Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
सुशासन बाबू नीतिश कुमार के ‘सुशासन’ में वाक़ई बहुत गहरा राज है. यह ‘सुशासन’ कोई चमत्कार नहीं, बल्कि नीतिश का मीडिया मैनेजमेंट है. या यूं कहे ‘मीडिया पर्चेज अग्रीमेंट’ है. इस मायने में नीतिश कुमार और नरेन्द्र मोदी में राई-रत्ती का भी कोई फर्क नहीं है. दोनों ने ही सुशासन और ब्राडिंग के मीडिया मंत्र को न सिर्फ समझा है बल्कि बखूबी इस्तेमाल भी कर रहे हैं.
साल 2012-13 के विज्ञापन के आंकड़ें होश उड़ाने देने के लिए काफी है. BeyondHeadlines के पास मीडिया को दी गई इस ‘सुशासन रिश्वत’ का पूरा लेखा-जोखा मौजूद है. रिश्वत की इस बंदरबाट का सबसे बड़ा फायदा नीतिश का लगभग मुख पत्र बन चुके हिन्दुस्तान समूह को हुआ है. इसके दोनों ही अखबारों हिन्दुस्तान और Hindustan Times ने एक साल के भीतर लगभग 17.35 करोड़ रूपये की भारी-भरकम मलाई काटी है.
बिहार सरकार की इस दरियादिली की क़ीमत हिन्दुस्तान समूह हर दिन अदा कर रहा है. मगर पीछे कोई नहीं है. प्रिन्ट और टेलीविज़न दोनों ही नीतिश के इस दरियादिली के आगे नतमस्तक हैं. जो जितना अधिक नतमस्तक है, उस पर दरियादिली उतनी ही ज़्यादा है.
हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, टाइम्स ऑफ इंडिया, प्रभात खबर, अमर उजाला, दैनिक भास्कर से लेकर आज तक, ज़ी न्यूज़, टीवी-18, सहारा और टाईम्स नाउ तक सभी नीतिश के इस दरियादिली की मलाई काट रहे हैं और बदले में सुशासन राग का जाप कर रहे हैं.
एक उद्धाहरण आपको एकाएक मीडिया से यक़ीन उठा लेने की स्थिति में पहुंचा देगा. यह नाम ज़ी न्यूज़ के बिहार ब्यूरो चीफ श्रीकांत प्रत्युष का है. प्रत्युष साहब ज़ी न्यूज़ को तो मलाईदार विज्ञापन दिलवा ही रहे हैं, इन्होंने ‘सुशासन’ के लड्डूओं से खुद का पेट भी गले तक भर लिया है.
आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि बिहार सरकार से जितना विज्ञापन साल 2012-13 में इनके चैनल ज़ी न्यूज़ को मिला है उसका लगभग 101 गुना इन्होंने अपने नाम से चलने वाले बिहार के लोकल केबल चैनल प्रत्युष टीवी नेटवर्क व अपने दो अखबारों को दिलवा दिया है. अब यह कारनामा नीतिश कुमार के राज्य में ऐसे ही तो हुआ न होगा. ज़ाहिर है मीडिया के ठेकेदारों ने इसकी भारी क़ीमत चुकाई होगी.
BeyondHeadlines के पास नीतिश के साशन के कुल 7 सालों में मीडिया को खरीदने में बहाए गए जनता की गाढ़ी कमाई के पैसों को लेखा जोखा मौजूद है. सिर्फ साल 2012-13 में छियालीस करोड़ निनान्बे लाख पचहत्तर हज़ार सात सौ इक्कीस (469975721) रूपये विज्ञापन पर खर्च किए जा चुके हैं. साल 2011-12 में करीब 29 करोड़ 85 लाख रूपये खर्च किए गए तो साल 2010-11 में करीब 29 करोड़ रूपये खर्च हो चुके हैं. (आगे के आंकड़ें हम अपने अगली स्टोरी में प्रकाशित करेंगे. साथ ही यह भी बताएंगे कि किस मीडिया हाउस को अब तक कितने का विज्ञापन मिला है.)
ये स्थिति अपने आप में बहुत कुछ कहती है. बिहार का मीडिया बिकाउ नहीं है, ये तो पूरी तरह से बिक चुका है. नीतिश ने एक रास्ता दिखा दिया है, विकास न होते हुए भी विकास दिखाने का. अमावस के घूप्प अंधेरे में चांदनी रात के दावे पर मोहर लगाने का मीडिया इस घृणित कारोबार का ज़रिया बन गया.
इस देश के इतिहास में सरकारी पेड न्यूज़ और मीडिया के आदर्शों की निलामी का इससे बड़ा उद्धाहरण और क्या मिलेगा? हम यह चाहते हैं कि मीडिया का बिका हुआ चेहरा इतनी बार दिखाया जाए कि खुद को ‘मेनस्ट्रीम’ पत्रकारिता का झंडाबरदार मानने वाली इस मीडिया का सिर शर्म की कालिख से झूक जाए. ऐसे झंडाबरदारों ने ही पत्रकारिता के निष्पक्षता और स्वतंत्रता दोनों की ही हत्या कर दी है और अपने प्रभाव के ताक़त से यह भी सुनिश्चित कर लिया कि उन पर इस जुर्म में हाथा-पाई तक का केस न चलने पाए.
