India

प्राकृतिक आपदाओं को गंभीरता से ले सरकार

BeyondHeadlines News Desk

नई दिल्ली : पिछले दिनों हुइ मूसलाधार बारिश से  भारत के उत्तरी राज्यों में बाढ़ की तबाही और विश्‍व बैंक की ओर से जारी आज रिपोर्ट  पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ग्रीनपीस ने भारत सरकार से अपील की है कि वह जलवायु परिवर्तन के चलते हो रही आपदाओं को गंभीरता से ले, क्योंकि भारत और दक्षिण एशिया क्षेत्र में इसके जलवायु परिवर्तन का असर बेहद चौंकाने वाला हो सकता है.

Natural disasters take seriouslyग्रीनपीस की जलवायु और ऊर्जा मामलों की कैंपेन मैनेजर विनूता गोपाल कहती हैं, “तापमान में 4 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी भारत सहन नहीं कर सकता. उत्तरी भारत में बाढ़ और महाराष्ट्र के सूखा यह दर्शाता है कि हमारे मानसून का जीवन ख़तरे में है. विकास और संपन्नता के नाम पर जीवाश्म ईंधनों का जमकर दोहन किया जा रहा है, लेकिन तेजी से इनका विपरीत असर देखने को मिल रहा है. अगर हम जलवायु परिवर्तन को नज़रअंदाज करते रहे तो अल्प अवधि के लिए होने वाले आर्थिक लाभ का कोई मूल्य नहीं होता. इससे हम कई दशक पीछे चले जाते हैं और लाखों लोग गरीबी की चपेट में आ जाते हैं.”

वर्ल्ड बैंक की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से जल संसाधनों पर पड़ने वाले विपरीत असर से ऊर्जा सुरक्षा पर संकट गहराता जा रहा है. भारत अपनी ऊर्जा संबंधी ज़रूरतों के लिए थर्मल और हाइड्रो प्वार प्लांट पर निर्भर है. नए पावर प्लांटों में करीब 80 फ़ीसदी प्लांट कोयले से चलने वाले हैं और महाराष्ट्र में इस साल के सूखे के चलते थर्मल प्वार प्लांट को चलाने के लिए जलापूर्ति का होना मुश्किल दिख रहा है. इसके अलावा इलाके के लोगों के सामने पेय जल और सिंचाई का संकट भी है.

महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के वर्धा और वेनगंगा नदी पर ग्रीनपीस के अध्ययन से ये बात पहले ही सामने आ चुकी है कि सामान्य बारिश के बावजूद  इलाके के थर्मल पावर प्लांटों में हर कुछ साल बाद जलापूर्ति का संकट होता है और इसके चलते उन्हें बंद करने की नौबत आ जाती है.

विनूता गोपाल कहती हैं, “कोयले पर बढ़ती हमारी निर्भरता की कीमत ना केवल पर्यावरण को चुकानी पड़ी रही है बल्कि स्थानीय समुदायों पर इसका असर पड़ रहा है और कोयले के बढ़ते आयात से अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हो रही है. अधकचरे जीवाश्म ईंधनों पर निवेश को कम कर और अक्षय ऊर्जा और ऊर्जा का बेहतर इस्तेमाल करने संबंधी क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा दें तो हम अपनी ऊर्जा संबंधी ज़रूरतों को हासिल कर सकते हैं. इतना ही नहीं इससे वायुमंडल का तापमाना 2 डिग्री सेल्सियस तक नीचे लाने में मदद मिलेगी. इसके ज़रिए हम जलवायु परविर्तन के भयावह परिणामों पर अंकुश लगा सकते हैं.”

विनूता गोपाल ने उम्मीद जताई है कि वर्ल्ड बैंक अब इस दिशा में पहल करेगा और अपनी ऊर्जा क्षेत्र में अपने अनुदान का पूरा हिस्सा अक्षय ऊर्जा और ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के लिए जारी करेगा जिसेस गरीबों को वास्तविकता में मदद मिल पाए.

यह जाहिर है कि अक्षय ऊर्जा का विकल्प ही ऊर्जा संकट का समाधान और सतत विकास का रास्ता है. ऐसे में सरकार को इस दिशा में पहल करनी होगी. भारत सरकार को 2020 तक अपनी कुल ऊर्जा का 20 फ़ीसदी हिस्सा अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र से हासिल करने को राष्ट्रीय लक्ष्य बनाना चाहिए. वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस कम करने के लिए दुनिया को साफ सुथरी ऊर्जा के इस्तेमाल की ओर तेजी से क़दम बढ़ाने की ज़रूरत है.

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