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सीआरपीएफ कैंप रामपुर पर हुए कथित आतंकी हमले के आरोप में बंद बेगुनाहों की रिहाई के लिए अखिलेश सरकार को ज्ञापन

BeyondHeadlines News Desk

सीआरपीएफ कैंप रामपुर पर हुए कथित आतंकी हमले के आरोप में बंद बेगुनाहों की रिहाई और घटना की सीबीआई से जांच कराने की मांग हेतु शेर खान और अनवर फारुकी ने मुख्यमंत्री को आज ज्ञापन सौंपा है.

रामपुर सीआरपीएफ कैंप पर हुए कथित आतंकी हमले में फंसाए गए मुरादाबाद के जंग बहादुर के बेटे शेर खान और कुंडा से फंसाए गए कौसर फारुकी के भाई अनवर फारुकी ने BeyondHeadlines को बताया कि जिस तरह से पिछले पांच सालों से उनके परिजन आतंकवाद के फर्जी आरोप में बंद हैं और सपा सरकार ने वादा करके नहीं छोड़ा उससे उनको बहुत निराशा हुई है. उन्होंने बताया कि रामपुर सीआरपीएफ कैंप कांड के आतंकवादी हमले के होने पर ही बहुत से सवाल हैं, कई मानवाधिकार संगठनों ने कहा है कि सीआरपीएफ जवानों ने नए साल के जश्न में नशे में धुत होकर आपस में गोली बारी की, जिसे छिपाने के लिए आतंकी हमला कह कर हमारे परिजनों को झूठा फंसाया गया है.

मुरादाबाद के शेर खान ने बताया कि उनके पिता जंग बहादुर खान जिनकी उम्र 60 से ऊपर की है, जिनको हृदय रोग है, जिसका कोई इलाज जेल प्रशासन नहीं करवा रहा है. ऐसे में उनके परिवारजन को किसी बड़ी अनहोनी की आशंका हर वक्त सताती है.

Another story of attack on CRPF camp, rampur

खैर, इनके तरफ से अखिलेश सरकार को लिखा गया पत्र हम यहां नीचे प्रकाशित कर रहे हैं…

माननीय मुख्यमंत्री

उत्तर प्रदेश शासन लखनऊ.

विषय- सीआरपीएफ कैंप रामपुर पर हुए कथित आतंकी हमले के आरोप में बंद बेगुनाहों की रिहाई और घटना की सीबीआई से जांच कराने के संबंध में.

महोदय,

आपने बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों की रिहाई का वादा किया था, जिससे हममें बहुत आस बंधी थी कि हमारे बेगुनाह परिजन जिन्हें सीआरपीएफ कैंप रामपुर पर हुए कथित आतंकी हमले के आरोप में 2008 से ही जेल में बंद हैं, उनकी रिहाई जल्द हो जाएगी.

2012 के नवंबर-दिसंबर में आपकी सरकार की तरफ से मुक़दमा वापसी की बात हुई थी. हम यहां इस बात को भी आपके संज्ञान में लाना चाहते हैं कि कई मानवाधिकार संगठनों ने सीआरपीएफ कैंप रामपुर में हुई घटना को ही संदिग्ध कहा है और कहा है कि सीआरपीएफ कैंप रामपुर में कोई आतंकी घटना नहीं हुई थी, वहां तो 31 दिसंबर 2007 व 01 जनवरी 2008 की रात सीआरपीएफ के जवान नए साल के जश्न में शराब के नशे में धुत होकर आपस में गोलीबारी कर ली और बाद में इस घटना को छिपाने कि लिए इसे आतंकी घटना का नाम दे दिया गया.

मानवाधिकार संगठनों ने ऐसे बहुतेरे सवाल उठाए जिसे सीआरपीएफ कैंप रामपुर की घटना के आतंकवादी घटना होने पर संदेह है. कुछ रिपोर्ट में यह भी बात कही गई की वहां सीआरपीएफ के जवान उस समय मनोरोगी थे जिन्हें डाक्टर ने यहां तक कहा था, कि इन्हें किसी भी प्रकार के हथियार न दिए जाएं.

महोदय पिछले पांच साल से ज्यादा समय में अब तक हुई दस गवाहियों में किसी भी गवाह ने इस बात को अब तक नहीं स्वीकारा की जिन लोगों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया है वो उनको पहचानते हैं. ऐसे में पूरा रामपुर सीआरपीएफ कैंप कांड ही फर्जी है, ऐसे में जब सीआरपीएफ के जवानों ने खुद आपस में गोलीबारी की हो तो उसकी सजा हमारे परिजनों को देना कहां तक सही होगा. ऐसे में इस पूरी घटना की सीबीआई जांच करानी चाहिए, जिससे इस सच्चाई को सामने लाया जा सके.

पिछली बसपा सरकार की मुख्यमंत्री ने इस घटना की सीबीआई से जांच कराने की बात पहले ही कह चुकी हैं. ऐसे में मामले की गंभीरता और बेगुनाहों की रिहाई जिससे सच्चाई सबके सामने आ सके महोदय आपको रामपुर सीआरपीएफ कैंप कांड की सीबीआई जांच करानी चाहिए. आपके समक्ष हमने पिछले साल भी एक पत्र के माध्यम में से अपनी बात को रखा था,  आज फिर आपको हम ज्ञापन सौंप रहे हैं.

दिनांक 1 जनवरी 2008 को सुबह 5:50 बजे सब इन्सपेक्टर ओम प्रकाश शर्मा ने पुलिस लाइन रामपुर में रिपोर्ट दर्ज करायी. जिसमें उन्होंने कहा कि वह कान्सटेबल जसवन्त सिंह तथा सब इन्सपेक्टर बिहारी लाल, मय जीप सरकारी गश्त पर थे और कोसी पुल की तरफ से आने पर सीआरपीएफ चुंगी के पास पहुंचते ही ग्रुप सेन्टर गेट नम्बर एक की तरफ से ताबड़-तोड़ फायरिंग होने की आवाज़ सुनाई दी. सीआरपीएफ चुंगी पर पिकेट ड्यूटी में मामूर सब इन्सपेक्टर बिहारी लाल, कान्सटेबल नासिर अली, कान्सटेबल वीरेन्द्र राना होमगार्ड गनपत तथा राम गोपाल असलहों के साथ मिले जिन्होंने भी ताबड़-तोड़ फायरिंग के बारे में कहा. दोनों ग्रुप छिपते-छिपाते आड़ लेकर गेट की तरफ बढ़े तो बिजली की रोशनी में देखा कि चार-पांच व्यक्ति अपने हाथों में आधुनिक स्वचालित हथियार लिए हुए ग्रप सेन्टर सीआरपीएफ के जवानों की तरफ फायरिंग कर रहे थे. उनके द्वारा की जा रही अन्धाधुंध फायरिंग से पुलिस को विश्वास हुआ कि वे अवश्य ही आतंकवादी थे. तुरन्त ही ओम प्रकाश शर्मा और उनके साथियों द्वारा अपना बचाव करते हुए आतंकवादियों से मुकाबला करने के लिए फायर किया गया.

ओम प्रकाश शर्मा ने अपने रिवाल्वर से दो राउण्ड, कान्सटेबल इन्दर पाल सिंह ने राइफल से आठ राउण्ड, कान्सटेबल जीतेन्द्र कुमार ने राइफल से सात राउंड, कान्सटेबल वीरेन्द्र राना और होम गार्ड आफताब खान ने राइफल से पांच-पांच राउंड अलग-अलग स्थानों से फायर किए. आतंकवादियों ने जवाब में तुरंत एक हथगोला फेंका और फायर किए जिससे इन्दर पाल और आफताब घायल हुए तथा इन्दर पाल सिंह की सरकारी राइफल की मैग्जीन टूट गई. आफताब खान की राइफल जाम हो गई. आतंकवादी फायरिंग करते हुए सेंटर के अन्दर घुस गए और वहां भी फायरिंग की और हथगोले छोड़े.

ओमप्रकाश शर्मा ने तुरन्त 2 बजकर 30 मिनट पर मौका देखकर घटना के जारी रहने की बात थाना सिविल लाइन और अफसरों को मदद के लिए सूचना दी. सीआरपीएफ के जवानों ने भी आतंकवादियों के तरफ फायर किया. पुलिस टीम ने आतंकवादियों का पीछा किया परन्तु सफलता नहीं मिली. फायरिंग की आवाजें बंद होने के बाद सीओ व अन्य अधिकारी मय फोर्स के थाना सिविल लाइन के उपनिरिक्षक गण व अफसरान आगे-पीछे आते रहे.

दूसरे थानों के फोर्स सीआरपीएफ के अधिकारी और जवान आ गए. तब ज्ञात हुआ कि आतंकवादियों के हमले में सीआरपीएफ के सिपाही देवेन्द्र सिंह, सिपाही विकास कुमार और एक रिक्शा वाले की लाशें गेट पर पड़ी थीं. और वहीं पर सीआपीएफ के सिपाही रज्जन लाल व हवलदार अफजल अहमद को भी गोलियों लगीं. जिसमें अफ़ज़ल अहमद भी मर गए. कैंपस के अन्दर गार्ड रुम में सिपाही केन्द्र सिंह घायल हुए. हवलदार श्रीराम सरन मिश्रा, हवलदार ऋषिकेश राय, सिपाही आन्नद कुमार और सिपाही मनवीर सिंह को भी आतंकवादियों ने मार डाला. ओमप्रकाश शर्मा ने आतंकवादियों को बिजली की रोशनी में देखा और पहचान सकता है.

प्रथम सूचना रिपोर्ट पर मुकदमा अपराध संख्या 8/2008 धारा 147,148, 149, 302,148, 149, 302, 307, 323, 120 बी भादवि, 3/4 लोकसम्पत्ति क्षति निवारण अधिनियम, 3,4,5 विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, 7/27 (3) आयुध अधिनियम थाना सिविल लाइन रामपुर दर्ज हुआ. विवेचना श्री सत्य प्रकाश शर्मा प्रभारी निरिक्षक सिविल लाइन रामपुर ने आरंभ की तथा कुछ गवाहों के बयान लिए. घटना का निरिक्षण किया तथा नजरी नक्शा बनाया बाद में तफ्तीश श्री ओपी तिवारी निरिक्षक एटीएस लखनऊ को दे दी गई. जिन्होंने 08/05/2008 को आरेप पत्र प्रस्तुत किया और बताया कि विवेचना जारी है.

दौरान विवेचना वादी मुकदमा ओम प्रकाश शर्मा सीआरपीएफ सिपाही संताष कोठारी, कान्सटेबल जीतेन्द्र कुमार सिंह, कान्सटेबल वीरेन्द्र राना, कांसेटल इन्द्र पाल सिंह ने बताया कि उनहोंने हमला करने वाले और पांच आतंकवादियों को बिजली की रोशनी में देखा था. लेकिन अभियुक्तों की गिरफ्तारी के बाद इन गवाहो से उनकी शिनाख्त नहीं करायी गयी.

दिनांक 1/2/08 को समय लगभग 2 बजे एडिशनल एसपी श्री अशोक कुमार राघव को मुखबिर व अन्य सूत्रों से जानकारी मिली की सीआरपीएफ कैम्प रामपुर पर हमला करने वाले आतंकवादी जंगबहादुर के सम्पर्क में रहे हैं और उस दिन वे उससे सम्पर्क करने वाले थे. फिर अशोक कुमार राघव ने पांच टीमें बनायीं और जंगबहादुर के गांव पहुंचे, जहां उन्हें जंगबहादुर मिले.

सीआरपीएफ कैम्प रामपूर पर हुये हमले में इस्तेमाल हथियार हमले के बसद शरीफ उसे घर पर रख गया या जिन्हें वह 9/2/08 को अपने चार साथियों के साथ कुछ देर पहले ले कर चला गया, जो रामपुर से बस द्वारा दिल्ली जाने की बात कर रहे थे. एसटीएफ टीम ने रामपुर बस स्टेशन पहुंच कर शरीफ और फहीम अरशद अंसारी को गिरफ्तार कर लिया. शरीफ ने बताया कि उसने हथियार कौसर के घर कुंडा जिला प्रतापगढ में रखा था. घटना के एक सप्ताह पहले अपने बहनोई गुलाब के गैरेज में रख दिया और 31/12/2007 को वह उन हथियारों को लेकर सीआरपीएफ कैम्प के पहले वाली नदी के पुल पर सुबह द्वारा भेजे गये दो फिदायिन अमर सिंह उर्फ अबु जाद तथा आदिल उर्फ असद और जंग बहादुर के पास पहुंचा.

वहां दोनों फिदायिनों को एक-एक एके 47, 3-3 मैगजीन और 4-4 हैंड ग्रेनेड दिया. फिर उन्हें मैंने और जंग बहादुर ने कैम्प के पास पंहुचा दिया और खुद थोडी दूर जा कर फायरिंग का इंतेजार करते करते रहे. बचा हुआ कारतूस, मैगजीन, हैंड ग्रेनेड तथा एके 47 जंग बहादुर लेकर चला गया या दोनों फिदायिन अलग-अलग रास्तों से अपने-अपने मकानों पर चले गये.

शरीफ और फहीम अंसारी के पास से बरामद सामान को फर्द बनाने के बाद सर्वमोहर किया गया. दिनांक 10/2/08 को सुबह लगभग 6:30 बजे रविंद्रालय चारबाग लखनऊ से पूर्व दिशा में लगभग 40 क़दम की दूरी पर एसटीएफ की तीन टीमों ने मिलकर इमरान, शहजाद, मो0 फारुक और सबाउद्दीन को हथियारों के साथ पकड़ा. दिनांक 09/02/2008 को कौसर को उसके घर से गिरफ्तार किया गया और मुक़दमा अपराध संख्या 8/2008 थाना सिविल लाइन रामपुर दिनांक 09/05/2008 को आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया ओर विवेचना जारी रखी गई. पुनः 13/03/2009 को आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया.

पुलिस द्वारा बयान किए गए तथ्य के अनुसार कुल चार-पांच आतंकवादी एके 47 और हैण्ड ग्रेनेड से हमला कर रहे थे. घटना स्थल पर मौजूद सीआरपीएफ के जवानों के पास भी हथियार थे जिसमें से कुछ लोगों ने उसका इस्तेमाल किया. तथा पुलिस पार्टी के लगभग सभी लोगों ने गोलियां चलाईं लेकिन किसी की गोली आतंकवादियों तक नहीं पहुंची. जबकि उनमें से चार-पांच लोगों ने आतंकवादियों को बिजली की रोशनी में देखा था.

देखकर गोली चलाने में भी कोई गोली आतंकवादियों को नहीं लगी. गिरफ्तार किए गए अभियुक्त शरीफ के बयान में कहा गया है कि हमला करने वाले केवल दो व्यक्ति थे. इस प्रकार अभियुक्त शरीफ के बयान में और चश्मदीद गवाहों के बयान में विरोधाभाष है. पुलिस के जो लोग बिजली की रोशनी में देखकर आतंकवादियों की गिनती बताते हैं वे खुद स्पष्ट नहीं हैं कि हमलावरों की गिनती चार या पांच थी.

यहां बड़ा सवाल उठता है कि सीआरपीएफ कैंप गेट पर स्थित वाचिंग टावर पर तैनात जवानों की मौजूदगी में गेट पर यह घटना हुई और आतंकियों के सीआरपीएफ कैंप के अन्दर जाने व बाहर आने की भी बात सामने आई है. जो पूरी घटना को संदिग्ध बताता है कि देर रात हो रही इस आतंकी वारदात के दौरान कैंप के गेट को खुला छोड़े रखा गया, जो सुरक्षा के तौर पर देखा जाए तो कहीं से भी उचित नहीं था.

घटना स्थल पर मौजूद अधिकतर गवाहों ने बताया है कि उन्होंने किसी आतंकवादी को नहीं देखा. भरोसा देखने वालों के बयानों पर किया जाय या फिर न देखने वालों के. चश्मदीद गवाहों के बयान पर भरोसा करने का एक ही आधार है कि गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों की शिनाख्त कार्यवाई उनकी गिरफ्तारी के तुरन्त बाद करा ली जाती. लेकिन शिनाख्त कार्यवाई न कराकर विवेचना अधिकारी ने बड़ी भूल की है. गिरफ्तार किए गए अभियुक्त मोहम्म्द कौसर की गिरफ्तारी का फर्द पत्रावली पर देखने को नहीं मिला और उसके पास से कोई बरामदगी भी नहीं दिखाई दी. जंग बहादुर खान के घर या उसके पास से भी कोई बरामदगी नहीं दिखाई गई. विवेचना अधिकारी द्वारा कहा गया कि कुछ लोगों ने उसे सीआरपीएफ कैंप की रेकी करते हुए देखा.

लेकिन रेकी करते हुए देखने वाला कोई गवाह विवेचना अधिकारी द्वारा नहीं बताया गया और न ही उसका बयान अंकित किया गया. शरीफ की फर्द बरामदगी में पुलिस के अलांवा जनता का कोई स्वतंत्र गवाह नहीं है, जबकि जंग बहादुर खान के पास से बरामदगी नहीं दिखाई गई है. शरीफ के साथ गिरफ्तार किए गए फहीम अरसद अंसारी के पास से पिस्टल आदि बरामद किया जाना दिखाया गया है. लेकिन वो इस मुक़दमें में अभियुक्त नहीं हैं.

उक्त मुकदमें में सबाउद्दीन, मोहम्मद फारुख और इमरान शहजाद की गिरफ्तारी 09/02/2008 को चार बाग लखनऊ से दिखाई गई है और उनके पास से भी एके 47 और हैंड ग्रेनेड की बरामदगी दिखाई गई है. लेकिन इस गिरफ्तारी में भी जनता का कोई स्वतंत्र गवाह नहीं रखा गया है. इस तरह की तमाम कमियां घटना को संदेहास्पद बनाती हैं.

सीआरपीएफ कैंप रामपुर पर कथित आतंकवादी हमला की जांच मानवाधिकार पर काम करने वाले लोगों ने भी की है. जिसमें उन्होंने पाया है कि मुक़दमें में वर्णित समस्त तथ्य गलत हैं तथा कैंप पर कोई आतंकवादी हमला नहीं हुआ है. सीआरपीएफ कैंप रामपुर में तैनात अधिकारियों द्वारा एम्यूनीशन्स का बहुत बड़ा घपला किया गया था और वहां पर तैनात अधिकारी और हवलदार मनोरोगी व उच्चश्रृखल प्रकृति के थे, तथा तनाव में रहते थे.

दिनांक 31/12/2007 और 01/01/2008 के बीच की रात में कैम्प से बाहर सड़क और रेलवे लाईन के बीच में नए साल का जश्न मनाने के लिए शराब के नशे में हुड़दंग कर रहे थे. किसी बात को लेकर सीआरपीएफ कैम्प के जवानों और वहां पर मौजूद थाना सिविल लाइन रामपुर की पुलिस की आपस में कहा सुनी हुई और नशे में बात इतनी बढ़ी की सीआरपीएफ के जवानों ने आपस में ही गोलियां चला दी. और हथगोले छोड़े जिससे सीआरपीएफ के सात जवान और उस भीड़ में मौजूद एक रिक्शे वाले की मौत हो गई. असलहों को नुक़सान पहुंचा पुलिस तथा सीआरपीएफ के जवानों को चोंटें आईं.

घटना को नया रंग देकर सीआरपीएफ के जवानों और पुलिस वालों को बचाने के उद्देंश्य से कहानी गढ़ी गई. और उस कहानी के अनुसार मौके से पहुंचे पुलिस और सीआरपीएफ अधिकारियों की मंत्रणा से सब इन्सपेक्टर ओम प्रकाश शर्मा से फर्जी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई गई. एसटीएफ शुरु से ही मुसलमान नौजवानों के खिलाफ साजिश रचकर उनके खिलाफ फर्जी मुकदमें बनाकर जेल में डालती रही है और इस मामले में भी एसटीएफ को मौका मिला और उसने उक्त मुक़दमें में बेगुनाह मुसलमान नौजवानों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया और एसटीएफ के उप अधिक्षक ने बिना पर्याप्त साक्ष्यों के उनके विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत कर दिया. जो पिछले पांच साल से ज्यादा समय से सेन्ट्रल जेल बरेली में बंद हैं. और गिरफ्तारी के बाद प्रताडि़त किए गए हैं.

महोदय इस घटना के आरोप में बंद जंग बहादुर जो मिलककामरु, थाना- मुंडा पांडे, जिला मुरादाबाद के रहने वाले हैं हृदय रोग से पीडि़त हैं, जिनका जेल में समुचित इलाज भी नहीं हो रहा है और न ही जेल प्रशासन इस मामले को लेकर संजीदा है. ऐसे में हम परिवार वालों को किसी अनहोनी की आशंका हमेशा बनी रहती है.

आपसे निवेदन है कि आप हमारे परिजन जो बेगुनाह है और इस मामले में पांच साल से ज्यादा समय से जेल में बंद है, उनकी रिहाई और सीआरपीएफ कैंप रामपुर में हुई गोलीबारी की घटना जिसपर बहुतेरे सवाल हैं, उसकी सच्चाई सामने लाने के लिए सीबीआई जांच कराई जाय.

दिनांक- 10 जून 2013

प्रार्थी-

अनवर फारुकी (कौसर फारुकी के भाई) आजाद नगर, पो0- कुंडा, थाना- कुंडा, जिला- प्रतापगढ़।

शेर अली (जंग बहादुर के लड़के) मिलककामरु, थाना- मुंडा पांडे, जिला- मुरादाबाद।

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