Syed Parwez for BeyondHeadlines
परीक्षा देने के लिए हज़रत निजामुद्दीन स्टेशन से आगरा जाने वाली ट्रेन के जनरल बोगी में बैठा. एक मित्र भी मेरे साथ था, जो आगरा घूमना चाहता था. ट्रेन में अत्याधिक भीड़ बढ़ गयी थी. ट्रेन बल्लभगढ़ और पलवल स्टेशन को पार करने लगी.
मैंने देखा कि पलवल निकलते ही ट्रेन में कपड़ा बेचने वाला एक व्यक्ति चढ़ा. उसने सभी यात्रियों से कहना शुरु किया कि मैं यहाँ कम्पनी का प्रचार करने आया हूँ. कुछ प्रचलित नामों को गिनाते हुए उसने कहा कि क्या कोई यह बता सकता है कि यह कपड़ा कितने रुपये का होगा?
मित्र ललित ने मुझे कुछ ना कहने का इशारा कर दिया था. तभी एक व्यक्ति ने उत्तर देते हुए कहा पचास रुपये का. कपड़े वाले ने कहा क्या और कोई भी बता सकता है?
एक व्यक्ति ने और बोली लगाते हुए 100 रुपये कहा. इसी तरह कपड़े की रक़म बढ़ते-बढ़ते 750 रुपये तक आ गयी. जिसने भी कपड़े की कीमत बताई कपड़े वाले ने उन्हें पर्स, कंघी, पेन, माला जैसी चीजे़ दी.
अन्त उसने कहा भाइयों इन्हें 750 रुपये में कपड़ा दिया जाता है. जिसने 750 रुपये की कीमत थी, उसने कपड़ा, लेने से मना कर दिया. फिर कपड़ा बेचने वाला उससे लड़ाई पर उतारु हो गया.
फिलहाल कपड़ा बेचने वाला अकेला दिखाई दे रहा था. देखते ही देखते विभिन्न डिब्बों से उसके साथी आ गए और व्यक्ति को 750 रुपये देने के लिए कहने लगे. न देने पर धमकाना शुरू कर दिया.
अन्त में व्यक्ति ने डर के मारे 750 रुपये दिए. कपड़े बेचने वालों की बात अभी खत्म नहीं हुई थी. उन्होंने जिसे पर्स, कंघी, पेन, माला दिया था. उन्हें भी कपड़ा लेने के लिए मजबूर करने लगे. ना देने पर चाकू दिखा कर मारने पर उतारु हो गये. जिस यात्री ने पैसे ना होने की बात कही, उन्होंने उस व्यक्ति का पर्स चेक किया और घड़ी, मोबाइल फोन इत्यादि लेने लगे.
इसी तरह का एक वाक्या पारस नाथ एक्सप्रैस में भी देखने को मिला. ट्रेन आगरा पहुँचने वाली थी. एक मोची जूते पॅलिस करने के लिए डिब्बे में आया. ट्रेन में बैठे एक व्यक्ति के पास जाकर उसके चमड़े की चप्पल को पॉलिस करवाने के लिए कहा. व्यक्ति ने मना किया.
इस पर मोची उसकी चप्पल को ट्रेन से बाहर फेंकने लगा. व्यक्ति ने कहा कि लगा दे यार कील. मोची ने 4-5 कीलें लगाई और 180 रुपये मांगे…
व्यक्ति ने कहा कि पागल हो गया है क्या? मैं 10 रूपये ही दे सकता हूँ. 180 रुपये नहीं… कुछ देर भी नहीं हुआ होगा की 10 मोची इक्ठ्ठे हो गए और व्यक्ति को धमकाने लगे. डर के मारे उस व्यक्ति ने भी उन्हें 180 रुपये दिये.
मैंने मोची और कपडे वाले में एक बात देखी कि यह व्यक्तियों को पढ़ते हैं कि यह व्यक्ति कैसा है. कमजोर और सीधा व्यक्ति, या प्रवासी मजदूरों को यह शिकार बनाते हैं. पर कितनी दुःख की बात है कि तमाम तरह की सुरक्षा व्यवस्था का दावा करने वाली भारतीय रेवले के सुरक्षा बल के सामने ऐसी घटना हो रही है.
प्रश्न उठता है, क्या अधिकारी और जीआरपी इससे अनजान है? लेकिन शर्म की बात है कि ट्रेन में सरेआम सामान बेचने की शक्ल अख्तियार किए लुटेरे आम लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं.