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यदि यह गठबंधन ख़त्म हुआ को जदयू क्या करेगी?

Rajeev Kumar Jha for BeyondHeadlines

बिहार में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गयी है. कुछ मंत्रियों के माथे पर पसीने छुट रहे हैं. तो कुछ विधायक अभी से मंत्री बनने के लिए दांत निपोरने लगे हैं. इस सरगर्मी, इस कसमोकश का कारण है जदयू और भाजपा का अलगाव. इस अलगाव की घोषणा बस औपचारिकता ही है. आगामी 15 और 16 जून को जदयू ने पटना में आपात बैठक बुलायी है.

यदि गठबंधन टूटता है जिसकी 99 फ़ीसदी प्रबल संभावना है, तो यहाँ से यक़ीनन बिहार की राजनीति एक नया टर्न लेगी. जिस तरह भाजपा जदयू के पिच्छलग्गू नेता अपनी बयानबाजी में आग उगल रहे हैं. उस से दोनों गठबंधन के अब साथ रहने की कोई संभावना नज़र नहीं आती. फिर 17 साल पुराने इस गठबंधन को बिहार लोगों ने लालू की सरकार को हटाने के लिए अपना समर्थन दिया या विश्वास किया था. अब जब दोनों में खुद ही घमासान मचा है. कद्दावर नेता मुंह फुलाए बैठने लगे हैं. लोगों का निश्चित तौर पर इन पार्टियों से मोहभंग हुआ है.

यदि यह गठबंधन ख़त्म हुआ को जदयू क्या करेगी?नितीश सरकार अपनी जातिवादी विचारधारा के कारण ऐसे हीं युवा वर्ग द्वारा दरनिकार की जाने लगी है. महाराजगंज के उपचुनाव में जदयू के शिक्षा मंत्री की सवा लाख से भी अधिक वोटों की हार युवाओं शिक्षितों, शिक्षकों और सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी का हीं परिणाम था.

वहां राजद की वापसी चौंकाने वाली नहीं थी. आप तत्काल एक सर्वे करा लें. आपको नितीश की सरकार चारों खाने चित्त मिलेगी. यह बिहार है. बदलता बिहार… बदलती सोच… बदलता नजरिया… यहाँ अब आप बहला फुसला के लोगों को ज्यादा दिन तक फसा के नहीं रह सकते.
थोड़ा आंकड़ों की बात कर लें. फिलहाल जदयू के 118, भाजपा के 91, राजद के 22, कांग्रेस के 04, लोजपा के 01, भाकपा के 01 और निर्दलीय 06 सीटें हैं. निर्दलीय विधायकों ने सरकार को समर्थन देने के लिए लगभग हामी भर दी है. ऐसे में सरकार गिरने का ख़तरा तो फिलहाल नज़र नहीं आता. लेकिन अगले विधानसभा चुनाव,लोकसभा चुनाव में तीसरे मोर्चे की प्रबल संभावना दिख रहीं है.

पूर्व मुख्यमंत्री और राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव जो पूरे इत्मीनान से जदयू,भाजपा के आपसी अंतरकलह को बारीकी से देख रहे हैं अपनी सशक्त वापसी करेंगे इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता.

राजनीतिक विश्लेषक सुरेन्द्र सुमन कहते हैं कि नितीश बिहार की जनता को बरगला रहे हैं. जिस भाजपा से 17 सालों तक उनका गठबंधन था वह पार्टी उनकी चहेती थी. मोदी क्या उस समय भाजपा में नहीं थे? नितीश इतने हीं सेकुलर हैं तो गोधरा काण्ड के बाद भाजपा से गठबंधन क्यूँ रखा? दरअसल नितीश एक सत्तालोभी और तानाशाही नेता हैं. उनकी नज़र प्रधानमंत्री की कुर्सी पर थी. जब मोदी के हांथों में प्रचार का कमान थमा दिया गया और आगामी प्रधानमंत्री की प्रबल उम्मीदवारी के भी संकेत दिए गए तब नितीश का नाखडा शुरू हो गया.

सवाल यह उठता है कि यदि यह गठबंधन ख़त्म हुआ को जदयू क्या करेगी? जाहिर है कि वह भाजपा के मंत्रियों से इस्तीफा मांगेगी. इस्तीफा नहीं देने की स्थिति में वह उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश का भी अधिकार रखती है.

उधर बौखलाई भाजपा मुख्यमंत्री से इस्तीफे की मांग करेगी. उसका तर्क यह होगा कि वह आठ सालों से वह सरकार में बराबर की भागीदार रही है. बिहार की जनता ने नितीश को नहीं बल्कि गठबंधन को वोट दिया था.

इधर दोनों पार्टियों के नामी गिरामी नेताओं ने कोई रास्ता निकालने के लिए एडी चोटी एक कर दी है. लेकिन अब एक हीं रास्ता बचा है वह है जदयू भाजपा का अलगाव.

इस अलगाव का सीधा या घुमा फिरा कर भी फ़ायदा राजद को हीं होगा इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता. जबसे लालू यादव ने अपने बेटे तेजस को राजनीति के मैदान में उतारा है तब से लोगो की आशाएं उनसे जगी है. लेकिन तेजस को काफी संघर्ष भरा रास्ता तय करना होगा. अपनी पिता द्वारा हुए चुक से सीख लेनी होगी. जातिवाद की राजनीति से ऊपर उठना होगा. समीकरण मुद्दों के आधार विकास को बनाने होंगे. तब जाकर उनका राजनीति में आना कारगर भी होगा और सार्थक, प्रभावी भी…

(लेखक बी.आर.ए.बी.यू. पत्रकारिता में शोधछात्र हैं. इनसे 08409911183 पर संपर्क किया जा सकता है )

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