Latest News

हाशिए के लोग और ‘अवाम का सिनेमा’

Shah Alam for BeyondHeadlines

आज के कठिन समय में तमाम मुश्किलों से घिरते चले जा रहे हैं. सच कहने के लिए समाज का स्पेस लगातार सिकुड़ता जा रहा है. ख़बरों की बमबारी के दौर में ‘जन संघर्षों’ के तेवर को नज़रअंदाज़ किया जा रहा हैं. उन तस्वीरों को दिखाया नहीं जाता या फिर उनको इतना धुंधला कर दिया जाता है या महत्वहीन कर दिया जाता है.

ऐसे रोज होते मीडिया के नैतिक मानदंडों के खुल्लम-खुल्ला उल्लंघनों पर डिबेट होती रही है लेकिन लगता था कि पेड न्यूज़ मामले पर अपनी फजीहत करा चुका यह मीडिया कुछ सीख लेगा. लेकिन नीरा राडिया टेप प्रकरण में ऐसा देखने को मिला कि मीडिया ने कोई नसीहत नहीं ली. प्रतिष्ठित खबरिया न्यूज़ के दो सम्पादकों का जेल जाना इस मामले में नई प्रासंगिकता प्रदान कर दी है. वह भी एक उद्योगपति सांसद से ख़बर दबाने के एवज में सौ करोड़ रुपए की मांग यह तथ्य ही शर्मिंदा होने के लिए काफी है.

बुद्धिमानी तो इसके शब्दकोष से लगातार गायब होती जा रही है. हमारे संविधान में जनता की सोच को वैज्ञानिक बनाने पर जोर है, लेकिन मीडिया सही से जनता को जागरूक करने के बजाय सही मुद्दों से लगातार भटका रहा है. न्यूज़ चैनलों पर ऐसे कार्यक्रमों की बाढ़ है जो चांद तारों की चाल और ग्रहों के आधार पर कौन क्या बनेगा. Awam-ka-Cinema

पहले से ही मीडिया हाउसेज में आम जन को जाने की मनाही हो चुकी है, सीधे उनके आफिसों में कोई घुस नहीं सकता, कार्पोरेट घराने भी पूरी तरह इस धंधे में पूंजी उंडेल रहे हैं ताकि शुद्ध मुनाफा कमा सके, जन सरोकारों की बातें हाशिए पर फेंक दी गई हैं. कमोबेश ऐसी ही स्थिति मुख्यधारा की हिन्दी सिनेमा में हो रहा है.

सबसे सशक्त माध्यम सिनेमा भी आवारा पूंजी की जय बोल रहा है मुम्बईया सिनेमा से लेकर मुख्यधारा का मीडिया के लिए पैसा कमाना ही ब्रह्म है इस मोड़ तक पहुंचने के लिए दोनों उद्योग कुछ भी कर सकते हैं. इनके लिए नैतिक और मानवीय मूल्य के लिए कोई जगह नहीं है.

दरअसल, ऐसे सवालों से जूझते हुए हम लोग आगे नये विकल्प और नये हथियारों के साथ आगे बढ़ रहे हैं. ‘अवाम का सिनेमा’ के थीम पर सिनेमा के विविध माध्यमों को समेटते हुए हम लोग आधुनिक सुविधाओं से कटे शहरों को केन्द्रित कर रहे हैं, जहां हाशिए पर फेंक दिये गये लोगों के लिए संवाद के माध्यम से एक स्पेस तैयार कर रहे हैं.

बीते दिसंबर में छठवां अयोध्या फिल्म फेस्टीवल का आयोजन अयोध्या में किया गया, यह आयोजन हर साल 19 दिसंबर से शुरू होकर तीन दिन तक चलता है. 19 दिसंबर की तारीख को इसलिए चुना गया है कि यह दिन काकोरी कांड के नायकों का शहादत दिवस है. अशफाक व बिस्मिल की याद में आयोजित होने वाले इस आयोजन पर अयोध्या में केसरिया पलटन ने हमला बोल दिया. साझी विरासत के इन दुश्मनों ने अयोध्या फिल्म फेस्टीवल के खिलाफ खूब अफवाह फैलाई.

साम्प्रदायिक ताकतों की इस ‘अफवाह की राजनीति’ में मुख्यधारा का हिन्दी मीडिया भी इन तत्वों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हो गया. हिन्दी पत्राकारिता की जुझारू परम्परा को भूलकर यह सम्मानित अखबार भय, भ्रम और दहशत फैलाने में लगातार मशगूल रहे. फर्जी खबरें गढ़कर साम्प्रदायिक ताकतों की हौसला अफज़ाई करते रहे. इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है? ऐसे तत्वों के हाथों में खेलता रहा मीडिया अशफाक, बिस्मिल की याद में होने वाले ‘अवाम का सिनेमा’ के खिलाफ साम्प्रदायिक तत्वों के मंसूबे खुद संचालित करता दिखा.

बहरहाल फिल्म फेस्टीवल का विरोध करने वाले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (भाजपा की छात्रा इकाई) के छात्र संघ के पदाधिकारी जो अफवाह फैलाने की अग्रणी भूमिका में थे. आज दर्जन भर संगीन धाराओं के अन्दर सलाखों में हैं. इन समाज के ठेकेदारों की हरकतों से जनता भी परिचित हुई है. इन ताक़तों के हमलों के खिलाफ अपनी एकजुटता से हमेशा तैयार रहना चाहिए, ताकि इनके नापाक गठजोड़ को ध्वस्त किया जा सके. देश में एक भी ऐसा सिनेमा हॉल नहीं है जहां डाक्यूमेंट्री फिल्मों का लगातार प्रदर्शन होता हो, तो ऐसे दौर में यह बेहद ज़रूरी है कि इस तरह के आयोजन के साथ आप खड़े हो ताकि जनता के सवालों की यह लौ बुझने न पाये.

(शाह आलम एक दशक से अधिक समय से डाक्यूमेंट्री फिल्मों के निर्माण में सक्रिय हैं. ‘अवाम का सिनेमा’ के माध्यम से देश के कई हिस्सों में फिल्म फेस्टीवल के जरिए ज्वलंत सवालों को उठाते रहे हैं.)

Loading...

Most Popular

To Top

Enable BeyondHeadlines to raise the voice of marginalized

 

Donate now to support more ground reports and real journalism.

Donate Now

Subscribe to email alerts from BeyondHeadlines to recieve regular updates

[jetpack_subscription_form]