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दंगों की जांच के नाम पर मुसलमानों को गुमराह कर रही है सपा सरकार

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : खालिद मुजाहिद के हत्यारे पुलिस व आईबी अधिकारियों की गिरफ्तारी, आरडी निमेष आयोग की रिपोर्ट पर सरकार द्वारा एक्शन टेकन रिपोर्ट जारी कर दोषी पुलिस व आईबी के अधिकारियों को गिरफ्तार करने और आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को तत्काल रिहा करने की मांग को लेकर रिहाई मंच का अनिश्चितकालीन धरना 32वें दिन भी जारी रहा. आज क्रमिक उपवास पर मौलाना वकारुर अहमद और हरेराम मिश्र बैठे.

धरने के समर्थन में आए मौलाना जहांगीर आलम कासमी ने कहा कि इंसाफ की यह लड़ाई न्याय मिलने तक जारी रहेगी. जिस तरीके से एक महीने से ज्यादा समय से विधानसभा पर मुसल्सल यह धरना चल रहा है और सरकार ने खालिद को न्याय नहीं दिया, उससे सरकार की नियत उजागर हो जाती है.

Indefinite dharna to bring Khalid Mujahid's killers to justice completes 32 daysसूबे की सपा सरकार मिल्लत फरोशी पर उतर आई है. मुसलमानों के वोट के दम पर बनने वाली सपा सरकार अब मुसलमानों के ही खिलाफ खड़ी हो गई है. आने वाले लोकसभा चुनावों में सपाइयों को इसकी कीमत चुकानी पडे़गी.

धरने को संबोधित करते हुए अधिवक्ता असद हयात ने कहा कि मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव मुसलमानों को बेवकू्फ बना रहे हैं. अखिलेश सरकार के कार्यकाल के दौरान अभी तक हुए सांप्रदायिक दंगों की जांच के लिए किसी सेवानिवृत न्यायाधीश की अध्यक्षता में जांच कमेटी बनाए जाने की जो घोषणा की गई है, वह मुसलमानों के साथ एक धोखा जैसा है. जिससे मुसलमानों को कुछ भी प्राप्त नहीं होगा, क्योंकि इस कमेटी का कोई कानूनी महत्व नहीं होगा.

यह कमेटी कमीशन ऑफ इन्क्वारी एक्ट के तहत किसी कमीशन के रुप में गठित नहीं की जा रही है, इसलिए इसकी रिपोर्ट विधानसभा में भी प्रस्तुत नहीं होगी. कोसी कलां, फैजाबाद, बरेली, डासना, मसूरी आदि जगह हुए दंगों में 300 से ज्यादा मुसलमानों ने अपनी रिपोर्ट दर्ज करायी हैं. अस्थान के दंगा पीडि़त कई मामलों की दोबारा विवेचना कराने की मांग कर रहे हैं. बेहतर यह था कि सभी दंगों के मामलों की जांच सीबीआई को सौंप दी जाती. जिससे कि इन मामलों की बेहतर विवेचना होती. जिस कमेटी को बनाने का शिगूफा छोड़ा जा रहा है, उसकी रिपोर्ट किसी भी मुक़दमें में अदालत में आरोप पत्र के रुप में प्रस्तुत नहीं की जा सकती. इसलिए ऐसी जांच कमेटियों का कोई महत्व नहीं है.

धरने को संबोधित करते हुए कमरुद्दीन कमर, पिछड़ा महासभा के एहसानुल हक मलिक, शमीम वारसी, सोशलिस्ट फ्रंट के मोहम्मद आफाक ने कहा कि मुसलमानों के प्रति हमदर्दी और घडि़यालू आंसू बहाने वाले मौलाना तौकीर रजा को यह याद रखना चाहिए था कि निमेष आयोग की रिपोर्ट को अभी तक सदन में नहीं रखा गया है और न ही उसके आधार पर कोई कार्यवाई की जा रही है, जिससे कि तारिक़ और खालिद को न्याय मिले और दोषियों को सजा. ऐसे में दंगों की जांच के लिए एक बिना विधिक अधिकार प्राप्त कमेटी बनाने का शिगूफा छोड़कर तौकीर रजा के माध्यम से पूरे मुस्लिम समाज को बेवकूफ बनाने का प्रयास किया जा रहा है. जिससे कि 2014 में मुसलमानों के वोट मिल सकें. लेकिन ऐसा नहीं होगा क्योंकि मुसलमान सपा के सांप्रदायिक चेहरे को तो पहचान ही चुका है. ऐसे अवसरवादी कथित उलेमाओं जो कभी कांग्रेस के लिए तो कभी बसपा के लिए वोटों की तिजारत करते हैं, को भी पहचान चुका है.

धरने को संबोधित करते हुए इलाहाबाद रिहाई मंच के प्रभारी राधवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि मालेगांव धमाकों के मामले में एनआईए की जांच में सामने आया है कि वहां पर पहले से ही मुस्लिम युवकों को उठाकर एटीएस ने रखा था, जैसा की पूरे देश में होता है जिसकी तस्दीक तारिक और खालिद मामले में आरडी निमेष कमीशन की रिपोर्ट भी करती है.

ऐसे में सवाल उठता है कि इस मामले की जांच जब यूपी के मौजूदा एडीजी लॉ एंड आर्डर अरुण कुमार जो तब सीबीआई में थे, ने की थी. तब उन्होंने इन तथ्यों को क्यों छुपाया? एनआईए की जांच से अरुण कुमार पर सवाल उठता है कि इन्होंने मुस्लिम लड़कों की गलत गिरफ्तारी और पक्षपात पूर्ण विवेचना ही नहीं की बल्कि अभिनव भारत जैसे हिन्दुत्वादी संगठनों को बचाने का भी प्रयास किया. ऐसे में अरुण कुमार की भगवा आतंकियों के साथ क्या संबन्ध थे, इसकी भी जांच कराई जाय.

उन्होंने कहा कि इसी तरह यूपी में दंगों के मामलों में पुलिस द्वारा जो पक्षतातपूर्ण विवेचनाएं हो रही हैं और मुसलमानों को न्याय नहीं मिल रहा है वह पुलिस की इसी सांप्रदायिक जेहनियत का नतीजा है.

धरने को संबोधित करते हुए मुस्लिम मजलिस के जैद अहमद फारुकी, अनिल आजमी, मो0 आरिफ और भारतीय एकता पार्टी के सैयद मोइद ने कहा कि खालिद मुजाहिद की हत्या समेत कानून व्यवस्था के सवाल पर पूरे सूबे में हाहाकार मचा है. ऐसे में महामहिम राज्यपाल से हम मांग करते हैं कि अतिशीघ्र मानूसन सत्र बुलाएं ताकि जनता जान सके कि सरकार इन तमाम मुद्दों पर अपनी क्या राय रखती है.

वक्ताओं ने कहा कि सूबे की सरकार अपने खिलाफ उठ रही आवाजों से इतनी डरी हुई है कि वह विधान सभा सत्र बुलाने से पीछे हट रही है. वक्ताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री ने कहा था कि आरडी निमेष कमीशन को एक्शन टेकन रिपोर्ट के साथ विधानसभा में रखेंगे पर मानसून सत्र को बुलाने में देरी करके वो विक्रम सिंह, बृजलाल, अभिताभ यश, मनोज कुमार झा, चिरंजीव नाथ सिन्हा, एस आनंद और आईबी के आतंकी दोषी पुलिस अधिकारियों को बचाना चाहती है, लेकिन सूबे की अवाम ऐसा नहीं होने देगी. इन दोषी आतंकी पुलिस अधिकारियों का जेल से बाहर रहना देश की सुरक्षा के लिए खतरा है.

धरने के दौरान उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा में मारे गए लोगों की याद में दो मिनट का मौन भी रखा गया.

धरने का संचालन रिहाई मंच के नेता हरे राम मिश्र ने किया. धरने को वकार अहमद, डा0 अली अहमद कासमी, असदउल्ला, एसआईओ के मो राफे, शहजादे मंसूर अहमद, शिव प्रसाद सिहं, सोशलिस्ट फ्रंट के मो0 आफाक, शुएब, जैद अहमद फारुकी, मौलाना कमर सीतापुरी, शमीम वारसी, पिछड़ा महासभा के एहसानुल हक मलिक, शिवनारायण कुशवाहा भारतीय एकता पार्टी के सैयद मोइद अहमद, पीस पार्टी के रिजवान इशहाक, आदियोग, फैज, अब्दुल मोइद, रफी अहमद, शाहनवाज आलम और राजीव यादव आदि शामिल हुए.

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