिनों में आकाशवाणी के कवि सम्मेलन में रामेश्वर वैष्णव की कविता ‘मोनी बेंद्री’ के कुछ शब्द पसंद न आने के आक्रोश में ही निरूपमा ने ‘बाबू लड़ेगा रे’ की रचना की थी.

डॉक्टर सरोजनी प्रीतम भी इस बात से सहमति जताते हुए कहती हैं, ‘महिलाओं को जो चांटा समाज लगा रहा है उसी को उल्टी चपत लगाने का विनम्र प्रयास महिलाओं का हास्य है, क्योंकि यह प्रहारात्मक नहीं होता तो लोग उसे हंसकर झेल भी लेते हैं और बाद में उन्हें पता लगता है तो अपने गाल को सहला लेते हैं, लेकिन पुरुष यह कतई सहन नहीं कर पाते कि महिलाएं उनका मजाक उड़ाएं. बीबीसी के एक प्रोग्राम के दौरान मैंने उनसे सवाल किया था कि आपके यहां तो इतना खुला माहौल है तो यहां कोई हास्य-व्यंग्य की कवयित्री क्यों नहीं है, तब उनका जवाब था कि क्या आप चाहती हैं कि महिलाएं हमारा (पुरुषों का) मजाक उड़ाएं.’

बदलते समय के साथ महिला और पुरुष दोनों की सोच-समझ में बदलाव आ रहा है. मनोवैज्ञानिक चिकित्सक संजीव त्यागी के अनुसार- ‘पहले महिलाओं के ऊपर कई तरह के दबाव होते थे. उनके भाई, पति, माता-पिता को उनका कॉमेडी करना पसंद नहीं आता था, लेकिन वक्त के साथ महिलाओं ने खुद को इन सारी बातों से मुक्त किया है, अब वह किसी तरह के दबाव में नहीं रहती हैं, महिलाएं अब अधिक परिपक्व हो गई हैं.’

हंसी-मजाक का अर्थ केवल द्विअर्थी भाषा या फूहड़पन नहीं है. भारती सिंह के शब्दों में- ‘हमारे आस-पास की दुनिया में ही हंसी-मजाक के कई रंग हैं. ऑफिस, घर, सड़क हर जगह हंसी के स्रोत हैं. मेरी पात्र लल्ली और कोई नहीं मेरे ही बचपन का जीवन है. उसमें मैंने अपने आस-पास के परिवेश को ही हास्य में बदला है न कि किसी फूहड़पन को.’

महिला और पुरुषों की इस नोक-झोंक में भी समय के साथ परिवर्तन आया है. आज के युवाओं की सोच केवल यहां तक सिमट कर नहीं रह गई है कि पुरुषों ने महिलाओं पर व्यंग्य कसा है या महिलाओं ने पुरुषों को जवाब दिया है. हंसी-मजाक से हमारी तनावपूर्ण जिंदगी में कुछ आनंद के पल आते हैं.

दिल्ली के मनोवैज्ञानिक चिकित्सक डॉक्टर एस. सुदर्शनन के अनुसार- ‘हंसी-मजाक से कई अच्छी अनुभूतियां होती हैं. वैज्ञानिक रूप से भी यह सिद्ध हो चुका है कि हंसी-मजाक करने से गुस्सा कम होता है. मजाक तनाव से बचने में अधिक सहायक होता है. मजाकिया मिजाज होने से एक व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों को बेहतर तरीके से सुलझा सकता है.’

भाग-दौड़ भरी इस जिंदगी में केवल महिलाएं ही नहीं पुरुषों को भी ऐसे साथी की ज़रूरत होती है जो उन्हें तनाव से दूर ले जा सके. दिल्ली की जाह्नवी सप्रे का मानना है- ‘यह ज़रूरी नहीं कि किसी रिश्ते में केवल पुरुष को ही मजाकिया होना चाहिए. यदि किसी रिश्ते में पुरुष के बजाए कोई महिला मजाकिया मिजाज की है तो भी रिश्ते में मिठास रहती है. हमेशा हम पुरुषों से ही यह उम्मीद क्यों करते हैं कि वह ही महिलाओं को खुश रखें? मैं ऐसा जरूरी नहीं समझती जितना मेरे पति मुझे हंसाते हैं, उनसे कहीं अधिक मैं उन्हें हंसाती हूं.’

आगे सप्रे कहती हैं- ‘एक पुरुष से ही हंसाने की उम्मीद रखना गलत है, इसके लिए हमारा समाज जिम्मेदार है, हमेशा पुरुषों का आकलन किया जाता है कि वह किस परिस्थिति में कैसा व्यवहार करते हैं. यही वजह है कि पुरुष मजाक की आड़ में अपनी भावनाओं को छिपाने की कोशिश करते हैं.’

पुणे के आनंद कहते हैं- ‘महिलाएं उस पुरुष पर अधिक विश्वास करती हैं जो यह जानता है कि किस समय क्या कहना है, इसके साथ ही मजाक-मजाक में ही आप ऐसी कई बातें कह देते हैं जिसे साधारण तरीके से कहने पर लोगों को बुरा लग सकता है. जैसे- यदि आप अपनी गर्लफ्रैंड से मोटापा घटाने के लिए मजाकिए अंदाज में कहें तो उन्हें इतना बुरा नहीं लगता है.’

किसी को हंसाना इतना आसान काम नहीं है. आपको पता होना चाहिए कि आप कब, कहां, और क्या बोल रहे हैं. सही वक्त पर सही बात न करने से भी रिश्ते में दूरी आ सकती है.

दिल्ली की दीपिका शाह के शब्दों में- ‘किसी का मजाकिया मिजाज होना ही काफी है. यह भी ज़रूरी है कि उसे पता हो कि कब मजाक करना है और कब नहीं. अगर मैं किसी गंभीर विषय में बात कर रही हूं तो उस दौरान किसी का मजाक करना मुझे पसंद नहीं आएगा.’

महिला हो या पुरुष हंसी-पुरुष हर किसी की जिंदगी में इंद्रधनुष की तरह है. जिसे देखकर सभी का मन प्रफुल्लित होता है. इसलिए इसे किसी एक के खेमे में रखना उचित नहीं है.

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